फर्डिनंड झेपेलिन

कभी कोई यंत्र हवा में उड़कर एक जगह से दूसरी जगह मनुष्यों को बिठाकर ले जाएगा, ऐसा यदि किसी ने दो दशक पहले किसी को कहा होता तो उसका मजाक उड़ाया जाता, ऐसा कई बार मजाक से कहा जाता है। किंतु फर्डिनंड झेपेलिन जैसे वैज्ञानिक के परिश्रम के कारण ऐसे अनेक स्वप्न आगे आनेवाले युग में सच साबित हुए। झेपेलिन के ही नाम से पहचाने जानेवाला प्रचंड आकार वाला विमान (हवाई जहाज़) यह उनकी विलक्षण कल्पना का आविष्कार था। आज के हवाई जहाज की अपेक्षा इस हवाई जहाज के तंत्र बहुत पिछड़े हुए होने पर भी आधुनिक हवाई जहाज की ओर रखा गया यह पहला कदम था।

फर्डिनंड झेपेलिन

फर्डिनंड झेपेलिन का जन्म ८ जुलाई सन् १८३८ को हुआ। नौजवान, महत्त्वाकांक्षी एवं सरदार होने के कारण फ़ौज में काम करना यह अपना कर्तव्य है, यह मानकर वे सेना मे दाखिल हो गए। सन् १८६० में अमेरिकन यादवी युद्ध में झेपेलिन ने प्रत्यक्ष रूप से सहभागी हुए। वे लेफ्टनंट जनरल के पद पर पहुँचने के बाद सेना की नौकरी छोड़ दी और सारा ध्यान विमान विद्या इस विषय पर केंद्रित किया।

इसके पहले भी हवाई जहाज आकाश में उड़ाने के प्रयोग हुए थे। हाईड्रोजन और हेलियम गैस के उपयोग द्वारा हवाई जहाज आकाश में उड़ाए जाते थे। ये दोनों गैस हवा की अपेक्षा हलके होते हैं इसीलिए हवाई जहाज आकाश में तैरता है। उन जहाजों को सुदृढ़ ढ़ाँचा नहीं था जिसके कारण उसका आकार बदलना पड़ता था। झेपेलिन ने अपने अभ्यास के द्वारा इनमें रहने वाली त्रुटियों को पहचाना और हवाई जहाज के लिए पहली बार उन्होंने अ‍ॅल्युमिनियम का सुदृढ़ ढ़ाँचा बनाया। इस ढ़ाँचे के अंदर की ओर गैस की बड़ी-बड़ी थैलियाँ बाँधने की व्यवस्था की गई थी।

झेपेलिन के द्वारा उपयोग में लाए गए अ‍ॅल्युमिनियम के ढाँचेवाले हवाई जहाज की लंबाई १२० मीटर थी। १९ अश्‍वशक्तिवाले दो इंजिन उसमें बिठाए गए थे। २ जुलाई सन् १९०० के दिन झेपेलिन ने पहला हवाई जहाज आकाश में उड़ाया। अगले कई वर्षों तक झेपेलिन अपने हवाई जहाज में सुधार करते रहे। इस हवाई जहाज में पहले एक प्रकार के बलून का उपयोग शत्रुओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता था। इस पर से झेपेलिन को लगा कि पता लगाते समय या शत्रुओं की जानकारी प्राप्त करने के साथ ही यदि बम फ़ेका जा सके तो! और उनके ऐसा सोचने पर हमेशा की तरह ही उनका मजाक उड़ाया गया।

यह कल्पना प्रत्यक्ष में लाने के लिए उनके पास आर्थिक बल और जगह नहीं थी। रिटेनबर्ग के राजघराने के व्यक्ति से उन्हें मदत मिली। सन् १८९८ के आसपास उनके कार्य को थोड़ी गति मिली। दो वर्षों में LZ1 बनाया गया किन्तु यह अयशस्वी साबित हुआ। उसके पाँच वर्षों के बाद LZ2 बनाया गया किन्तु प्रात्यक्षिक के समय किसी कारणवश वह पूर्ण रूप से बेकार हो गया। फ़्रॅकफर्ट इसके बाद एक वर्तमान पत्र की प्रसिद्धि से संबंधित कार्य करनेवाले ह्यूगो इकतर की सहायता से उन्होंने लोगों तक पहुँचने का प्रयत्न करके देखा।

