९९. मत्स्यपालन

‘मत्स्यपालन’ यह इस्रायल में कृषि के बाद का अहम व्यवसाय है| अब जिस देश को समुद्रकिनारा प्राप्त होता है, उस देश के मच्छिमारी से पूर्वापार मज़बूत रिश्ता होता ही है; फिर उसमें इस्रायल की क्या अलग बात है? तो इस्रायल केवल मच्छिमारी कर रहा न होकर ‘मत्स्यपालन’ यानी ‘मछलियों की ख़ेती’ करने पर ज़ोर देता है| मछलियों की ख़ेती?

हॉं, मच्छिमारी हालॉंकि दुनिया में प्राचीन समय से ही चली आ रही है, मग़र फिर भी धीरे धीरे दुनिया की जनसंख्या जैसे जैसे बढ़ता गयी, वैसे वैसे मच्छिमारी में से प्राप्त मछलियॉं अपर्याप्त होने लगीं| उसीके साथ, पर्यावरणबदलाव तथा ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे संकटों के कारण मछलियों के तथा अन्य जलचरों के अस्तित्व को ही ख़तरा पैदा होने लगा| इसलिए भी, मच्छिमारी में से प्राप्त होनेवालीं मछलियों की तादात और भी कम होने लगी| मछलियों की कई प्रजातियॉं समय की धारा में इस प्राकृतिक संकट में लुप्त होने लगी हैं|

इतना ही नहीं, बल्कि मिलनेवालीं मछलियों का आकार भी धीरे धीरे छोटा होता जा रहा है| नैसर्गिक कारणों के साथ ही, इसका एक प्रमुख मानवनिर्मित कारण यह है कि मछलियों की मॉंग बढ़ने के कारण, मिलीं हुईं सारी मछलियॉं पकड़ने की ओर मच्छिमारों का रूझान बढ़ गया है| इस कारण, जन्मी हुईं मछलियों में से अधिकांश मछलियों को बढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता, जन्म होने के कुछ ही दिनों में पकड़ीं जाने के कारण उनका आकार भी छोटा होता है औैर उनका पुनरुत्पाद भी धीरे धीरे कम होता चला जा रहा है|

‘ऍक्वाकल्चर’ यह उद्योग इस्रायल में ‘ऍग्रीकल्चर’ उद्योग जैसा ही विकसित हो रहा है और ऍग्रीकल्चर के लिए पूरक व्यवसाय साबित हो रहा है|

ऐसे सारे संकटों पर संशोधन करनेवाले इस्रायली संशोधकों को ‘मत्स्यपालन’ यानी ‘मछलियों की ख़ेती’ यह उपाय उसपर दिखायी दिया| वैसे यह संकल्पना कोई नयी नहीं थी| मेडिटेरियन (भूमध्य) समुद्र में तैरते पिंजड़े वगैरा लगाकर मत्स्यपालन के प्रयास शुरू ही थे| लेकिन गत कई दशकों से इस्रायल में इसपर अधिक व्यवसायिक दृष्टि से विचार हो रहा है और अहम बात यानी समुद्र पर निर्भर न रहते हुए, देशांतर्गत इस मत्स्यखेती को कैसे किया जा सकता है, इसपर संशोधन शुरू हुआ|

दरअसल कृषि के लिए और पूरे इस्रायल में बस्तियों का निर्माण करने के लिए जो प्रतिकूल हालात थे, वैसे ही प्रतिकूल हालात इस क्षेत्र के लिए भी थे| गर्म-शुष्क तापमान, पानी की कमी, रेगिस्तानी ज़मीन….सबकुछ प्रतिकूल|

लेकिन जिस लगन से और जिगरबाज़ी से इस्रायल ने ‘हटके’ (‘आऊट ऑफ द बॉक्स’) विचार करते हुए सारे इस्रायल में बस्तियों का निर्माण किया, रेगिस्तान में भी ख़ेती सफलतापूर्वक कर दिखायी और इन क्षेत्रों में वह दुनियाभर में अनुकरणीय बना, उन्हीं गुणों से उसने रेगिस्तान में ‘मछलियों की ख़ेती’ भी सफल कर दिखायी| ऊपरोक्त क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी सरकार, संशोधनकेंद्र, युनिव्हर्सिटीज् के डिपार्टमेंट्स, क़िसान, मच्छिमार और आम जनता इन्होंने एकत्रित होकर प्रयास कर इस क्षेत्र में नेत्रदीपक सफलता प्राप्त की|

