विज्ञान के आद्य पुरस्कर्ता गॅलिलिओ गॅलिली (१५६४ से १६४२) भाग – २

चर्च में प्रार्थना हेतु जानेवाले गॅलिलिओ का ध्यान सहज ही हवा से हिलनेवाले झुमर (काँच का फानूस) की ओर आकर्षित हो उठा। स्वयं अपनी ही हाथ की नाड़ी का उपयोग करते हुए उन्होंने झुमर के हिलने का समय गिना। इसके पश्‍चात् घर जाकर विविध ऊँचाईवाली रस्सियों से वस्तु को जोड़कर गॅलिलिओ ने अनेक प्रयोग किए। अनेकों प्रयोगों के पश्‍चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वस्तुओं का एक-दूसरे के साथ टकराना उन वस्तुओं के वजन पर अवलंबित न होकर वह रस्सी के लंबाई के आधार पर निर्भर करता है। इसी आधार पर आगे चलकर कालमापन करना भी सुलभ होगा यह कल्पना भी आगे चलकर गॅलिलिओ ने प्रस्तुत की।

Galileo-Galilei- गॅलिलिओ को खगोलशास्त्र

उस समय के दौरान कालमापन की पद्धति मर्यादित होने के कारण गॅलिलिओ की कल्पना अनोखी साबित हुई। इससे पूर्व पानी, रेत एवं परछाईं तथा आकाश में दिखाई देनेवाले सूर्य के स्थानानुसार समय का मापन करने की प्रथा प्रचलित थी। घड़ी की खोज़ तो हुई थी परन्तु निश्‍चित समय बता सके इस प्रकार का कोई भी यांत्रिक ज्ञान उपलब्ध नहीं था। गॅलिलिओ द्वारा प्रस्तुत किये गए सिद्धांत के आधार पर आगे चलकर क्रिस्तियन ह्युगेन्स नामक इस संशोधनकर्ता ने लंबक का उपयोग करके निश्‍चित समय दर्शानेवाला ‘पेंड्युलम क्लॉक’ विकसित किया।

पदार्थ-विज्ञान शास्त्र (फिज़िक्स) के ही समान गॅलिलिओ को खगोलशास्त्र (अ‍ॅस्ट्रॉनॉमी) भी पसंद था। गणित का गहराई से किया गया अध्ययन और उस पर रहनेवाले प्रभुत्व से ही उनके मन में यह इच्छा उत्पन्न हुई थी। इसी दिलचस्पी के कारण में आकर उन्होंने अपने गणित एवं भौतिक शास्त्र के ज्ञान का उपयोग करते हुए दुर्बिन के यांत्रिक ज्ञान की जानकारी हासिल की। उस दौरान दुर्बिन के निर्माण की कोशिशें तो चल ही रही थीं, परन्तु अवकाश में होनेवाली वस्तुओं को भी जिससे देखा जा सके इस तरह की दुर्बिन उपलब्ध नहीं थी।

गॅलिलिओ ने प्रचलित दुर्बिन की अपेक्षा वस्तु की प्रतिमा बीस गुणा अधिक बड़ी दिखाई देने की क्षमता रखनेवाली दुर्बिन का निर्माण किया था। इस दुर्बिन से गॅलिलिओ ने आकाश के अनेक ग्रहों-तारों आदि का निरीक्षण किया। चाँद के ही समान शुक्र को भी होनेवाली विविध कलाएँ, गुरु ग्रह के होनेवाले उपग्रह आदि का निरीक्षण गॅलिलिओ ने प्रस्तुत किया। परन्तु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और विवादास्पद साबित हुआ, वह था- ‘पृथ्वी स्थिर न होकर वह स्वयं के ही चारों ओर एवं सूर्य के भी चहूँ ओर प्रदक्षिणा करती रहती है और सूर्य स्थिर रहता है’ यह गॅलिलिओ के द्वारा घोषित किया गया सिद्धान्त। इस दावे से कोपर्निकस नामक संशोधनकर्ता के द्वारा इससे पूर्व प्रस्तुत किया गया पृथ्वी-केन्द्रित ग्रहमाला के सिद्धांत को बड़ा झटका लगा।