इसके बाद की घटना से झेपेलिन की कार्यवाही एवं प्रयोग सफल  हुए। अचानक एक बड़ी रकम उन्हें प्राप्त हुई । राजघराने के कैझर के द्वारा उन्हें १०,०००० मार्क प्राप्त हुए और संशोधक प्रयोग के चक्र तेज़ी से शुरू हो गए। कारखाने के कामगार, पाठशाला, विश्‍वविद्यालय, व्यापारी वर्ग, सामान्य नागरिक इस तरह सभी स्तरों से इस हवाई जहाज के यशस्वी उड़ान के लिए आर्थिक, सामाजिक सहायता मिली। जर्मनी की जनता के द्वारा दिया गया यह सहकार्य सराहनीय ही था।

महायुद्ध की शुरुआत होने पर इस हवाई जहाज को ‘बाँबर’ इस नाम से उपयोग में लाया गया। लंदन शहर पर पहला बम हमला ३१ मई १९१५ को हुआ। बम हमले में १६ झेपेलिन विमानों ने केवल एक रात में बम वर्षाव किया। दुश्मनों के बचाव करनेवाले विमानों एवं तोपों से झेपेलिन यह विमान अधिक ऊँचाई पर पहुँच सकता था और रात के अंधेरे में तो इस हवाई जहाज पर हमला करना बहुत कठिन था। जर्मन झेपेलिन विमान यह उस काल में जबरदस्त दहशत के लिए प्रसिद्ध था। इस हवाई जहाज़ के द्वारा किए गए हमले करने के कारण भौतिक दृष्टि से नुकसान कम हुआ किंतु इससे जनता पर मानसिक दहशत बहुत बढ गयी थी।

सन् १९०९ में झेपेलिन ने ‘डेलाग’ नाम के आवागमन (वाहतूक) कंपनी की स्थापना की। सन् १९१० में प्रत्यक्ष में मनुष्यों के आवागमन की शुरुवात हुई। इस काल में हवाई जहाज का वेग प्रत्येक घंटे केवल ४२ कि. मी. था। इसके बाद के ४ वर्षों में हजारों लोगों ने झेपेलिन विमान में सफर किया। सन् १९९८ वर्ष में झेपेलिन हवाई जहाज ने अटलांटिक महासागर पार किया। इसके साथ ही पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने का विक्रम भी किया। सेना की दृष्टी से यह जहाज ज़्यादा उपयोगी सिद्ध नहीं हुआ। इसके आगे जैसे-जैसे हवाई जहाज का विकास होने लगा, वैसे-वैसे झेपेलिन हवाई जहाज का महत्त्व काम होने लगा।

फ़्रॅकफर्ट से सन ३ मई १९३७ को हिडेन बर्ग LZ-129 लेकहर्स्ट के लिए रवाना हुए। तीन दिन के बाद शाम को ७ बजकर २४ मिनिट पर लेकहर्स्ट पर उतरते समय हिडेनबर्ग नाम का झेपेलिन यह भीतर के उतरनेवाले यात्रियों सहित जलकर खाक हो गया। मई १९३७ के बाद झेपेलिन के उपयोग पर पाबंदी लगा दी गई और इस हवाईजहाज का युग समाप्त हो गया। किंतु इसके पहले ही सन् १९१७ में झेपेलिन इस हवाई जहाज़ के प्रवर्तक झेपेलिन गुजर गए थे। दूसरे महायुद्ध के काल में झेपेलिन कंपनी ने V-2 रॉकेट की रचना की। २०वीं सदी के पहले ४० वर्षों तक इस हवाई जहाज ने आसमान में अपना वर्चस्व बनाए रखा।

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