सीमा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास तेज़ होगा – शेकटकर समिति के सुझावों का सरकार द्वारा स्वीकार

नई दिल्ली – सरहदी क्षेत्रों में रास्ते एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करने के लिए, सेवानिवृत्त लेफ्टनंट जनरल डी.बी.शेकटकर समिति ने रखें सुझावों का सरकार ने स्वीकार किया है और इसपर अमल भी शुरू किया है। रक्षा मंत्रालय के ज़रिये इसकी जानकारी साझा की गई है। सीमा क्षेत्र में सामरिक दृष्टि से अहम रास्तों का निर्माण करने के लिए इससे गति प्राप्त होगी। चीन ने अपनी सीमा में बड़ी मात्रा में रास्ते एवं रेल मार्ग का जाल विकसित किया है। हाल ही में चीन द्वारा लद्दाख के डेमचोक में निर्माण कार्य शुरू किया होने की खबरें प्राप्त हुई थी। सीमा क्षेत्र में चीन की ये गतिविधियाँ और लष्करी तैयारी की पृष्ठभूमि पर, सरकार ने सेवानिवृत्त लेफ्टनंट जनरल डी.बी.शेकटकर समिती के सुझावों पर शुरू किया हुआ अमल अहम साबित होता है।

सन २०१७ में सरकार ने शेकटकर समिती के ९९ में से ६५ सुझावों का स्वीकार किया था। इसमें अधिकांश सुझाव, रक्षाबलों की क्षमता बढ़ाना, मनुष्यबल के व्यवस्थापन की दृष्टि से रक्षाबलों की पुनर्रचना करने से संबंधित थे। इन सुझावों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में अफसर एवं सैनिकों की तैनाती की पुनर्रचना की गई है। अब सरकार ने सीमा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास के संदर्भ में रखें तीन सुझावों का स्वीकार करके इस पर अमल शुरू किया हैं।

सीमा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के काम प्राय: बॉर्डर रोड़ ऑर्गनायझेशन (बीआरओ) द्वारा किए जाते हैं। लेकिन अब १०० करोड़ रुपयों से अधिक खर्चा होनेवाले और बीआरओ की क्षमता से अधिक होनेवाले सड़कनिर्माण के काम ‘आउटसोर्स’ किए जाएँगे। संक्षेप में, इन कामों का कान्ट्रैक्ट निजी कंपनी को प्रदान करना मुमकिन होगा। इसके लिए ‘इंजिनिअरिंग प्रोक्युअरमेंट कॉन्ट्रॅक्ट’ (ईपीसी) पद्धति का स्वीकार किया जाएगा। फिलहाल ‘बीआरओ’ के ज़रिए तीन हज़ार किलोमीटर दूरी के रास्तों का निर्माण कार्य शुरू है। चीन की सीमा के पास के दुर्गम क्षेत्रों में ६१ जगहों पर इन रास्तों का निर्माण हो रहा है। इनमें से कुछ रास्ते सामरिक दृष्टि से अहम साबित होनेवाले ‘ऑल वेदर रोड़’ हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की सीमा से जुड़े क्षेत्र में भी ‘बीआरओ’ अहम रास्तों का निर्माण कर रहा है। सरकार सीमाक्षेत्र में और भी कुछ नए रास्तों के निर्माण की योजना शुरू कर सकती है। ‘ईपीसी’ नीति की वज़ह से ‘बीआरओ’ पर बना भार काफ़ी मात्रा में कम हो सकेगा। साथ ही सीमा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास भी तेज़ी से हो सकता है।

इसके साथ ही यंत्र सामग्री और उपकरणों की खरीद ठेंठ करने के संबंधित ‘बीआरओ’ के अधिकारों में भी बढ़ोतरी की गई है। इसके लिए होनेवाले प्रावधान में भी बढ़ोतरी की गई है। अब तक सिर्फ़ ७.५ करोड़ रुपयों तक की प्रगत यंत्र सामुग्री एवं उपकरण ठेंठ करने का अधिकार ‘बीआरओ’ रखता था। लेकिन, अब ‘बीआरओ’ अपने अधिकार में १०० करोड़ रुपयों तक की यंत्र सामग्री की देश या विदेश से खरीद कर सकेगा। आधुनिक यंत्र सामग्री प्राप्त होने पर ‘बीआरओ’ कर रहें निर्माण कार्य अधिक तेज़ हो सकेंगे। इस वजह से सीमा पर स्थित दुर्गम क्षेत्र में टनेल मार्ग एवं पुलों का निर्माण करने के काम अधिक गति से पूरे हो सकेंगे। इसी बीच, भूसंपादन, वन एवं पर्यावरण से संबंधित मंज़ुरी को, अब विस्तृत योजना की रिपोर्ट (डीपीआर) की मंज़ुरी का ही एक हिस्सा बनाने की सिफारिश भी लागू की गई है।

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