नेताजी-१६४

नेताजी-१६४

सुभाषबाबू बर्लिन लौटे, वह ग़ुस्से में ही। पहले ही २२ जून १९४१ को जर्मनी ने रशिया पर आक्रमण किया था, जिससे कि उनकी योजनाओं को मानो बारूद ही लग गया था। साथ ही, बर्लिन पहुँचते ही, मुसोलिनी मुझसे न मिलें इसलिए हिटलर द्वारा किये गये कारस्तानों की जानकारी भी उन्हें मिली। वे ख़ौलकर फौरन विदेश […]

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नेताजी-१६३

नेताजी-१६३

रोम में भारतीय युद्धबन्दियों के साथ बातचीत करने की इजाज़त प्राप्त करना, इसके अलावा और कुछ भी सुभाषबाबू के हाथ नहीं लगा। इक्बाल सिदेई में उन्हें जो आशा की किरण नज़र आ रही थी, वह भी व्यर्थ ही साबित हुई। सिदेई सुभाषबाबू की बढ़ाई व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कर रहा था। उसपर धुन सवार थी […]

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नेताजी-१६२

नेताजी-१६२

२८ मई १९४१ को सुभाषबाबू पॅरिस गये। पॅरिस में ए.सी.एन. नंबियार जैसे हरफनमौला एवं युरोपीय राजनीति की नस नस से वाक़िब रहनेवाले व्यक्ति को अपने कार्य में जोड़कर सुभाषबाबू १४ जून १९४१ को रोम पहुँच गये। लेकिन आन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में खाने के दाँत अलग और दिखाने के दाँत अलग रहते हैं, इस बात का अनुभव […]

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नेताजी-१६१

नेताजी-१६१

जर्मनी द्वारा कैद किये गये भारतीय युद्धबन्दियों के मन्तव्य को जानने के लिए डॉ. धवन तथा डॉ. मेल्चर्स को नियुक्त किया गया था। पहले दल के साथ बातचीत करते हुए डॉ. धवन के ध्यान में यह बात आ गयी कि उनमें प्रमुख रूप से जाट, सिख और पठानों का समावेश था। उनके साथ क़रीबी सम्बन्ध […]

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नेताजी-१६०

नेताजी-१६०

युद्ध में केवल स्वयं के ही हितसम्बन्धों को सुरक्षित रखना चाहनेवाले और भारत की ओर ब्रिटन के ही नज़रिये से देखनेवाले हिटलर से किसी ठोस सहायता की अपेक्षा रखना बेक़ार है, यह हालाँकि सुभाषबाबू जान तो गये थे, लेकिन जर्मन विदेश मन्त्री रिबेनट्रॉप के साथ हुई मुलाक़ात के बाद चित्र बदलने लगा था। भारतीय स्वतन्त्रता […]

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नेताजी-१५९

नेताजी-१५९

हिटलर ब्रिटन के साथ केवल मजबूरन संघर्ष कर रहा है, उसकी महत्त्वाकांक्षा के आड़े आनेवाला देश इसी नाते केवल ब्रिटन हिटलर के शत्रुपक्ष में है, अन्यथा वह ब्रिटन के साथ पंगा लेने की बात को जितना हो सके उतना टाल देता है; अहम बात तो यह है कि वह भारत की ओर ब्रिटन के नज़रिये […]

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नेताजी-१५८

नेताजी-१५८

गुज़र रहे व़क़्त के साथ साथ सुभाषबाबू की बेचैनी बढ़ने लगी थी। हालाँकि योजना के अनुसार काम तो हो रहा था, मग़र फ़िर भी अब तक उसमें मनचाही तेज़ी नहीं आयी थी। सुभाषबाबू बर्लिन में हमेशा कान और आँखें खुली रखकर ही घूमते-फ़िरते थे; साथ ही उन्होंने वहाँ की सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों में और […]

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नेताजी-१५७

नेताजी-१५७

सुभाषबाबू के बर्लिन आने के बाद उनकी ख़ातिरदारी करने की ज़िम्मेदारी जिन्हें सौंपी गयी थी, वे डॉ. धवन आगे चलकर अपने कामकाज़ में व्यस्त हो गये। सुभाषबाबू को भी अपने बढ़ते हुए काम का व्यवस्थापन करने के लिए किसी फुल-टाईम सहायक की ज़रूरत महसूस होने लगी थी और इस काम के लिए, जर्मनी में पढ़ […]

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नेताजी-१५६

नेताजी-१५६

हिटलर की ख़ास मर्ज़ी रहनेवाले उनके सहकर्मी विलियम केपलर के कहने पर सुभाषबाबू ने, जर्मन सरकार से उन्हें क्या अपेक्षाएँ हैं, इस विषय में एक १४-पन्नोंवाला निवेदन लिखित स्वरूप में उन्हें दिया। उसमें – ‘इस द्वितीय महायुद्ध में इंग्लैंड़ की निर्णायक हार होना, यह जर्मनी एवं भारत का समान उद्दिष्ट रहने के कारण इन दोनों […]

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नेताजी- १५५

नेताजी- १५५

पिछली द़फ़ा जब सुभाषबाबू बर्लिन आये थे, उस समय का बर्लिन और इस समय का बर्लिन इनके वातावरण में भी फ़र्क़ था। उस समय का, जीवन का आनन्द मनमुक्त रूप से लेनेवाले बर्लिन की जगह अब युद्ध की छाया से ग्रस्त और त्रस्त बर्लिन ने ले ली थी। अब सुभाषबाबू जहाँ भी देखते, उन्हें हिटलर […]

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