पांच देश १.७ अरब इस्लामधर्मियों का भविष्य तय नही कर सकते – तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरकौलालंपूर – अमरिका, रशिया, ब्रिटेन, फ्रान्स और चीन यह सुरक्षा परिषद के स्थायि सदस्यता रखनेवाले पांच देश दुनिया भर के १.७ अरब इस्लामधर्मियों का भविष्य तय नही कर सकतें, यह बयान तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने किया है| मलेशिया के कौलालंपूर में शुरू इस्लामधर्मियों की परिषद में राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन बोल रहे थे| इस्लामधर्मिय देश अपनी शक्ति एकदुसरे से विवाद करने में जाया करने के बजाय एक हो और १.७ अरब इस्लामधर्मियों का भविष्य बनाने के लिए काम करें| इसके लिए इस्लामधर्मिय देशों की ताकतवर संगठन की जरूरत है, ऐसा काफी अहम दावा एर्दोगन ने किया|

मलेशिया की कौलालंपूर परिषदमें तुर्की, कतार और ईरान यह प्रमुख देश शामिल हुए है| आजतक ऑर्गनायझेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन(ओआयसी) यह इस्लामी देशों का सबसे बडा संगठन समझा जा रहा था| पर इससे अधिक प्रभावशाली विकल्प की जरूरत होने का संदेशा तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष ने इस दौरान दिया| फिलहाल इस्लामी देशों का नेतृत्व नही है| यह देश एक दुसरे से हो रहे विवाद में व्यस्त है, इस मुद्दे पर एर्दोगन ने नाराजगी व्यक्त की

आर्टिफिशल इंटेलिजन्स, क्वांटम कम्प्युटर्स, रोबोटिक तकनीक के विषय पर पुरी दुनिया में बातचीत हो रही है| पर, हम सभी अपनी पुरी ताकत अंदरुनि विवाद में जाया कर रहे है| दुनियाभर के १.७ अरब इस्लामधर्मियों के भविष्य को इससे खतरा बना है, और यह चित्र बदलने के लिए कोशिश करनी होगी| अपनी कमी एक होकर दूर करने का यही समय बना है, यह भी राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने आगे कहा|

तुर्की अपना रहे इस भुमिका की वजह से तुर्की पर काफी बडा दबाव बनाया जा रहा है| तुर्की की आवाज दबाने के लिए अंदरुनि एवं बाहरी दबाव बनाया जा रहा है| बगावत, आर्थिक आतंकवाद और दुष्प्रचार का इस्तेमाल करके तुर्की को रोकने की कोशिश हो रही है, फिर भी तुर्की इन कोशिशों की परवाह नही करेगा| पैलेस्टाईन, गाजा, रोहिंग्या, लीबिया, सोमालिया और सीरिया की समस्या की ओर तुर्की दुनिया का ध्यान आकर्षित करता ही रहेगा, यह दावा भी एर्दोगन ने किया| आतंकवाद को अधिकृत करने की साजिश शुरू है और ऐसे में तुर्की सभी आतंकी संगठनों से लडाई कर रहा है, यह भी एर्दोगन ने आगे कहा|

तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान की पहल से कौलालंपूर परिषदका आयोजन किया गया था| यह परिषद सौदी अरब और मित्रदेशों का वर्चस्व होनेवाली ओआयसीको चुनौती देनेवाली है, यह बात भी स्पष्ट हो रही है| इस वजह से इस परिषद में शामिल होने से सौदी ने इन्कार किया है और पाकिस्तान भी इस परिषद में शामिल ना हो, इस लिए सौदी ने दबाव भी बनाया था| इसका असर हुआ और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इम्रान खान ने इस परिषद का हिस्सा होने से इन्कार किया| यह निर्णय करनेपर इम्रान खान के विरोध में पाकिस्तान से ही आलोचना हो रही है|

पर, तुर्की ने इस परिषद के लिए आक्रामकता से कोशिश करके इस्लामी देशों का नेतृत्व हाथ में लेने की तैयारी शुरू की है| तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य की तरह विस्तार करने का उद्देश्य एर्दोगन ने अपनी जनता के सामने रखा है| इस वजह से कौलालंपूर परिषद की अहमियत बढी है| अगले समय में पश्‍चिमी देशों के साथ ही इस्लामी देशों का नेतृत्व कर रहे सौदी अरब एवं मित्रदेशों को तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष चुनौती देंगे, यह संभावना स्पष्ट हो रही है|

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