भारत का एकाधिकार तोड़ने के लिए चीन ने नेपाल के लिए चार बंदरगाहों को खुला किया

काठमांडू – नेपाल के लिए चीन ने अपने चार बंदरगाहों को खुला करने का फैसला किया है। अब तक अन्य देशों के साथ व्यापार के लिए भारत पर निर्भर नेपाल के लिए इस वजह से नया व्यापार मार्ग खुलने वाला है। भारत का एकाधिकार तोड़ने के लिए और नेपाल पर अपना प्रभाव बढाने के लिए चीन और नेपाल की चीन समर्थक सरकार ने यह फैसला लिया है, ऐसा दिखाई दे रहा है। चीन का यह निर्णय भारत के लिए चेतावनी है।

चीन और नेपाल के वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक नेपाल की राजधानी कठमंडू में हुई है। इसमें इस सन्दर्भ में अंतिम निर्णय लिया गया है, ऐसा नेपाल के वाणिज्यिक मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है। इस निर्णय के अनुसार चीन नेपाल के लिए तिआंजिन, झन्झिआन्ग, लिआनीगैंग और शेन्झेन बंदरगाह खोलने वाला है। इसके अलावा ल्हंझिन,ल्हासा और शिगत्से यह ड्राई पोर्ट भी चीन ने नेपाल के लिए खोलने का निर्णय लिया है। इस वजह से नेपाल सड़क के रास्ते से और इन बंदरगाहों के द्वारा अन्य देशों के साथ व्यापार शुरू कर सकता है। जपान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों से आने वाला माल चीन के इस बंदरगाह से सड़क मार्ग से नेपाल तक पहुंचेगा, ऐसा दावा नेपाल के वाणिज्यिक मंत्रालय के अधिकारी ने किया है।

हिमालय की गोद में स्थापित हुआ नेपाल यह जीवनावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर भारत पर निर्भर है। लेकिन पिछले कुछ समय में चीन का नेपाल पर प्रभाव बढ़ गया है। विशेषतः नेपाल में सर्वपक्षीय सरकार के अस्तित्व में चीन ने अस्थिर राजनीति का फायदा उठाया। नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टी के नेता के. पी. ओली और पुष्प कमल दहाल (प्रचंड) के प्रधानमंत्री पद के काल में भारत विरोधी कई निर्णय लिए गए थे। नेपाल को इंधन आपूर्ति का एकाधिकार तोडके चीन से भी इंधन आपूर्ति का निर्णय ओली के कार्यकाल में लिया गया था। साथ ही भारत की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए नेपाल चीन की महत्वकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) में शामिल हो गया।

कुछ महीनों पहले ही नेपाल में चीन समर्थक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ओली के नेतृत्व में पूरे बहुमत से आई है। इसके बाद भारत के हित की आड़ आने वाले कई निर्णय प्रधानमंत्री ओली ने लिए हैं। ओली ने नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला दौरा भारत का ही किया था। लेकिन चीन के साथ संबंध मजबूत करने में नेपाल ने ज्यादा प्राधान्य दिया। यह बार बार उनके निर्णय से नेपाल की सरकार ने दिखा दिया है। इसके लिए नेपाल ने ‘एक्ट नॉर्थ’ नीति अपनाई है।

लेकिन नेपाल केवल चीन के पास नहीं जा रहा है, बल्कि नेपाल अधिकाधिक चीन के जाल में फंसता जा रहा है, ऐसा विश्लेषकों का कहना है। चीन की तरफ से लिए जाने वाले महंगे कर्ज के जाल में श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे फंस गए हैं, वैसी ही अवस्था नेपाल की होने की संभावना है। इसके अलावा चीन के जिन बंदरगाहों का इस्तेमाल करके नेपाल अन्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिए करने की सोच रहा है, उसमें से सबसे नजदीकी बंदरगाह २६०० किलोमीटर पर है। साथ ही नेपाल की तरफ से चीन की तरफ जाने वाले घाट सड़कें ख़राब स्थिति में हैं और इन सडकों से व्यापार करना चुनौती साबित होने वाली है। ऐसा भी अभ्यासकों का कहना है। चीन ने नेपाल पर प्रभाव बढाने की कोशिश की तो भौगोलिक परिस्थिति देखि जाए तो भारत के अलावा नेपाल के पास कोई विकल्प नहीं है, यह स्पष्ट हुआ है।

दौरान, नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल इन दिनों भारत के दौरे पर आए हैं और उन्होंने शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की है। इस मुलाकात में उन्होंने विभिन्न विषयों पर चर्चा की। दहाल को भारत दौरे पर भेजकर नेपाल चीन और भारत के बीच समतोल साधने की कोशिश कर रहा है, ऐसा दिखाई दे रहा है। नेपाल को भारत और चीन इन देशों के साथ अच्छे रिश्ते चाहिएं, ऐसा दहाल ने कहा है।

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