सीमा विवाद को लेकर चीन संभ्रम निर्माण ना करें – चीन में नियुक्त भारत के राजदूत की चेतावनी

बीजिंग – ‘‘सीमा व्यवस्थापन तथा सीमा पर शांति स्थापित करना और सीमा विवाद का हल निकालना ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। उनमें संभ्रम निर्माण करके चीन लगातार ‘गोलपोस्ट’ बदलता ना रहें’’, ऐसी चेतावनी चीन में नियुक्त भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी ने दी। गलवान के संघर्ष के बाद भारत ने चीन के विरोध में सख्त भूमिका अपनाई है। सीमा पर स्थिरता मचाकर चीन भारत के साथ सहयोग नहीं कर सकता, ऐसी चेतावनी भारतीय नेता चीन को दे रहे हैं। राजदूत मिसरी ने भी राजनीतिक भाषा में चीन को फिर एक बार इसका एहसास करा दिया।

Vikram-Misri-india-warns-chinaचीन स्थित ‘सिचुआन युनिव्हर्सिटी’ का स्कूल ऑफ इंटरनॅशनल स्टडीज् विभाग, चायना सेंटर फॉर साऊथ एशियन स्टडीज् और ‘मनोहर पर्रिकर इन्स्टीट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज् अँड अनॅलिसिस’ (एपी-आयडीएसए) ने संयुक्त रूप में आयोजित किए वर्चुअल कार्यक्रम में राजदूत मिसरी बात कर रहे थे। चीन के भारत में नियुक्त राजदूत सन वुईडाँग भी इस कार्यक्रम में सहभागी हुए थे। दोनों देशों के वरिष्ठ लष्करी अधिकारियों की चर्चा और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वँग ई के बीच हुई चर्चा के बाद एलएसी पर तनाव कम हुआ। इस साल के फरवरी महीने में लद्दाख के पँगाँग सरोवर के दक्षिणी भाग से दोनों देश को देशों ने लष्कर हटाया। साथ ही, अगस्त महीने में गोग्रा से भी दोनों देशों ने वापसी की, इस पर राजदूत मिसरी ने संतोष ज़ाहिर किया।

आनेवाले दौर में बाकी क्षेत्र में तनाव कम होगा और इसके लिए चर्चा जारी है, ऐसा मिसरी ने कहा। लेकिन चीन ने सीमा व्यवस्थापन और सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जारी चर्चा, इनके बीच गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। ये दोनों अलग-अलग बातें होकर, इनमें संभ्रम निर्माण करके चीन लगातार गोलपोस्ट को ना बदलें, ऐसा राजदूत विक्रम मिसरी ने चेताया। पिछले कुछ सालों से चीन का लष्कर एलएसी पर घुसपैंठ करके अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। शुरुआती दौर में चीन की यह घुसपैठ गश्ती तक मर्यादित थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से चीन भारत पर लष्करी दबाव बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से लष्करी घुसपैंठ करा रहा है, यह बात सामने आई थी।

भारत के भूभाग पर खुलेआम दावे करके चीन का लष्कर, वह अपनी ही देश की सीमा में होने के दावे ठोकने लगा था। उसके बाद भी दोनों देशों के बीच विवाद ना भड़के, इसके लिए भारत ने संयमी भूमिका अपनाई। लेकिन गलवान में हुए संघर्ष के बाद भारत ने चीन के विरोध में सख़्त नीति अपनाई। इस संघर्ष में भारतीय लष्कर के कर्नल संतोष बाबू समेत २० जवान शहीद हुए थे। उसके बाद चीन के विरोध में भारत में गुस्से की लहर उमड़ी। भारत सरकार ने चीन को आर्थिक स्तर पर झटके देनेवाले फैसलें एक के बाद एक करना शुरू किया था। इन में चिनी ऐप्स पर पाबंदी लगाने से लेकर चीन की कंपनियों को भारतीय मार्केट नकारने के फैसलों का समावेश था।

भारत की ओर से लष्करी और आर्थिक स्तर पर ऐसी प्रतिक्रिया आएगी, इसका विचार चीन ने नहीं किया था। इस कारण यह कार्रवाई शुरू होने के बाद चीन ने भारत की मिन्नतें करने की कोशिशें शुरू की थी। सीमा विवाद कायम रखकर भी भारत और चीन द्विपक्षीय सहयोग कर सकते हैं, ऐसा चीन के राजनीतिक अधिकारी जताने लगे। व्यापार में राजनीति ना लायें, ऐसे आदर्शवादी विचार चीन के प्रतिनिधि भारत के साथ जारी चर्चा में रख रहे थे। लेकिन अगर भारत के साथ व्यापारी तथा अन्य स्तरों पर सहयोग चाहिए, तो चीन ने पहले एलएसी पर शांति और सौहार्द स्थापित करनी ही चाहिए, ऐसा भारत ने सुनाया था।

आज भी भारत इस भूमिका पर अडिग है, यह राजदूत विक्रम मिसरी ने इस वर्चुअल कार्यक्रम में स्पष्ट किया। साथ ही, सन १९८८ से भारत और चीन के नेताओं ने, सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंध अलग, फिर भी समांतर रखे थे। सीमा पर शांति और सौहार्द यह इन द्विपक्षीय संबंधों के लिए होनेवाली पूर्वशर्त थी, इसकी याद भारतीय राजदूत ने करा दी। अलग शब्दों में, राजदूत मिसरी ने इस चर्चा में यही दिखा दिया कि चीन की आक्रामक घुसपैंठ के कारण दोनों देशों के बीच संबंध चरमसीमा तक बिगड़ गए हैं।

इसी बीच, दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था होनेवाले चीन के सामने फिलहाल बहुत बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हुआ है। उससे बाहर निकलना अधिक से अधिक मुश्किल बनता चला जा रहा है, ऐसे में चीन ने लगभग अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद छेड़ा है। इसके जरिए आर्थिक असफलता और गिरावट से, दूसरी ओर ध्यान मोड़ने की कोशिश चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत कर रही है। लद्दाख की एलएसी पर चीन ने की घुसपैंठ, यह इन्हीं कोशिशों का भाग था। लेकिन इसका बहुत बड़ा आर्थिक झटका चीन को लगा और यह चाल चीन पर ही बूमरैंग हुई। कोरोना की महामारी के कारण आये आर्थिक संकट के दौर में, दुनियाभर के सभी देश भारत की ओर बड़े विश्वास के साथ देख रहे हैं। भारतीय मार्केट का फायदा उठाने के लिए और भारत के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए अमरीका तथा युरोपीय देशों के उद्योग क्षेत्र में होड़ शुरू हुई है। वहीं, दूसरी ओर भारत का मार्केट गंवाने के डर से चीन को ग्रस्त किया है।

इसी कारण, राजनीतिक स्तर पर भारत सहयोग शुरू करें, ऐसा आवाहन चीन बार-बार कर रहा है। लेकिन भारत के विरोध में कारनामे करके इसके आगे सहयोग की फजूल उम्मीद ना रखें, ऐसा भारत चीन से डटकर कह रहा है।

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