क्रान्तिगाथा-६५

क्रान्तिगाथा-६५

भारतीयों के द्वारा ‘रौलेट अ‍ॅक्ट’ को ‘काला कानून’ इस नाम से संबोधित किया गया। इसे ‘काला कानून’ इसलिए कहा गया था, क्योंकि वह भारतीयों का सभी प्रकार से अहित करनेवाला था। दरअसल प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय लागू किये गये ‘डिफेन्स ऑफ इंडिया अ‍ॅक्ट’ की मियाद इस महायुद्ध के बाद के छः महीने तक ही थी। […]

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क्रान्तिगाथा-६४

क्रान्तिगाथा-६४

प्रथम विश्‍वयुद्ध समाप्त हो गया। इस विश्‍वयुद्ध में अँग्रेज़ सरकार उलझी हुई होने के कारण यहाँ पर भारतीय क्रांतिवीरों की अंग्रेज़ सरकार विरोधी गतिविधियाँ ज़ोर शोर से शुरू हो ही चुकी थी। भारत के बाहर निवास करनेवाले भारतीय, जो शिक्षा या व्यवसाय के कारण वहाँ पर रह रहे थे, वे वहाँ से अपनी मातृभूमि के […]

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क्रान्तिगाथा-६३

क्रान्तिगाथा-६३

गुजरात का खेडा जिला। सूखे के कारण खेतों में फसल ही नहीं हुई थी। सरकारी नियम के अनुसार यदि निर्धारित किये हुए से फसल कम हो जाती है तो लगान में छूट या माफी दी जा सकती थी। खेडा जिले के किसानों के खेतों में सूखे के कारण फसल इतनी कम हुई थी की सरकारी […]

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क्रान्तिगाथा-६२

क्रान्तिगाथा-६२

अब भी गांव-देहातों में रहनेवाले भारतीय कई सुविधाओं-सुधारों से दूर थे। खेती ही अधिकांश देहातों का रोजीरोटी का साधन था। खेती की कमाई पर ही गांव के आम भारतीय अपने परिवार सहित गुजारा करते थे। लेकिन, इसके बावजूद भी कुछ प्रांतों में ‘खेतों में क्या उगाना है’ इसका वहाँ के किसानों को अधिकार नहीं था। […]

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क्रान्तिगाथा-६१

क्रान्तिगाथा-६१

अँग्रेज़ सरकार प्रथम विश्‍वयुद्ध की दौड़-धूप में व्यस्त था। मगर इसके बावजूद भी भारत पर रहनेवाली उनकी पकड़ जरा भी ढिली नहीं पडी थी। दरअसल इस प्रथम विश्‍वयुद्ध की घटना का उपयोग करके उन्होंने भारत में स्थित अपने शासन को अधिक मजबूत करने की दृष्टि से प्रयास किये। इंग्लैंड के प्रथम विश्‍वयुद्ध में शामील हो […]

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क्रान्तिगाथा-६०

क्रान्तिगाथा-६०

कित्तूर यह बहुत बड़ा राज्य नहीं था, मगर फिर भी वैभवशाली राज्य था। कहा जाता है कि वहाँ हिरे, जवाहरातों का व्यापार चलता था। तो ऐसे इस वैभवशाली राज्य पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नजर नहीं पडती, तो ही आश्‍चर्य की बात थी। जिन अँग्रेज़ों को इस भारत पर अपना एकच्छत्र अमल कायम करना […]

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क्रान्तिगाथा-५९

क्रान्तिगाथा-५९

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में आम भारतीय लोगों द्वारा दिये गये योगदान को देखते हुए सचमुच आश्‍चर्य होता है की सामान्य रूप से अपनी गृहस्थी और परमार्थ करनेवाले लोगों में लाठियाँ खाने का, जेल में जाने का, उपोषण करने का और हँसते हँसते फांसी पर चढते हुए मृत्यु को गले लगाने का बल आया भी कहा […]

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क्रान्तिगाथा-५८

क्रान्तिगाथा-५८

‘हिंदु-जर्मन कॉन्स्पिरसी’ के अंतर्गत बनायी गयी योजनाएँ भले ही प्रत्यक्ष रूप में सफल न भी हो पायी हों, लेकिन इन योजनाओं में दिये गये योगदान के कारण समूचे भारत के क्रांतिवीर और देशभक्त यक़ीनन ही बहुत तेज़ी से अपने कामों में जुट गये। इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए भारतीय क्रांतिवीर ठेंठ जर्मनी जाकर […]

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क्रान्तिगाथा-५७

क्रान्तिगाथा-५७

सन १९१४ से लेकर १९१७ तक की कालावधि में केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पंजाब से लेकर सिंगापुर तक जहाँ जहाँ भारतीय सैनिक अँग्रेज़ों के पक्ष में से लड़ रहे थे, उन्हें अँग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह करके लड़ाने की हिंदु-जर्मन कॉन्स्पिरसी योजना बन रही थी। अलग अलग समय पर अलग अलग स्थानों पर भारतीय […]

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क्रान्तिगाथा-५६

क्रान्तिगाथा-५६

कई भारतीय क्रांतिवीरों के चरित्र को देखने के बाद एक प्रमुख बात हमारी समझ में आती है कि ‘भारत की स्वतंत्रता’ यह इन क्रांतिवीरों की सांस बन चुकी थी और फिर चाहे वे क्रांतिवीर इस विश्‍व में कहीं भी हो, उनके आसपास की परिस्थिती कैसी भी हो, ये क्रांतिवीर उनकी ‘इस सांस’ के लिए उनकी […]

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