चीन द्वारा कोरोना टीके के माध्यम से आन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव बढ़ाने की गतिविधियाँ – विश्‍लेषकों का दावा

बीजिंग – खाड़ी क्षेत्र के ‘संयुक्त अरब अमिरात’ (युएई) ने, चीन के कोरोना टीके को ८६ प्रतिशत प्रभावी बताकर, उसके इस्तेमाल के लिए युएई मान्यता दे रहा होने का ऐलान किया है। आग्नेय एशिया के इंडोनेशिया में चीन के टीके के १२ लाख डोस दाखिल हुए हैं। अफ्रिका के मोरोक्को में चिनी टीके के निर्माण के लिए कारखाने का निर्माण किया गया होकर, इथिओपिया में टीकों का संग्रहण तथा वितरण करने हेतु बड़ा गोदाम (वेअरहाऊस) बनाया गया है। लैटिन अमरीका एवं कैरेबियन देश चीन के टीके का इस्तेमाल करें इसलिए उन्हें एक अरब डॉलर्स तक वित्तसहायता की आपूर्ति करने का आश्‍वासन दिया गया है।

corona-vaccine-china‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशन’ (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोरोना टीकेकरण के लिए शुरू किये गए ‘कोवॅक्स’ उपक्रम में चीन सहभागी होगा, ऐसा भी चीन ने घोषित किया है। वहीं, राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने, सार्वजनिक हित के लिए चीन अपना कोरोना टीका दुनियाभर के विभिन्न देशों को सप्लाई करने के लिए तैयार होने की घोषणा हाल ही में की। पिछले कुछ महीनों में घटित इन घटनाओं से यह स्पष्ट होने लगा है कि चीन किस तरह कोरोना की पृष्ठभूमि पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है। चीन की यह ‘व्हॅक्सिन डिप्लोमसी’ यानी ‘बेल्ट अँड रोड इनिशिएटिव्ह’ की तरह ‘हेल्थ सिल्क रोड’ बनाने की कोशिश होकर, उसके पीछे के ईरादें अलग ही होने के दावें विश्‍लेषकों द्वारा किये जा रहे हैं।

इस साल की शुरुआत से चीन से शुरू हुई कोरोना की महामारी दुनिया के लगभग २०० देशों में फ़ैली होकर, अब तक १६ लाख से भी अधिक लोगों की जानें गयीं हैं। कोरोना की महामारी के बारे में चीन ने छिपाई जानकारी और उसके बाद विदेशों में सप्लाई किये निकृष्ट दर्ज़े के वैद्यकीय उत्पादन, इनके कारण दुनिया भर में चीन के खिलाफ़ असंतोष तीव्र हुआ है। कोरोना के दौर में ही चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत द्वारा अपना वर्चस्व बढ़ानेवालीं विस्तारवादी हरक़तें भी जारी होकर, हाँगकाँग का क़ानून और उइघुरवंशियों पर के अत्याचार उसीका भाग माना जाता है। ‘साऊथ चायना सी’ पर इकतरफ़ा कब्ज़ा करने के लिए चीन ने बड़े पैमाने पर लष्करी गतिविधियाँ भी बढ़ायीं हैं। उसी समय, ‘बेल्ट ऍण्ड रोड’ जैसीं योजनाओं के दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

इन सभी हरक़तों के कारण चीन की छवि मिट्टी में मिली होकर, युरोप तथा एशिया समेत सभी क्षेत्रों में चिनी प्रभाव में गिरावट होने लगी है। यह चित्र बदलने के लिए चीन के सत्ताधारियों ने कोरोना के टीके का इस्तेमाल करना शुरू किया है, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है। ‘चीन यह कोई निस्वार्थ वृत्ति से कार्यरत होनेवाला देश नहीं है। अन्य देशों को टीकों की आपूर्ति करने के पीछे चीन का यक़ीनन ही फ़ायदा होनेवाला है। चीन अपने व्यापारी तथा सामरिक हितसंबंधों का विस्तार करना चाहता है। कोरोना की महामारी के लिए चीन को दोष देनेवाले देशों के साथ के विवाद ख़त्म करना और टीके का ‘सॉफ्ट पॉवर’ के साधन की तरह इस्तेमाल करना यह भी उद्देश्य हो सकता है’, ऐसा दावा ‘द इकॉनॉमिस्ट इंटेलिजन्स युनिट’ इस अभ्यासगुट के इमोजेन पेज-जॅरेट ने किया।

corona-vaccine-chinaसाऊथ चायना सी में ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ के मुद्दे पर चीन के साथ सहयोग करें, इस तरह की माँग चीन आग्नेय एशियाई देशों के पास कर सकता है, इसका एहसास सिंगापूर की नॅशनल युनिव्हर्सिटी के प्राध्यापक चोंग जा ईयान ने करा दिया। तंत्रज्ञान क्षेत्र में चीन के उत्पादनों को प्राथमिकता देने के लिए भी दबाव लाया जा सकता है, इसपर भी चोंग जा ने ग़ौर फ़रमाया। आग्नेय एशियाई देशों में इंडोनेशिया समेत मलेशिया और फिलिपाईन्स इन देशों को टीके की सप्लाई करने की बात चीन ने मान्य की है, ऐसा भी उन्होंने कहा। दुनिया के विभिन्न देशों को सप्लाई किये जानेवाले कोरोना टीके के संदर्भ में शुरू की हुई परियोजना का उल्लेख चीन द्वारा ‘हेल्थ सिल्क रोड’ ऐसा किया जा रहा है।

इसी बीच, पश्चिमी संशोधक तथा विश्‍लेषकों द्वारा, चीन के टीके की विश्‍वासार्हता पर होनेवाला प्रश्‍नचिन्ह, यह मुद्दा भी आग्रही रूप में रखा जा रहा है। दुनिया की अन्य कंपनितों की तरह चीन की कंपनियों ने उनके टीके की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। उसी समय, दूसरी ओर, टीके को अधिकृत मान्यता मिलने से पहले ही चिनी यंत्रणाओं ने देश में लगभग १० लाख से अधिक लोगों का टीकाकरण किया भी है। ये बातें, चीन द्वारा टीके को लेकर जारी होनेवाली आक्रामक मुहिम को झटका देनेवालीं साबित हो सकतीं हैं, ऐसा पश्चिमी विश्‍लेषकों का दावा है।

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