इस्रायल को हालॉंकि समुद्री किनारा प्राप्त है, मग़र फिर भी उस हवामान में और समुद्र में कुछ थोड़े ही प्रकार की मछलियॉं प्राप्त होती हैं| लेकिन इस्रायल में आये हुए स्थलांतरित ये कई पीढ़ियों से दुनिया के विभिन्न भागों में निवास कर आये थे| उनके खाने-पीने की पसन्द उस उस स्थान के अनुसार और आबोहवा के अनुसार विकसित हो चुकी थी| उनमें वे जिन स्थानों से आये थे, उस स्थान में प्राप्त होनेवालीं मछलियॉं भी समाविष्ट थीं| उनमें से कई लोगों को इस्रायल में मिलनेवालीं मछलियॉं रास आनेवालीं नहीं थीं|

सन १९३०-४० के दशकों में पूर्वी युरोप से आये कई मत्स्याहारी, वहॉं से विभिन्न प्रकार की ज़िन्दा मछलियॉं अपने साथ ले आये थे और उन्होंने अपने अपने घर के आँगन में मछलियों के लिए विशेष हौज़ बनाकर उनमें उनका पालन करने की शुरुआत की| कुछ ही समय में उनकी संख्या बढ़ती जाती थी| कुछ ‘किब्बुत्झ’ के निवासियों का तो इस प्रकार का मत्स्यपालन यही मुख्य व्यवसाय बन गया| इसे ही इस्रायल की मछलियों की पहली अनौपचारिक ‘ख़ेती’ कहा जा सकता है|

लेकिन पीने के पानी का भी दुर्भिक्ष्य होनेवाले इस्रायल में मछलियों की पैदाइश के लिए पानी मिलना बहुत ही मुश्किल था| उस दौर में रेगिस्तान में ख़ेती करने की दिशा में भी कई प्रयोग किये जा रहे थे और इन प्रयोगों के दौरान नेगेव्ह के रेगिस्तान में ज़मीन के नीचे पानी के प्रचंड बड़े जलाशय की खोज हुई थी| यह पानी थोड़ासा नमक़ीन (‘ब्रॅकिश’) होने के कारण पीने के लिए लायक नहीं था| इस कारण इस पानी को, पीने के अलावा अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल करने के बारे में सोचा गया| ख़ेती के लिए भी यह पानी उपयोगी होने की बात साबित हुई| इस कारण, क्या मत्स्यपालन के लिए भी इस पानी का ही इस्तेमाल किया जा सकता है, इसकी संभावना को आज़माकर देखा गया|
यह ‘ब्रॅकिश’ पानी और रेगिस्तान का तापमान मछलियों के लिए अच्छा साबित हुआ और इस पानी से तैयार किये गये जलाशयों में उनकी पैदाइश तेज़ी से होने लगी| ५-६ महीनों में मछलियों की ‘एक फ़सल’ निकल जाती थी, अर्थात् मछलियों के पुनरुत्पाद की एक आवृत्ति (‘इटरेशन’) पूरी हो जाती थी| यानी सालभर में दो आवृत्तियॉं पूरी हो जाती थी| इस कारण यह व्यवसाय फ़ायदेमन्द साबित होने लगा|

साथ ही, यहॉं पर पारंपरिक ख़ेती और मछलियों की ख़ेती ऐसे दोनों क्षेत्रों का पूरकता से विचार किया जा रहा था| एक बार ५-६ महीनों में मछलियों की ‘एक फ़सल’ पूरी होने के बाद उस जलाशय के पानी का यदि पारंपरिक ख़ेती के लिए इस्तेमाल किया (‘रिसायकल’), तो वह पानी खाद जैसा काम करता है और फ़सल अधिक ज़ोरदार बढ़ती है और ख़ेती से अधिक उत्पाद मिलता है, ऐसा भी संशोधकों के ध्यान में आया|

