उत्सर्जन संस्था – मूत्रपिंड – ५

ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन और ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट GFR से क्या तात्पर्य है, यह हमने पिछले लेख में देखा। आज हम यह देखेंगे कि GFR यानी ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट कौन-कौन से घटकों पर निर्भर होता है अथवा कौन-कौन से घटक यह रेट तय करते हैं।

ग्लोमेरूलस में फिल्ट्रेशन रेट मुख्यत: दो बातों से तय होता है –

१) नेट फिल्ट्रेशन दबाव : ग्लोमेरूलर केशवाहनियों के आवरण के दोनों ओर विविध दबाव कार्यरत रहते हैं। पिछले लेखों में रक्त की / रक्तप्रवाह की जानकारी लेते समय हमने रक्तवाहनियों पर कार्यरत रहनेवाले विविध दबाव देखे हैं। हैड्रोस्टॅटिक दबाव, शरीर के द्रव में विविध घटकों कोलॉइड ऑस्मॉटिक दबाव (मुख्यत: प्रोटीनों के कारण निर्माण होनेवाला) यह दबाव यह तय करता है कि केशवाहनियों में द्रव कौन सी दिशा में प्रवाहित होगा।

द्रव के फिल्ट्रेशन को मदद करनेवाली शक्ति और उसका विरोध करनेवाली शक्ति का जोड़-घटाव यानी फिल्ट्रेशन दबाव। फिल्ट्रेशन को मदत करनेवाले और उसका विरोध करनेवाले घटक कौन-कौन से हैं, अब हम यह देखेंगे।

अ) ग्लोमेरूलस में हैड्रोस्टॅटिक दाब : यह दाब 60 mm of Hg होता है। यह दाब फिल्ट्रेशन को मदद करता है।
ब) ग्लोमेरूलस में कोलॉइड आस्मॉटिक दाब : यह दाब 32 mm of Hg होता है और यह फिल्ट्रेशन का विरोध करता है।
क) बौमन्स कॅपसूल में हैडोस्टॅटिक दाब : यह 18 mm of Hg होता है और फिल्ट्रेशन को विरोध करता है।
ड) बौमन्स कॅपसूल में कोलॉइड ऑस्मॉटिक दाब : यह दाब फिल्ट्रेशन को मदद करता है। बौमन्स कॅपसूल द्रव में प्रोटीन्स लगभग नगण्य होते हैं (उनका फिल्ट्रेशन नहीं होता) इसीलिए यह दाब साधारणत: ‘शून्य’ होता है।

इन चार घटकों का जोड़-घटाव यानी नेट फिल्ट्रेशन दाब / यह इसप्रकार लिखा जा सकता है –
नेट फिल्ट्रेशन दाब = अ+ड-ब-क
= 60+0-32-18
= 10 mm of Hg

यानी नेट फिल्ट्रेशन दाब 10 mm of Hg होता है। यही सूत्र आकृति में ऐसे दिखाया जा सकता है।
२) ग्लोमेरूलर केशवाहिनीओं का फिल्ट्रेशन कोइफिशंट : GFR तय करनेवाला यह दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है। इस कोइफिशंट को kf लिखते हैं।

उपरोक्त दोनों घटकों का ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट से (GFR) संबंध इसप्रकार दर्शाया जा सकता है।
GFR = नेट फिल्ट्रेशन दाब X kf

यानी दोनों घटकों का गुणाकार। हमें GFR कितना, यह दिखायी देता है। kf को प्रत्यक्ष नापा नहीं जा सकता परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इसे नापा जा सकता है। वो ऐसे,
kf = GFR / नेट फिल्ट्रेशन दाब।
हमारा सर्वसाधारण GFR प्रति मिनट १२.५ मिली होता है। नेट फिल्ट्रेशन दाब 10 mm of Hg होता है। अत: kf = १२५/१०
= १२.५ मिली/मिनिट/mm of Hg होता है।
शरीर की अन्य केशवाहनियों का फिल्ट्रेशन कोइफिशंट की तुलना में ग्लोमेरूलर केशवाहनियों का कोइफिशंट लगभग ४०० गुना ज्यादा होता है।

इसीलिए यहाँ पर अतिशय वेग से द्रव छाना जाता है।

उपरोक्त सभी सूत्रों से यह समझा जा सकता है कि कौन से घटकों के कारण GFR बढ़ता है और कौन से घटकों से कम होता है।

फिल्ट्रेशन कोइफिशंट बढ़ने पर GFR बढ़ जाता है और कोइफिशंट कम हो जाने पर कम होता है। निरोगी अवस्था में kf में बदलाव नहीं होता। परन्तु बीमारी में kf कम हो जाता है। kf के कम होने के मुख्यत: दो कारण होते हैं-

१) कार्यरत ग्लोमेरूलर केशवाहनियों की संख्या में घटने पर kf कम हो जाता है।
२) ग्लोमेरूलर केशवाहनियों का आवरण मोटा हो जाने पर उसकी छानने की क्षमता कम हो जाती है। मधुमेह, पुराना उच्च रक्तदाब जैसी बीमारियों में केशवाहनियों का आवरण मोटा हो जाता है और धीरे-धीरे उसकी कार्यक्षमता समाप्त हो जाती है।

बौमन्स कॅपसून में हैड्रोस्टॅटिक दाब के बढ़ जाने पर GFR कम होता है क्योंकि यह दाब फिल्ट्रेशन का विरोध करता है। मूत्रमार्ग से पेशाब के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने पर बौमन्स कॅपसून में हैट्रोस्टॅटिक दाब बढ़ जाता है। मूत्रपिंड नलिका (ureters) अथवा मूत्रपिंड के पेलविस में मूतखडा (stone) अटकने पर पेशाब का प्रवाह अटक जाता है। फलस्वरूप बौमन्स कॅपसूल में हैड्रोस्टॅटिक दाब बढ़ जाता है। मूतखडा (stone) पर समय रहते इलाज न किए जाने पर यह बढ़ा हुआ दाब मूत्रपिंड को हमेशा के लिए बेकार कर सकता है।

GFR पर असर डालनेवाले अन्य घटक कौन-कौन से हैं, यह हम अगले लेख में देखेंगे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.