१०९. अंतरिक्षविज्ञान संशोधन में उड़ान

आज के विज्ञान-तंत्रज्ञानयुग में अंतरिक्षविज्ञान का महत्त्व अनन्यसाधारण है| भविष्य में जिसका अंतरिक्ष पर वर्चस्व, वह देश अव्वल स्थिति में रहेगा, इस तथ्य को नकार नहीं सकते| इसे मद्देनज़र करते हुए इस्रायल भी अंतरिक्षविज्ञान के नये नये क्षेत्र पादाक्रांत करने के प्रवास में अग्रसर रहा है|

इस्रायल के अंतरिक्षविज्ञान संशोधन की शुरुआत १९६० के दशक में हुई| सन १९६० में, इस्रायली सरकार को विज्ञान-तंत्रज्ञानविषयक नीतियों के बारे में मार्गदर्शन करनेवाले ‘इस्रायल ऍकॅडमी ऑफ सायन्सेस अँड ह्युमॅनिटीज्’ इस संस्थान के तहत ‘नॅशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च’ की इस्रायली सरकार ने स्थापना की| अंतरिक्षविज्ञान क्षेत्र के संशोधन को समर्पित कई युनिव्हर्सिटी प्रोफेसर्स, विशेषज्ञ, संशोधक सदस्य होनेवाली यह एक युनिव्हर्सिटी स्तर पर की कमिटी थी और शुरू शुरू में, विभिन्न युनिव्हर्सिटीज् में चल रहे अंतरिक्षविज्ञान संशोधनों में सुसूत्रता लाना, इतना ही इस कमिटी का उद्देश्य था| इसीमें से आगे चलकर ‘इस्रायल स्पेस एजन्सी’ इस इस्रायली राष्ट्रीय अंतरिक्षविज्ञान संशोधनसंस्था की स्थापना की गयी|

वह दौर अमरीका और सोव्हिएत युनियन इन दो तत्कालीन जागतिक महासत्ताओं के बीच चल रहे ‘कोल्डवॉर’ का था और यह कोल्डवॉर दिनबदिन अधिक से अधिक भयावह होता चला जा रहा था|

संपूर्ण इस्रायली बनावट का रॉकेट ‘शावित-२’ का प्रक्षेपण यह इस्रायल की अंतरिक्षविज्ञान क्षेत्र में पहली उड़ान थी|

लेकिन इस्रायल को इस कोल्डवॉर से भी ज़्यादा अपने पड़ोसी शत्रुराष्ट्रों के कारनामें अधिक परेशानी में डाल रहे थे| उसीमें, इजिप्त जल्द ही सोव्हिएत की सहायता से क्षेपणास्त्रसज्ज होनेवाला है, यह भनक इस्रायली गुप्तचरखाते को लगी| इसके लिए इजिप्त ने कुछ जर्मन इंजिनियर्स भी नियुक्त किये होने की ख़बर आयी| सन १९६१ के इजिप्त के ‘रिव्हॉल्युशन डे’ (२३ जुलाई) समारोह के उपलक्ष्य में इजिप्त की क्षेपणास्त्र-सुसज्जता का प्रदर्शन सारी दुनिया के सामने पेश करने की योजना बन रही थी| उसमें इस्रायल के मन में ख़ौंफ़ उत्पन्न हों यह उद्देश्य भी था ही|

तत्कालीन इस्रायली प्रधानमंत्री डेव्हिड बेन-गुरियन तक यह ख़बर पहुँचते ही उन्होंने फ़ौरन संबंधित रक्षा अधिकारियों तथा संशोधकों की बैठक बुलायी और क्या उससे पहले इस्रायली रॉकेट लॉंच किया जा सकता है, इसके बारे में चर्चा की| उसके अनुसार कुछ हफ़्तों में ही संपूर्ण इस्रायली बनावट का पहला २-स्टेज रॉकेट ‘शावित-२’ तैयार हुआ और ५ जुलाई १९६१ को वह सफलतापूर्वक लॉंच भी हुआ| इसके द्वारा इस्रायल ने इजिप्त को शह भी दिया था; साथ ही, इस्रायल कीं इस क्षेत्र की क्षमताएँ भी दुनिया के सामने आ गयी थीं| ऐसी क्षमता होनेवाले चन्द गिनेचुने देशों के गुट में अब इस्रायल का समावेश हुआ था|

