चीन के साथ किए निवेश संबंधित समझौते पर यूरोपियन संसद ने लगाई रोक

यूरोपियन संसदब्रसेल्स – चीन ने यूरोपिय महासंघ और अफ़सरों पर लगाए प्रतिबंध हटाने तक चीन के साथ किए निवेश संबंधित समझौते को मंजूरी देना मुमकिन नहीं है, ऐसा इशारा यूरोपियन संसद ने दिया। गुरूवार के दिन हुई बैठक के दौरान यूरोपिय संसद ने महासंघ और चीन के बीच किए गए निवेश संबंधित समझौते पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित किया है। यह रोक, यूरोप में चीन के प्रभाव को जोरदार झटका लगानेवाली साबित हुई है और चीन ने इस पर तीव्र नाराज़गी व्यक्त की है।

यूरोपिय महासंघ और चीन ने बीते वर्ष के दिसंबर में ‘कॉम्प्रेहेन्सिव ऐग्रीमेंट ऑन इंवेस्टमेंट’ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते पर अमल करने के लिए यूरोपियन संसद की मंजूरी प्राप्त होने की आवश्‍यकता थी। लेकिन, गुरूवार के दिन यूरोपियन संसद ने वर्णित समझौते को मंजूरी प्रदान करने के विरोधी में प्रस्ताव पारित किया। यह प्रस्ताव ५९९ बनाम ३० मतों के फरक से पारित किया गया। इस प्रस्ताव में चीन ने यूरोपिय अफसरों पर लगाए प्रतिबंधों के विरोध में आक्रामक भूमिका अपनाई गई है।

यूरोपियन संसद‘चीन ने लगाए प्रतिबंध बुनियादी आज़ादी पर हुआ हमला है। इस कार्रवाई से चीन तुरंत पीछे हटे’, यह इशारा संबंधित प्रस्ताव में दिया गया है। चीन के प्रतिबंधों की वजह से इसके आगे निवेश संबंधित समझौते पर किसी भी तरह की बातचीत मुमकिन नहीं होगी, यह इशारा भी संसद ने दिया है। चीन ने यूरोपिय अफसरों पर लगाए प्रतिबंध चीन की एकाधिकारवाद हुकूमत की नीति का हिस्सा हैं, यह आरोप भी यूरोपियन संसद ने लगाया है। इस दौरान संसद ने चीन द्वारा मानव अधिकारों का हो रहा हनन एवं झिंजियांग में उइगरवंशियों पर हो रहें अत्याचारों के मुद्दे पर भी तीखे शब्दों में फटकार लगाई है।

यूरोपियन संसदयूरोपियन संसद ने वर्णित समझौते पर लगाई रोक के विरोध में चीन ने तीव्र प्रतिक्रिया दर्ज़ की। ‘चीन के अंदरुनि कारोबार में दखलअंदाज़ी करना यूरोपियन संसद तुरंत बंद करे। साथ ही चीन विरोधी संघर्ष की भूमिका अपनाने से भी दूर रहे। यूरोपिय महासंघ की कार्रवाई की वजह से चीन और यूरोप के संबंधों में तनाव निर्माण हो रहा है। इसकी ज़िम्मेदारी चीन पर नहीं होगी’, यह इशारा चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन ने दिया।

इसी बीच, यूरोपिय देशों में उइगरवंशियों के मुद्दे पर असंतोष की भावना अधिक तीव्र होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। अमरीका, ब्रिटेन और कनाड़ा के बाद यूरोप के लिथुआनिया देश ने उइगरवंशियों पर हो रहे अत्याचार यानी ‘नरसंहार’ होने का बयान किया है। इसी बीच गुरूवार के दिन लिथुआनिया की संसद में इस विषय पर प्रस्ताव पारित किया गया है।

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