श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६८

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६८

पिछले लेख में हमने देखा कि बाबा के गुणों से मोहित होकर मुझे शिरडी में आना चाहिए और श्रीसाईनाथ का गुणसंकीर्तन करना चाहिए, इस क्रिया का अध्ययन किया। बाबा के चमत्कार से, बाबा पैसे बाँटते हैं इसीलिए मोहित न होकर हमें बाबा के गुणों से मोहित होना चाहिए। हमें यदि मोह करना ही है तो […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६७

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६७

रोहिले की कथा से बोध लेकर हमें कैसा आचरन करना चाहिए, इस बात पर गौर करते समय हमने सर्वप्रथम रोहिले की क्रिया का अर्थात शिरडी में आनेवाली क्रिया से संबंधित अध्ययन किया। उत्कटतारूपी प्रथम कदम श्रीसाईनाथ की, शिरडी में अर्थात भगवान की भक्ति में हमें रखना चाहिए यह हमने देखा। शिरडी में आया एक रोहिला। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६६

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६६

पिछले लेख में हमने रोहिले की कथा के आधार पर अनेक रूपकों का अध्ययन करके बोध प्राप्त किया। रोहिला एवं रोहिली इन दोनों किरदारों का परिचय प्राप्त कर इन किरदारों का हमारे जीवन में क्या स्थान है। इस बात की जानकारी भी हासिल की। रोहिला – मनुष्य का मन शिरडी – भक्तिरूपी भूमि साईनाथ – […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६५

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६५

रोहिले की कथा के बारे में हम विस्तारपूर्वक चर्चा कर रहे हैं। इस अध्याय में ही और वह भी हेमाडपंत के एक अनुभव के पश्‍चात् इस कथा को लिखने के पिछे हेमाडपंत का क्या उद्देश्य है? हेमाडपंत को सेवानिवृत्त होने के पश्‍चात् यह चिंता सताने लगी कि अब अपने परिवार का एवं अपना गुजर-बसर कैसे […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६४

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६४

जिसे हरिनाम का आलस। बाबा उससे दूर ही रहते। कहते व्यर्थ ही क्यों रोहिले से परेशान होते हो। भजन में मग्न जो रहता सदा॥ जयासी हरिनामाचा कंटाळा। बाबा भीती तयाच्या विटाळा। म्हणती उगा कां रोहिल्यास पिटाळा। भजनीं चाळा जयातें॥ ‘परमात्मा का नामस्मरण’ यह मनुष्य को परमात्मा से जोड़नेवाली एक कड़ी है। मनुष्य को परमात्मा तक ले […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६३

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६३

‘मद्भक्ता यत्र गायंति’। तिष्ठें तेथे मी उन्निद्र स्थितीं। सत्य करावया हे भगवदुक्ति। ऐसी प्रतीति दाविली। (जहाँ पर मेरे भक्त नाम का गायन करते हैं, नाम का सदैव स्मरण करते हैं, वहाँ पर मैं सदैव रहता ही हूँ, यह भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। साई रूप में अवतार धारण करने पर उस परमात्माने स्वयं की उक्ति […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६२

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६२

जिसे हरिनाम का आलस। बाबा भी रहते उससे दूर। कहते व्यर्थ ही रोहिले को क्यों परेशान करते हो। भजन की आदत जिसे॥ (जयासी हरिनामाचा कंटाळा। बाबा भीती तयाच्या विटाळा। म्हणती उगा कां रोहिल्यास पिटाळा। भजनीं चाळा जयातें॥) रोहिले की कथा के संदर्भ में हमने पिछले भाग में नाम एवं नामस्मरण के संबंध में देखा। परमात्मा का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६१

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६१

जिसे हरिनाम का आलस। बाबा भी उनका साथ टालते। कहते क्यों व्यर्थ ही रोहिले को परेशान करते हो। जो भजन में ही रहता व्यस्त॥ (जयासी हरिनामाचा कंटाळा। बाबा भीती तयाच्या विटाळा। म्हणती उगा कां रोहिल्यास पिटाळा। भजनीं चाळा जयातें॥) रोहिले की इस कथा से बाबा एक सबसे बड़ी सच्चाई को, हर एक श्रद्धावान के लिए प्रस्तुत […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६०

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६०

मानव अर्थात बुद्धि, मन एवं शरीर इन तीनों का संयोग। मन एवं बुद्धि ये दो तत्त्व हरएक मनुष्य के पास होता ही है। बुद्धिी, मन एवं शरीर का यह त्रैराशिक मानव का जीवन चलाते रहता है मात्र मानव का मन चलाने में मन एवं बुद्धी ये दोनों की जोड़ी (ही द्वयी) अगुआई (अग्रेसर) होती हैं। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ५९

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ५९

यहाँ पर हेमाडपंत रोहिले की कथा सुनाते हैं। जिसके बारे में संक्षिप्त जानकारी हमने पिछले लेख में हासिल की। परन्तु हेमाडपंत यहाँ पर स्पष्टरूप में बता रहे हैं कि बाबा को ग्रामवासियों की खोखली शिकायतों एवं बेवजह के क्लेश की अपेक्षा नामजप अधिक प्रिय है। अर्थात बाबा को नाम सर्वाधिक प्रिय है। तात्पर्य यह है […]

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