इस्रायल स्पेस एजन्सी ने सन १९८८ में अपना संपूर्ण इस्रायली बनावट का सॅटेलाईट ‘ओफेक-१’ अंतरिक्ष में लॉंच किया|

सन १९६० के तथा १९७० के दशकों में, अंतराळविज्ञान के संशोधन-विकास के लिए बुनियादी ढॉंचे का निर्माण करते हुए संशोधन जारी रहा| लेकिन अंतरिक्ष की खोज करने के साथ ही, अंतरिक्षविज्ञान संशोधन को अब देश की लष्करी क्षमता बढ़ाने के लिए उपयोग में लाना चाहिए, यह एहसास इस्रायली सरकार को ख़ासकर सन १९७३ के ‘योम किप्पूर’ युद्ध के पश्‍चात् प्रकर्षपूर्वक हुआ| उससे पहले भी, सन १९६७ के ‘सिक्स-डे वॉर’ के बाद इजिप्त और सिरिया ये इस्रायल के दोनों पड़ोसी आक्रमक हो चुके होने के कारण, इस्रायल को स्वसुरक्षा के लिए भी टोह विमानों का उपयोेग पड़ोसी देशों की सीमाओं के नज़दीक करना मुश्किल बन चुका था|

तब तक कई विकसित देशों ने निगरानी के लिए टोह विमानों के बदले, कई शक्तिशाली उपग्रहों (सॅटेलाईट्स) का इस्तेमाल शुरू किया था| लेकिन इस्रायल का खुद का सॅटेलाईट न होने की वजह से इस्रायल को ‘सॅटेलाईट इंटिलिजन्स डाटा’ के लिए इन देशों पर निर्भर रहना पड़ता था| कई बार यह जानकारी देर से मिलती थी अथवा कभी कभार प्राप्त हुई जानकारी निकृष्ट दर्ज़े की रहती थी| सन १९७३ के युद्ध में इस्रायल को शत्रुराष्ट्रसेनाओं की गतिविधियों के बारे में आवश्यक जानकारी समय में नहीं मिली और जो मिली, वह भी अचूक नहीं थी| लेकिन उसी समय, अरब शत्रुराष्ट्रों को सोव्हिएत द्वारा इस्रायली सेना की गतिविधियों की अचूक जानकारी सॅटेलाईट डाटा के द्वारा समय समय पर दी जा रही थी|

यह सब देखकर, अब रक्षाक्षेत्र में तो किसी पर निर्भर रहकर नहीं चलेगा, यह एहसास इस्रायल को हुआ| अब या तो सॅटेलाईट ख़रीदना या फिर खुद का सॅटेलाईट विकसित करना, इसके अलावा और कोई चारा नहीं है, इस निष्कर्ष तक इस्रायली लष्करी अधिकारी, वैज्ञानिक आ पहुँचे| तत्कालीन प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन के सामने प्रस्ताव रखा गया| हालॉंकि वह तत्त्वतः मंज़ूर हो गया, उसपर तुरन्त काम शुरू नहीं हो सका| क्योंकि सन १९७९ में ईरान में राज्यक्रांति हुई और तबतक इस्रायल के साथ लष्करी तथा आर्थिक सहयोग कर रही वहॉं की ‘पेहलवी’ सत्ता का त़ख्ता पलट दिया जाकर सहयोग ख़त्म होने के कारण, इस्रायली रक्षाक्षेत्र को निधि की कमी महसूस होने लगी| अतः नया कोई भी प्रकल्प शुरू करना असंभव हो गया|

सन २०१७ में ‘इस्रो’ ने जो एक ही उड़ान में १०४ सॅटेलाईट्स का रेकॉर्ड प्रक्षेपण किया, उनमें इस्रायल के दो नॅनो सॅटेलाईट्स भी थे|

इस सारे घटनाक्रम में १९८० का दशक शुरू हुआ| सन १९८३ में ‘इस्रायल स्पेस एजन्सी’ की स्थापना की गयी| विज्ञान मंत्रालय के अधिकारक्षेत्र में होनेवाली इस राष्ट्रीय एजन्सी के पास, इस्रायल का अंतरिक्षविज्ञान कार्यक्रम तेज़ी से आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी| उससे पहले के २० साल ‘नॅशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के माध्यम से इस क्षेत्र का बुनियादी ढॉंचा बनाने का जो कार्य हुआ था, उसका उपयोग एजन्सी को हुआ|

