नेपाल द्वारा भारतीय सीमा के नज़दीक रास्ते का निर्माण

नई दिल्ली – नेपाल भारत से सटकर होनेवाले सीमाक्षेत्र में एक समांतर मार्ग विकसित कर रहा है। १३० किलोमीटर की लम्बाई के धारचूला-टिंकर इस रास्ते के काम की ज़िम्मेदारी नेपाल सरकार ने अपनी सेना को सौंपी है। दोनों देशों की सीमा पर होनेवाले अति ऊँचाई पर के दुर्गम भाग के नेपाली गाँवों में रहनेवाले नागरिक भारतीय सीमा में होनेवाले मार्ग का इस्तेमाल करते हैं। इन गाँवों का भारतीय सीमा में होनेवाले मार्ग पर की निर्भरता ख़त्म हों, इसके लिए यह मार्ग विकसित कर र्हा होने का दावा नेपाल ने किया है। साथ ही, यह मार्ग नेपाल अपनी सीमा में विकसित कर रहा है, यह अधिकारियों ने स्पष्ट किया है। नेपाल ने हाल ही में नया नक़्शा जारी करते हुए भारतीय भाग को अपने क्षेत्र में दिखाकर सीमावाद को पुन: ताज़ा किया था। इस पृष्ठभूमि पर नेपाल द्वारा शुरू किये इस रास्ते के निर्माण की ओर देखा जा रहा है।

नेपाल ने सन २००८ में इस रास्ते को मंज़ुरी दी थी। लेकिन काँट्रॅक्टर ४५ किलोमीटर के रास्ते का काम पूरा होने पर अगला काम बीच आधा छोड़कर भाग था। क्योंकि इस हिमालयीन क्षेत्र में निर्माणकार्य करना बहुत ही जोख़मभरा होकर, सदा बदलते मौसम के कारण काँट्रॅक्टरों का बहुत नुकसान हो रहा था, ऐसा दावा किया जाता है। अब बचे ८० किलोमीटर से भी अधिक मार्ग का काम पूरा करने के लिए नेपाल लष्कर को कहा गया है। इस मार्ग को जोड़नेवाला ट्रॅक रूट, टिंकर और चंगरु इन भारतीय सीमा के नज़दीक होनेवाले गाँवों के नागरिकों की भारतीय मार्ग पर की निर्भरता कम करेगी, ऐसा इस रास्तानिर्माण के पीछे का अधिकृत कारण नेपाल ने घोषित किया है।

लेकिन टिंकर घाटी में टिंकर पास के क़रीब भारत, नेपाल और चीन की सीमाएँ एक-दूसरे से मिलतीं हैं। यहाँ से चीन के साथ के व्यापार को बढ़ाना यह इस रास्तानिर्माण के पीछे का प्रमुख उद्देश्य है, ऐसा सामने आ रहा है। साथ ही, ‘टिंकर पास’ तक पक्का रास्ता बनाकर नेपाल, भारत को दबाव में लाने का चीन का उद्देश्य साध्य करना चाहता है, ऐसा दावा विश्लेषक कर रहे हैं।

इसके अलावा, नेपाली लष्कर विकसित कर रहे इस मार्ग को, हाल ही में नेपाल ने जारी किये नये नक़्शे को लेकर निर्माण हुए विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। कालापानी और लिपुलेख को अपनी सीमा में दर्शानेवाले नक़्शे को नेपाल सरकार ने मंज़ुरी दी थी। साथ ही, भारत ने विकसित किये, लिपूलेख खाई से जोड़नेवाले कैलास मानसरोवर लिंक रोड का नेपाल ने विरोध किया था। इस मार्ग का निर्माण अपने भाग में हुआ होने का दावा नेपाल ने किया है।

कालापानी क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच सीमाविवाद नया नहीं है। दोनों देशों में इसपर चर्चा जारी रहती है। लेकिन पहले से ही मौजूद होनेवाले मार्ग पर ही भारत ने विकसित किये कैलास मानसरोवर लिंक रोड पर नेपाल ने जताया हुआ ऐतराज़ और इसके बाद जारी किया हुआ नक़्शा, इनके पीछे चीन का उक़साना होने का विश्लेषकों का कहना है। लष्करप्रमुख जनरल मनोज नरवणे ने भी बैसे संकेत दिये थे। यह बात भी नेपाल सरकार को रास नहीं आयी है।

भारतीय लष्करप्रमुख ने ऐसा राजनीतिक बयान नहीं करना चाहिए था, ऐसा कहकर नेपाल सरकार इसपर ऐतराज़ जता रहा है। सोमवार को नेपाल के रक्षामंत्री ईश्वर पोखरेल ने यह कहा है कि ‘भारतीय लष्करप्रमुख ने किया बयान यानी इतिहास का अपमान है’। इससे यही स्पष्ट हो रहा है कि चीन का नाम न लेते हुए भारतीय लष्करप्रमुख ने नेपाल को दिखाये आइने के कारण नेपाली राज्यकर्ता भड़के हुए हैं।

लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की कम्युनिस्ट सरकार की चीनपरस्त नीतियाँ छिपीं नहीं है। लद्दाख में चीन की घुसपैंठ की कोशिश के बाद भारत और चीन में तनाव पैदा हुआ है और ऐसे में नेपाल ने सीमाविवाद ताज़ा किया है, यह बात भी काफ़ी संकेत दे रही है, इसपर विश्लेषक ग़ौर फ़रमा रहे हैं।

साथ ही, भारत ने ने निर्माण किया कैलास मानसरोवर लिंक रोड यह भारत, चीन और नेपाल की सीमाएँ एक-दूसरे से जहाँ जुड़तीं हैं, वहाँ से नज़दीक ही है। इस कारण भारत के लिए यह रास्ता सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण साबित होगा। यहाँ की चीन से सटी सीमा पर भारत संघर्ष के दौर में तेज़ी से लष्कर और युद्धसामग्री ला सकता है, यह बात भी चीन को परेशान कर रही है। इस कारण चीन नेपाल की आड़ में यहाँ सीमाविवाद ताज़ा कर रहा है, ऐसा भी अभ्यासकों का कहना है। कैलास मानसरोवर लिंक रोड अपनी सीमा में होने का दावा करनेवाले नेपाल ने, जब इस रास्ते का निर्माण हो रहा था, तब कोई ऐतराज़ क्यों नहीं जताया था, ऐसा सवाल भी विश्लेषक उपस्थित कर रहे हैं।

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