डॉ.होरेस डॉब्ज

डॉ.होरेस डॉब्ज

अक्तूबर २००९ में डॉल्फिन को भारत के ‘राष्ट्रीय जलचर’ के रूप में घोषित किया गया। डॉल्फिन का संवर्धन हो इसी उद्देश्य से यह किया गया। दुनिया भर में डॉल्फिन का नामोंनिशान मिटने न पाए और इस बुद्धिमान सस्तन प्राणि की वृद्धि हो इसी लिए प्रयत्नशील रहने वाले संशोधक के रूप में डॉ. होरेस डॉब्ज की […]

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डॉ.लॉरेन्स काटूझ

डॉ.लॉरेन्स काटूझ

अधिकतर लोग अपनी नैतिक, शारीरिक एवं बौद्धिक क्षमता की मर्यादा में ही रहना पसंद करते हैं। हममें से हर किसी में महासागर के समान क्षमता है, परन्तु उसे हमने सपने में भी नहीं देखा होता है। इस क्षमता को उत्तेजन देनेवाले का जीवन ज़रूर उच्च दिशा में मार्गक्रमण करता रहता है। जिन्हें अपनी बुद्धि, स्मृति […]

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गणपतराव पाटील

गणपतराव पाटील

बढ़ता हुआ तापमान, बारिश की अनियमितता, आवागमन की समस्यायें, पथरीली ज़मीन, रेत के समान क्षारीय मिट्टी इस प्रकार की अनेक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए आधुनिक एवं प्रयोगशील पद्धति से खेती करने के लिए यदि प्रयास किया जाये तो विदेशों में होनेवाली के खेती के समान हमारे यहाँ की खेती भी विकसित हो सकती […]

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डॉ.आनंद कर्वे : भाग – २

डॉ.आनंद कर्वे : भाग – २

आंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न विषयों से संबंधित शोधकार्य तेजी से चलता रहता है। विषय, उपविषय, उनके उपविभाग अथवा उनमें से ही उदित नये-नये विषय इनके बारे में अनुसन्धान होता रहता है। विज्ञान, तकनीकी ज्ञान एवं संशोधन यदि इन्हीं की चार दीवारी में कैद होकर रहा जाये तो इसका कोई उपयोग नहीं है, बल्कि […]

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डॉ.आनंद कर्वे : भाग – १

डॉ.आनंद कर्वे : भाग – १

महर्षि धोंडो केशव कर्वे इनके नाती, इरावती कर्वे (विख्यात मराठी लेखिका), और दिनकर कर्वे (शिक्षा-विशेषज्ञ) इस दंपती के सुपुत्र इस पहचान के साथ-साथ कृषिविशेषज्ञ एवं तत्संबंधित विविध शोध जिनके नाम हैं ऐसे संशोधक अर्थात डॉ.आनंद कर्वे। जर्मनी से वनस्पतिशास्त्र में पी.एच.डी.की उपाधि प्राप्त कर अपनी मातृभूमि का सम्मान करते हुए अपने देश में लौटकर इसी […]

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अशोक बंग

अशोक बंग

पिछले कुछ वर्षों से ग्रामीण विभाग की कृषि संबंधित समस्यायें अधिक गंभीर हो चली जा रही हैं। कृषि की नवीन स्वावलंबी राह चुनना यह इसके प्रति एक अच्छा उपाय साबित हो सकता है और ऐसी खेती नैसर्गिक दृष्टिकोण से दीर्घकाल तक के लिए उपयोगी साबित होगी। पारंपरिक एवं आधुनिक बलस्थानों का उपयोग यह किसानों एवं […]

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वसंत टाकळकर

वसंत टाकळकर

‘घर में नहीं है पानी, गगरिया खाली है रे गोपाला’ (घरात नाही पानी, घागर उताणी रं गोपाला) इस मराठी लोकगीत का अर्थ कोई चाहे कैसे भी लगाये, परन्तु आज के विज्ञानयुग में विशेष तौर पर पृथ्वी पर होने वाला ‘पानी’ यह एक चुनौतीपूर्ण विषय दिखाई देता है। जलसंवर्धन, वनीकरण आदि कार्यों का बोलबाला रहता है। […]

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बद्रीनारायण बारवले

बद्रीनारायण बारवले

उचित परिवर्तन किसी भी क्षेत्र में गति एवं स्वाभाविक तौर पर स्थिरता अर्थात स्थिति प्राप्त करवाते रहता है। लकीर के फकीर बनकर कृषि-व्यवसाय के संबंध में यदि चलते रहे तो कृषि संबंधी उसका अनुमान गलत साबित होता है और कृषक वर्ग बेहाल हो जाता है। इसके लिए कृषि की ओर व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाने की हिम्मत […]

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चंद्रकांत पाठक

चंद्रकांत पाठक

भारत को कृषिप्रधान देश कहा जाता है। ‘उत्तम कृषि’! कृषिक्षेत्र के संदर्भ में उत्तम यह दर्जा हमारे देश के इस व्यवसाय को प्राचीनकाल से ही प्राप्त है। अत एव कृषि से संबंधित समस्या यह स्वाभाविक है कि सामाजिक प्रश्न बन जाता है। कृषि के लिए ऊर्जा अर्थात विद्युत् की समस्या सुलझाने के लिए प्रदूषण को […]

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डॉ. हिम्मतराव बावस्कर भाग – २

डॉ. हिम्मतराव बावस्कर भाग – २

‘काय मी करू, विंचू चावला …………’ (मुझे बिच्छू ने काट लिया, मैं क्या करूं) यह भारूड (महाराष्ट्र का एक लोकगीत-प्रकार) तो विख्यात है।, परन्तु यदि सच्चे बिच्छू ने दंश कर लिया तो? वह बिच्छू भी यदि बिषैला, प्राणघातक हो तो इसका उपाय क्या? वह तो होना ही चाहिए। एम.डी. (मेडिसिन) की उपाधि प्राप्त होने के […]

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