श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८८

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८८

रोहिले की कथा द्वारा साईनाथ हमारे जीवन में कर्ता के रूप में उन्निद्र स्थिति में सदैव रहें इसके लिए हमें क्या करना चाहिए इस बात का बोध हमने हासिल किया। गुणसंकीर्तन करनेवाले भक्त के जीवन में ये साईनाथ सदैव उन्निद्र स्थिति में होते ही हैं। इस बात का अध्ययन हमने बाबा की गँवाही द्वारा किया। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८७

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८७

शिरडी में आनेवाले रोहिले के आचरणद्वारा मुझे अपने-आप में क्या बदलाव करना चाहिए और इसके लिए सर्वप्रथम स्वयं अपना आत्मनिरिक्षण करना चाहिए इससे संबंधित पिछले लेख में हमने संक्षिप्त में चर्चा की थी। मैं भी अकसर यही चाहता हूँ कि मैं भी बाबा का प्रिय बनकर रहूँ। बाबा को मेरा आचरण अच्छा लगे और इसके […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८६

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८६

पिछले अध्याय में हमने रोहिले की कथाद्वारा भक्तिमार्ग का मार्गक्रमण करनेवाले भक्त के मन में चलनेवाले सत्त्व, रज एवं तम इन तीन गुणों के खेल से संबंधित अध्ययन किया। सत्वगुण रोहिले ने अधिकाधिक जोरदार रूप में गुणसंकीर्तन करते रहना यही रजोगुणी शिकायत करनेवाले ग्रामवासी एवं तमोगुणी रोहिली को पछाड़ने का उपाय है। साईनाथ को प्रिय […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८५

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८५

रोहिले की कथाद्वारा हमारे मन में चलनेवाले तीनों गुणों का खेल ही बाबा हमें स्पष्टरूप में दिखा रहे हैं। रोहिला शिरडी में आया, उसने द्वारकामाई में ही अपना स्थान निश्‍चित कर लिया। उसका बाबा पर पूरा विश्‍वास था और परमात्मा के गुणसंकीर्तन में ही उसकी श्रद्धा थी। यह रोहिला दिन-रात द्वारकामाई में एवं चावड़ी में […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८४

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८४

अपने श्रीसाईनाथ का, भगवान का गुणसंकीर्तन यही साक्षात् सुदर्शन चक्र है। यह तो हमने पिछले लेख में देखा। रोहिले की कथा में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दा इस गुणसंकीर्तन का है। रोहिले की कथा में गुणसंकीर्तन का विस्तारपूर्वक अध्ययन करते हुए सहज ही हमें स्मरण होता हैं। १९वे अध्याय के रामनाम एवं राम का गुणसंकीर्तन, इनसे […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८३

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८३

रोहिले की कथा से सीख लेते समय हमने यह सीखा की भक्तिमार्ग पर चलते हुए स्वयं की प्रगति करने की इच्छा रखनेवाले मेरे मन में जब-जब भी अनचाही यादें भूतकाल के गलतियों की डाकिने परेशान करने की कोशिश करने लगती हैं अथवा भविष्यकाल की चिंताएँ मुझे ग्रसित करने की कोशिशें करने लगती हैं। ऐसे में […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८२

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८२

शिरडी में आनेवाले रोहिले की कथा का अध्ययन हम जितना अधिक करेंगे उतना कम ही है। रोहिला एवं उसके साथ न रह सकनेवाली रोहिली ये दो वृत्तियाँ हैं, दो दिशाएँ हैं। रोहिला एवं रोहिली इन रूपकों के आधार पर साईनाथ इस कथा के माध्यम से हमें हमारे जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त मौलिक […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८१

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८१

श्रीसाईनाथ का गुणसंकीर्तन फलाशा का पूर्णविराम किस तरह से करता है इससे संबंधित अध्ययन हमने पिछले अध्याय में देखा। रोहिली का एक अर्थ जिस तरह हमने पिछले लेख में देखा ‘फलाशा’। बिलकुल उसी तरह भक्तिमार्ग में आनेवाली सिद्धियाँ, ये भी रोहिली ही हैं। ‘सिद्धियाँ’ जैसे योगमार्ग में प्राप्त होती हैं, वैसे ही भक्तिमार्ग में भी […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८०

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-८०

शिरडी में आनेवाला रोहिला सचमुच निरपेक्ष प्रेम से आया था, बाबा के गुणों से मोहित होकर वह आया था और उसने स्वयं को बाबा के चरणों पर अर्पित कर दिया था। शिरडी में आया एक रोहिला। वह बाबा के गुणों से मोहित हो गया। वहीं पर काफ़ी दिनों तक रहा। प्रेम लुटाता रहा बाबा के […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७९

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७९

पुष्प खिले जो मेरे। अर्पण कर दिया आपको। आपका आपको ही देकर। संतुष्ट मैं रहता हूँ। (पुष्प उमलले जे माझे। वाहिले तुलाचि। तुला तुझे देताना ही। भरूनी मीच राही॥) आद्यपिपा की ये पंक्तियाँ रोहिले के ‘प्रेम लुटाता रहा बाबा पर’ इस बोलद्वारा हमें स्मरण हो जाती हैं। मैं ही एक पुष्प बनकर, खिलता हुआ फूल […]

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