कोपर्निकस के द्वारा प्रस्तुत किए गए सिद्धांत के अनुसार अन्तरिक्ष में पृथ्वी एवं अन्य ग्रह अपने-अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं और सूर्य इन सभी के इर्दगिर्द चक्कर लगाते रहता है। पृथ्वी पर होनेवाले रात-दिन भी इसी बात के प्रतीक हैं। तत्कालीन धर्मग्रंथों में भी इसी स्वरूप के विचार प्रस्तुत किए गए होने के अनुसार धर्मसंस्थाओं एवं धर्मगुरुओं ने भी इसी सिद्धांत को मान्यता दे रखी थी। वहीं गॅलिलिओ का सिद्धान्त सीधे धर्मग्रंथ को ही चुनौती देनेवाला साबित होने के कारण धर्मसंस्थाएँ गॅलिलिओ पर कुपित हो उठीं।

तत्पूर्व गॅलिलिओ द्वारा अ‍ॅरिस्टॉटल के सिद्धांत को आघात पहुँचाने के कारण इन संस्थाओं का रोष तो गॅलिलिओ पर था ही। साथ ही यह नया सिद्धांत सीधे धर्म को ही चुनौती देनेवाला होने के कारण धर्मसंस्थाओं की ओर से विरोध भड़क उठा था। उम्र के ६९ वर्ष में गॅलिलिओ के जैसे ज्येष्ठ संशोधनकर्ता को एक अपराधी की भाँति धर्मसंस्था के समक्ष अपने सिद्धांत के गलत होने की कबूली देनी पड़ी थी। स्वाभाविक है कि यह कबूली देते समय भी गॅलिलिओ ने यह उद्गार भी प्रस्तुत किया था कि ‘मैं कहता हूँ इसलिए पृथ्वी स्वयं के ही इर्दगिर्द चक्कर लगाना बंद थोड़े ही कर देगी।’ इस ‘गुनाह’ के कारण गॅलिलिओ को कैद की सज़ा भी सुनाई गई थी। परन्तु आगे चलकर उन्हें उनके घर में ही स्थानबद्ध किया गया था। गॅलिलिओ के उद्गार आनेवाले समय में जिन शास्त्रज्ञों को समाज अथवा देश के विरूद्ध संघर्ष करना पड़ा था, उनके लिए आदर्श साबित हुए।

स्थानबद्धता में रहते हुए गॅलिलिओ ने अपने विभिन्न संशोधनों पर आधारित ‘टू न्यू सायन्सेस’ नामक पुस्तक लिखी थी। इसी पुस्तक के माध्यम से गॅलिलिओने अपने विविध संशोधनों पर आधारित आधुनिक भौतिकशास्त्र के अध्ययन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी, ऐसा माना जाता है। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में गॅलिलिओ को छल-कपट पूर्ण वृत्ति का सामना करना पड़ा। उम्र के ७८ वे वर्ष में यानी ईसा १६४२ में इस श्रेष्ठ संशोधनकर्ता ने इस दुनिया से विदा किए जाने का संदेह व्यक्त किया गया था। योगायोग कहे तो गॅलिलिओ के समान है विज्ञान को एक नयी दृष्टि प्रदान करनेवाले न्यूटन का जन्म भी १६४२ में ही हुआ था। विज्ञान के आधार पर प्रस्तुत किए गए सिद्धांत एवं संशोधन के प्रति कोई चाहे कितना भी विरोध क्यों न कर ले परन्तु उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है। वह किसी न किसी स्वरूप में किसी के भी नाम से बारंबार अपने स्वयं के अस्तित्व को दिखा ही देते हैं। गॅलिलिओ के जीवन से यही सच्चाई सिद्ध होती है।

चित्र :
1) धर्मसंस्था के समक्ष अपनी ‘गलतियों’ को कबूल करते हुए गॅलिलिओ ।
2) गॅलिलिओ द्वारा विकसित की गयी दुर्बिन।

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