‘बेल्ट ऍण्ड रोड’ के बाद ‘डिजिटल सिल्क रोड’ के लिए चीन की जोरदार गतिविधियाँ

बीजिंग – अमरिका को चुनौती देकर जागतिक महासत्ता होने की ईर्ष्या से चीन के सत्ताधारी होने आठ साल पहले होण्याच्या ‘बेल्ट ऍण्ड रोड इनिशिएटिव्ह’(बीआरआय) इस महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा की थी। लेकिन उसे झटके लगने की शुरुआत होने के कारण चीन की सत्ताधारी हुकूमत ने ‘डिजिटल सिल्क रोड’ योजना को तेजी से आगे ले जाने की शुरुआत की, ऐसा सामने आया है। इस योजना का अहम पड़ाव होनेवाली ‘पीस सबमरिन केबल’ इस परियोजना की अगले महीने शुरुआत हो रही है। लेकिन चीन की यह महत्त्वाकांक्षी योजना यानी तंत्रज्ञान के माध्यम से और विकसित एवं विकसनशील देशों पर पकड़ जमाने का मार्ग होने की चेतावनियाँ विभिन्न अभ्यासगुट और विश्लेषक दे रहे हैं।

china-dsrचीन ने सन २०१३ में बड़ी डींगें हाँकते हुए ‘बीआरआय’ की घोषणा की। अगले कुछ सालों में लगभग १०० से भी अधिक देश में सहभागी हुए होने की बात सामने आई थी। इन देशों में अफ़्रीका, आग्नेय एशिया, मध्य एशिया, युरोप तथा खाड़ी क्षेत्र के देशों का समावेश है। लगभग एक ट्रिलियन डॉलर्स से भी अधिक निवेश करके, युरोपीय देशों तक सड़कों तथा रेल का नेटवर्क बनाकर व्यापारी सहयोग बढ़ाया जाएगा, ऐसा दावा चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने किया था।

लेकिन चीन का यह महत्वकांक्षी उपक्रम यानी दुनिया भर में उनका प्रभाव क्षेत्र तैयार करने की कोशिश होने की आलोचना पिछले कुछ सालों में तीव्र होने लगी है। उसी समय, इस उपक्रम के तहत चीन छोटे देशों को कर्जे के चंगुल में फँसा रहा है, ऐसा मलेशिया, श्रीलंका तथा अफ़्रीकी देशों की घटनाओं से सामने आया था। कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर, चीन के विरोध में असंतोष अधिक ही तीव्र हुआ होकर, अफ़्रीका, एशिया और युरोप की कई परियोजनाओं का काम ठप पड़ा होने की बात स्पष्ट हुई है। इस पृष्ठभूमि पर, चीन ने अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए तंत्रज्ञान क्षेत्र का विकल्प चुना होकर, उस माध्यम से जागतिक वर्चस्व हासिल करने की गतिविधियाँ तेज़ कीं हैं।

पिछले कुछ सालों में चीन ने ‘डिजिटल सिल्क रोड’ योजना के लिए लगभग ८० अरब डॉलर्स खर्च किए होने की जानकारी सामने आई है। अंडरसी इंटरनेट केबल्स, डेटा सेंटर्स, आर्टिफिशल इंटेलिजन्स एवं रोबोटिक्स में संशोधन, स्मार्ट सिटीज्, ५जी तंत्रज्ञान के लिए बुनियादी सुविधा, स्मार्टफोन्सचे उत्पादन ऐसी सारी बातों का समावेश इसमें है, ऐसा बताया जाता है। अफ़्रीकी तथा आग्नेय एशियाई देशों में ‘डिजिटल अर्थव्यवस्था’ विकसित करने के लिए भी चीन इस योजना का इस्तेमाल कर रहा होने की बात सामने आई है। अमरीका और यूरोप के साथ दुनिया के प्रगत देश तेजी से डिजिटल होते समय, खुद पर पिछड़ने की बारी ना आए इसलिए अफ्रीका और एशिया के कई देश चीन की इस योजना में सहभागी हुए हैं।

china-dsrलेकिन पिछले २ सालों में चीन ने साऊथ चायना सी समेत हॉंगकॉंग, तैवान तथा उइगरवंशियों पर किये कारनामें और कोरोनावायरस को लेकर अपना ही भूमिका इस कारण चीन के विरोध में असंतोष तीव्र होने लगा है। उसी का झटका ‘डिजिटल सिल्क रोड’ को भी लगने की संभावना जताई जा रही है। यह परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकती है कमा ऐसे संकेत अमरीका ने पहले ही दिए हैं। उसके बाद अब इस योजना में सहवाग हुए देश भी इस की ओर शक की निगाहों से देखने लगे हैं। मलेशिया और म्यानमार जैसे देशों के विशेषज्ञ तथा अधिकारियों ने, सार्वभूमता समेत आर्थिक बातों के मुद्दों पर भी चेतावनियाँ देना शुरू किया है। अमेरिका तथा यूरोप के विश्लेषकों ने, ‘डिजिटल सिल्क रोड’ यानी तंत्र ज्ञान पर आधारित एकाधिकारशाही है ऐसा डटकर कहा है।

उसे नजरअंदाज करते हुए चीन ने अपनी योजना तेजी से आगे ले जाने की जोरदार कोशिशें चलाई है। पाकिस्तान के किनारे से बिछाई जाने वाली अंडरसी केबल उसी का भाग माना जाता है। इजिप्ट के जरिए फ्रान्स तक बिछाई जाने वाली १५ हजार किलोमीटर्स लंबाई की यह केबल इस साल के अंत तक पूरी होगी, ऐसा दावा चीन द्वारा किया गया है।

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