फ़ेलिक्स हॉफ़मन

विज्ञान ने करोड़ों लोगों के लिए गुणकारी साबित हो सकने वाली ऐसी औषधि की निर्मिति की। लगभग १०८ वर्षों पूर्व तैयार होनेवाली ‘अ‍ॅस्पिरिन’ का गुणधर्म एवं उपयोग आगे चलकर बढ़ता ही गया। दुनियाभर के गरीब राष्ट्रों के नागरिकों के भी क्षमता के अनुसार उपयोग में लाया जा सके, ऐसी औषधियों का प्रतीक मानी जाती है यह अ‍ॅस्पिरिन।

फ़ेलिक्स हॉफ़मन

सिंकोना पेड़ों की छाल से तैयार किये जानेवाले क्विनाईन का उपयोग मलेरिया के बुखार पर १६३० से शुरु किया गया। परन्तु इस औषधि को बनाना महँगा साबित हो रहा था। १७६३ में इंग्लैंड के विलो पेड़ की छाल में यह औषधि गुण प्राप्त हुआ। ‘सॉलिकेसी’ यह इसका शास्त्रीय नाम है। १८७६ में स्कॉटिश डॉ. थॉमस मैकलॉगल ने र्‍हुमैटिक फ़ीवर के अनेक मरीज़ों पर ‘सॅलिसिलीक अ‍ॅसिड’ के सफल प्रयोग किए।

भौतिक विज्ञान, जीवशास्त्र, रसायनशास्त्र एवं आधुनिक वैद्यकीय विज्ञान नामक ये शाखाएँ बड़े ही तेज़ी के साथ विकसित हुईं। बढ़ते हुए वैज्ञानिक संशोधन के साथ ही औद्योगिक विकास की गति भी जोरदार रूप में बढ़ रही थी। जर्मनी के प्रसिद्ध बायर कंपनी के रसायनशास्त्रज्ञ फ़ेलिक्स हॉफ़मन ने सोडियम सॅलिसिलेट को लेकर एक सौम्य औषधि का निर्माण किया ‘अ‍ॅसिटाइल सॅलिसिलीक अ‍ॅसिड’ यह उस औषधि नाम रखा गया। स्पिरिया उलमानिया नामक इन पेड़ों से निकलनेवाले सॅलिसिलीक अ‍ॅसिड के समान ही यह औषधि थी। acityl का a यह अक्षर एवं spiraea का spir इन दोनों अक्षरों को मिलाकर aspirin यह नाम तैयार हुआ।

अ‍ॅस्पिरिन के संशोधनकर्ता रसायन शास्त्रज्ञ फ़ेलिक्स हॉफ़मन का जन्म लुडविसबर्ग नामक स्थान पर हुआ था। म्युनिच में उन्होंने रसायनशास्त्र की शिक्षा हासिल की। १८९४ में बायर नामक औषधि बनानेवाली कंपनी के संशोधन विभाग का कारोबार वे सँभालने लगे। १९०५ में नोबल पुरस्कार विजेता कहलानेवाले एवं फ़ेनिक्स के प्राध्यापक रहने वाले अ‍ॅडॉल्फ़ व्हॉन बेयर ने स्वयं होकर फ़ेलिक्स की इस कामगिरी की सिफारिश की थी।

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नैसर्गिक पेड़-पौधों से बनाये जानेवाले सॅलिसिलीक अ‍ॅसिड के समान ही ‘अ‍ॅस्पिरिन’ नामक यह कृत्रिम रसायन वैज्ञानिकों ने तैयार किया। अ‍ॅस्पिरिन के निर्माण के लिए अब पेड़ों की छाल निकालने की ज़रूरत नहीं रही। बगैर पेड़ों को तोड़े ही औषधि की निर्मिति करने में अब सुलभता आ गयी थी। इसे रसायनशास्त्र की काफ़ी बड़ी विजय ही माननी पड़ेगी। इसीलिए अ‍ॅस्पिरिन को पर्यावरणमित्रतापूर्ण यानी इको फ्रेंडली औषधि माना जाता है। इस औषधि की निर्मिति बडे पैमाने पर होकर दुनिया भर में इसकी निर्यात की जाने लगी। अ‍ॅस्पिरिन का अन्य अधिकार एक कंपनी के पास ही था। प्रथम विश्‍वयुद्ध के अंतिम चरण में इस कंपनी की जर्मनी की जायदाद एवं अनन्य अधिकार को जप्त कर लिया गया।

दूसरी ओर अ‍ॅस्पिरिन बनाने की दूसरी रासायनिक पद्धति को ढूँढ़ने के लिए बीस हजार पौंड की बक्षिस जाहिर की गयी थी। ऑस्ट्रेलियन रसायन विशेषतज्ञ जॉर्ज निकोलस ने दूसरी रासायनिक पद्धति भी ढूँढ़ निकाली और बक्षिस भी हासिल कर लिया। इस औषधि का ‘अ‍ॅस्प्रो’ नामकरण किया गया।

वेदनानाशक, बुखार कम करने वाली आदि बहुविध उपयुक्तता होनेवाले अ‍ॅस्पिरिन को एक नया परिणाम प्राप्त हुआ। वैद्यकीय विज्ञान में संशोधन कार्य बेरोकटोक निरंतर चलता ही रहता है। सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म की ओर इस प्रकार का प्रवास लगातार होता ही रहता है। वैज्ञानिक शाखाओं को विकास का फ़ायदा वैद्यकीय विज्ञान को होता है। हृदयविकार, एकांगवात का झटका आने का प्रमाण अ‍ॅस्पिरिन के कारण कम होता है, यह बात आज सप्रयोग सिद्ध हो चुकी है।

अ‍ॅस्पिरिन के बहुगुणी उपयोगों में से एक गुण संशोधन के पश्‍चात् सिद्ध होने के मार्ग पर है। इस औषधि के कारण बड़ी आँत में होनेवाले कर्करोग का प्रमाण बड़ी मात्रा में कम हो सकता है, इस प्रकार का शोधाभ्यास अभी-अभी हुआ है। साथ ही अ‍ॅस्पिरिन के साईड इफ़ेक्टस के बारे में अध्ययन चल रहा है।

१८९७ में अ‍ॅस्पिरिन के शोध के पश्‍चात् हॉफ़मन एक फ़ार्मास्युटिकल कंपनी के मार्केटिंग विभाग में १९२८ तक कार्यरत थे। ८ फ़रवरी १९४६ को उनका निधन हो गया।

२००२ में विख्यात एवं प्रसिद्ध संशोधनकर्ताओं की शृंखला में उनका नाम भी जुड़ा गया।

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