उत्सर्जनसंस्था भाग – २

आज हम अपने मूत्रपिंडो की आंतरिक रचना देखेंगे। प्रत्येक प्रौढ़ व्यक्ति में मूत्रपिंड एकजुट होते हैं। परन्तु गर्भावस्था में प्रत्येक मूत्रपिंड में लगभग बारह लोब्स होते हैं। बच्चे के जन्म के बाद ये सभी लोब्स एकत्रित होकर एकजुट मूत्रपिंड तैयार होता है। प्रत्येक मूत्रपिंड के दो प्रमुख विभाग होते हैं, एक बाहरी और एक अंदरुनी। बाहरी भाग को कॉरटेक्स (Cortex) कहते हैं तथा अंदरुनी भाग को मेड्युला (Medulla) कहते हैं। इन दोनों भागों में असंख्य सूक्ष्म नलिकायें होती हैं। इन नलिकाओं को Rental tubules कहते हैं। कॉरटेक्स के मेड्युला से सटे भाग को जक्स्टा मेड्युलरी भाग कहते हैं।

    अब हम मूत्रपिडों के सूक्ष्म अंदरुनी भाग के बारे में समझेंगे। इसमें जिन घटकों के बारे में हम जानकारी प्राप्त करनेवाले हैं उन सभी घटकों के कार्य निश्चित परन्तु महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रत्येक मूत्रपिंड अनगिनत रीनल नलिकाओं से बना हुआ होता है। इन्हें युरिनिफेरस नलिका भी कहते हैं।

    प्रत्येक रीनल नलिका के प्रमुख दो भाग होते हैं –

१) नेफ्रॉन – जिसमें मूत्र की निर्मिति होती है।

२) कलेक्टींग नलिका – जो तैयार हुए मूत्र को एकत्र करने का कार्य करती है।
    हमारे संपूर्ण शरीर की कोशिकाओं के अंतर्गत और बाहय द्राव (Body fluids) के अनावश्यक और घातक दोनों घटकों का उत्सर्जन मूत्रपिंड करते हैं। इन घटकों को उ्न तक पहुँचाने का काम रक्त करता है। साथ ही शरीर के द्राव में उपस्थित क्षार एवं पानी का संतुलन बनाये रखने का कार्य मूत्रपिंडों द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान शरीर का आवश्यकता से अधिक पानी शरीर के बाहर निकाला जाता है। पानी, क्षार, शरीर के लिए घातक एवं अनावश्यक रहने वाले घटक इनका मिश्रण ही मूत्र होता जै। इस मूत्र को तैयार करना, रक्त और मूत्र के घटकों में संतुलन बनाये रखने के सभी कार्य असंख्य मूत्रपिंड नलिकाओं द्वारा किया जाता है।

    कार्यों की पहचान करने के लिए हम इन नलिकाओं की रचना देखेंगे।

१) नेफ्रॉन : मूत्र के निर्माण का यह प्रमुख यंत्र है। नेफ्रॉन के दो उपविभाग होते हैं। पहले भाग को रीनल कॉर्पस्कल (Renal Corpuscle) कहते हैं। इस विभाग में रक्त में से पानी और अन्य घटक छाने जाते हैं। दूसरे विभाजन को रीनल नलिका कहते हैं। इसमें रक्त में से छाने गये घटकों में से आवश्यक घटक उचित मात्रा में पुन: रक्त में शोषित किये जाते हैं। साथ ही शरीर की आवश्यकतानुसार पानी भी पुन: शोषित किया जाता है। इस समस्त प्रक्रियाओं के बाद जो शेष बचता है वही मूत्र होता है।

    प्रत्येक मूत्रपिंड में साधारणत: दस से बीस लाख रीनल कॉर्पस्कल होती है। इनका आकार गोलाकार होता है और प्रत्येक का व्यास साधारणत: ०.२ मिमी. होता है। प्रत्येक कॉर्पस्कल के फिर दो भाग होते हैं। पहले भाग को ग्लोमेरूलस (Glomerulus) कहते हैं तथा दूसरे भाग को ग्लोमेरूलर कॅपसूल अथवा बौमन की कॅपसूल कहते हैं।

    ग्लोमेरूलस : यह पूरी तरह छोटी रक्तवाहनियों का बना होता है। प्रत्येक ग्लोमेरूलस में शरीर से रक्त लेकर आनेवाली एक रक्तवाहिनी होती है। उसे ऍफरंट आर्टिरिओल कहते हैं। इसी रक्तवाहिनी का दूसरा सिरा रक्त को शरीर में वापस ले जाता है। उस भाग को इफरंट आर्टिरिओल कहते हैं। इन दोनों सिरों को जोड़नेवाला बीच का हिस्सा केशवाहनियों का एक गोला होता है। इसे ही ग्लोमेरूलस कहते हैं। एक ही रक्तवाहिनी अनंत मोड़ लेती हुई यह गोला तैयार करती है और दूसरी ओर फिर बाहर निकलती है। प्रत्येक मूत्रपिंड में रक्तवाहिनियों के ऐसे बीस लाख गोले होते हैं।

ग्लोमेरूलर कॅपसूल : रीनल नलिका ग्लोमेरूल के चारों ओर जो आवरण तैयार करती है उसे ग्लोमेरूलर कॅपसूल कहते हैं। ग्लोमेरूलर के यानी रक्तवाहिनी के पास कॅपसूल का जो आवरण होता है, वह सिर्फ ०.३३ मायक्रॉन जितना पतला होता है। इसमें अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिसमें से रक्त छनकर उसका मूत्र में रूपांतर होता है। कॅपसूल का यह आवरण संपूर्ण रक्त को दूसरी ओर नहीं जाने देता। यानी इसकी छानने की क्रिया ‘सिलेक्टीव’ अथवा ‘चुनी हुई’ होती है। इसमें से सर्वसाधारणत: सिर्फ पानी और रक्त के छोटे अणु ही छाने जाते हैं।

२) रील नलिका अथवा मूत्रपिंड नलिका : नेफ्रॉन से शुरू होनेवाली यह नलिका अनेक भागों में बटी हुई होती हैं। ये भाग निम्नलिखित हैं –

अ) प्रारंभिक अथवा नज़दीकी कनवोल्यूटेड नलिका : ग्लोमेरूलर कॅपसूल से शुरू होनेवाली यह नलिका  है, यह भाग सीधा ना होकर घुमावदार होता है। ‘ब’ और ‘क’ भाग एकत्र आते हैं। पहले भाग की मोड़ लेनेवाली नलिका अंग्रेजी के ‘U’ अक्षर की तरह सीधी होती है और दिखायी देती है। इस ‘U’ को लूप ऑफ होन्ले कहते हैं।

ब) लूप ऑफ हेन्ले का नीचे उतरनेवाला यह भाग है।

क) लूप हेन्ले का ऊपर जानेवाला भाग।

ड) लूप पूरा हो जाने के बाद यह नलिका पुन: मोड़ लेती हुई आगे जाती है। इस भाग को अंतिम अथवा दूर की (ग्लोमेरूलस से दूर) कनवोल्यूटेड नलिका कहते हैं।

इ) दूर की कनवोल्यूटेड नलिका और कलेक्टींग डक्टस्‌ को जोड़नेवाला यह आखिरी भाग है। इसे जोड़ नलिका कहते हैं।(क्रमश:-) 

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