केवल इस्रायली लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि ‘एक्स्पोर्ट मार्केट’ के बारे में सोचकर, दुनियाभर में लोकप्रिय होनेवालीं खानेलायक मछलियों की पैदाइश की जाने लगी|

‘मछलियों की ख़ेती’ ने पहला पड़ाव पार किया था – यानी इस वातावरण में वह यक़ीनन ही हो सकती है, यह सिद्ध हुआ था| अब अगला पड़ाव था – मछलियों की खानेलायक विभिन्न प्रजातियों की पैदाइश करना| इस पड़ाव पर, केवल इस्रायल में लोकप्रिय होनेवालीं मछलियॉं ही नहीं, बल्कि ‘एक्स्पोर्ट मार्केट’ के बारे में सोचकर, दुनियाभर में लोकप्रिय होनेवालीं खानेलायक मछलियों की पैदाइश करने के प्रयास शुरू हुए| सालमन, ट्युना, टिलापिया इन जैसे, दुनिया के विभिन्न भागों के खानों में लोकप्रिय होनेवालीं कई मछलियों की, तथा दिखावटी मछलियों की भी पैदाइश की जाने लगी| साथ ही, कम से कम पानी में अधिक से अधिक ‘मछलियों की फ़सल’ कैसे की जा सकती है, इसपर भी संशोधन शुरू था|

फिलहाल इस्रायल में ‘ऍक्वाकल्चर’ यह उद्योग ‘ऍग्रीकल्चर’ जितना ही बड़ा होता जा रहा है और ऍग्रीकल्चर के लिए पूरक व्यवसाय साबित हो रहा है| आज इस्रायल में इस तरह पैदाइश कीं हुईं मछलियॉं ब्रिटन, अमरीका, युरोपीय देश ऐसे कई देशों में लोकप्रिय होती जा रही होकर, वह बड़ा ‘एक्स्पोर्ट मार्केट’ इस्रायल के लिए उपलब्ध हो चुका है| सालाना लगभग २० हज़ार टन मछलियों की पैदाइश इस उद्योग के ज़रिये की जाती है| उसीके साथ, इस उद्योग के लिए आवश्यक विभिन्न केमिकल्स, औषधियॉं, अन्य सामग्री इनका भी पूरक उद्योग इस्रायल में विकसित हुआ है| इस्रायली सरकार द्वारा, यह उद्योग करनेवालों को, क़िसानों की तरह ही प्रोत्साहन दिया जाता है और संशोधन, प्रशिक्षण, इन्शुरन्स आदि सभी प्रकार की सहायता की जाती है|

शुरू शुरू में केवल संशोधन स्थिति में होनेवाले इस्रायल के मत्स्यपालन उद्योग ने अब अच्छीखासी उड़ान भर दी है|

आज तक की पद्धति के अनुसार इस्रायल ने ऍक्वाकल्चर में किया हुआ अपना संशोधन दुनिया के लिए खुला किया है| घाना, केनिया, जर्मनी, भारत ऐसे कई देशों में इस उद्योग की जड़ें मज़बूत करने के लिए इस्रायली संशोधक सहायता कर रहे हैं|

मछलियॉं यह प्रोटीन्स, जीवनावश्यक चरबी तथा पोषकद्रव्य इनका उत्तम स्रोत मानीं जाती हैं| दुनिया में अधिक से अधिक मांसाहारी लोग मत्स्याहार की ओर अपना रूझान दर्शा रहे हैं| युनो के एक रिपोर्ट के अनुसार, १ मत्स्याहारी इन्सान साल भर में औसत १७ किलो मछलियॉं खाता है| इसीके साथ, दुनिया की जनसंख्या भी अगले लगभग तीस वर्षों में ९ अरब का पड़ाव पार करेगी, ऐसा अँदाज़ा है| ज़ाहिर है, मछलियों की मॉंग दुनिया में बढ़ती ही चली जायेगी| लेकिन उसी समय, प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण मछलियों की नैसर्गिक उपलब्धता दिनबदिन घटती ही चली जानेवाली है| ऐसे में, भविष्य में मच्छिमारी की अपेक्षा ‘मछलियों की ख़ेती’ ही अधिक की जायेगी, ऐसे आसार दिखायी दे रहे हैं|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.