कोई भी अंतरिक्षविज्ञान संशोधन यह इस्रायली अर्थव्यवस्था के लिए पूरक कैसे साबित होगा और इस्रायली जनता के लिए फ़ायदेमंद कैसे साबित होगा यह देखना, यह इस संस्था के प्रमुख कामों में से एक है; और उसके लिए उद्योगजगत् और संशोधक इनके बीच की कड़ी यह संस्थान है| साथ ही, विभिन्न देशों के साथ इस क्षेत्र के सहयोग को बढ़ाना; उसीके साथ, नयीं पीढ़ी को अंतरिक्षविज्ञान में रूचि उत्पन्न होकर देश को भविष्यकालीन वैज्ञानिक प्राप्त हों इसके लिए स्कूली तथा कॉलेज स्तर पर नाविन्यपूर्ण (इनोवेटिव) प्रकल्प, राष्ट्रस्तरीय प्रतियोगिताएँ आदि का आयोजन करना; शैक्षणिक स्तर पर तथा संशोधनसंस्थाओं के लिए आवश्यक बुनियादी ढॉंचे का विकास करना; बहुउद्देशीय सॅटेलाईट्स का विकास एवं निर्माण करना; देश के लिए उनका इस्तेमाल करने के साथ ही उनकी और उनके ज़रिये संभव होनेवालीं सेवाओं की अन्य देशों को भी बिक्री करना, इस क्षेत्र के लिए आवश्यक विभिन्न घटकों का उत्पादन करनेवाले स्टार्टअप्स में निवेश करके उन्हें प्रोत्साहन देना ये काम भी यह एजन्सी करती है|

इस एजन्सी ने सन १९८८ में अपना संपूर्ण इस्रायली बनावट का सॅटेलाईट ‘ओफेक-१’ अंतरिक्ष में लॉंच किया| इस लॉंच के साथ ही इस्रायल, उस समय ऐसी क्षमता होनेवाले – अमरीका, रशिया, इंग्लैंड़, जापान, भारत, फ्रान्स एवं चीन इन गिनेचुने देशों की श्रेणि में दाखिल हुआ| उसके बाद आजतक इस्रायल ने निरीक्षण सॅटेलाईट्स, स्पाय सॅटेलाईट्स, कृषि सॅटेलाईट्स ऐसे विभिन्न प्रकार के सॅटेलाईट्स लॉंच किये हैं|

‘नासा’ ने सन २००३ में आंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भेजे ‘कोलंबिया’ मिशन में सहभागी हुआ इस्रायली ऍस्ट्रोनॉट ‘इलान रॅमन’

सॅटेलाईट्सनिर्माण का खर्चा कम करने के लिए, उसकी उच्च क्षमता क़ायम रखते हुए भी उसका आकार तथा वज़न कम करना, उसके लिए नये हल्के दूसरे मटेरियल्स की खोज करना इसपर एजन्सी ने ज़ोर दिया है| छोटा आकार, कम क़ीमत, लेकिन ज़्यादा क्षमता होनेवाले ‘मिनिएचर सॅटेलाईट्स’ (मायक्रो तथा नॅनो सॅटेलाईट्स) यह फिलहाल दुनिया में इस्रायली अवकाशविज्ञान संशोधन की ख़ासियत मानी जाती है और उनकी मॉंग दुनियाभर से बहुत है| सन २०१७ में भारतीय अंतरिक्षविज्ञान संस्थान ‘इस्रो’ ने जो एक ही उड़ान में १०४ सॅटेलाईट्स का रेकॉर्ड प्रक्षेपण किया, उनमें इस्रायल के दो नॅनो सॅटेलाईट्स भी थे|

वैसे ही, ‘इलान रॅमन’ इस इस्रायली ऍस्ट्रोनॉट ने, अमरिकी विज्ञानसंशोधन संस्थान ‘नासा’ द्वारा सन २००३ में आंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर भेजे गये ‘कोलंबिया’ मिशन में भाग लिया था| लेकिन यह मिशन सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद लौटते हुए यह यान जलकर राख होकर उसमें रॅमन की दुर्भागी मृत्यु हुई| उसीके साथ सन २०१९ में इस्रायल ने चांद्रमुहिम का भी आयोजन किया|

ऐसा है यह इस्रायल का अंतरिक्षविज्ञान संशोधन….विज्ञान-तंत्रज्ञान क्षेत्र की इस्रायल की ऊँचाई को और भी बढ़ा रहा है|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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