परमहंस-१२६

परमहंस-१२६

रामकृष्णजी द्वारा दक्षिणेश्‍वर से शुरू किया गया भक्तिप्रसार का कार्य अब तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था। रामकृष्णजी ने चुने हुए संन्यस्त भक्तों का पहला समूह रामकृष्णजी की सीख को भक्तों तक पहुँचाने का काम जोशपूर्वक कर रहा था और उस माध्यम से वृद्धिंगत होते जा रहा ‘रामकृष्ण-संप्रदाय’ अब सुचारू आकार धारण कर रहा […]

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परमहंस-१२५

परमहंस-१२५

रामकृष्णजी की स्त्रीभक्त अब रामकृष्णजी ने गोपालर माँ को धीरे धीरे शारदादेवी की सेवा में भी प्रविष्ट कर दिया। दक्षिणेश्‍वर आने पर, रामकृष्णजी के दर्शन करने के बाद शारदादेवी के कमरे में जाकर वे उनकी सेवा में लगी रहती थीं। उनका बहुत ही पसंदीदा काम – प्रेमपूर्वक अपनी जपमाला खींचते रहना चालू ही थी। लेकिन […]

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परमहंस-१२४

परमहंस-१२४

रामकृष्णजी की स्त्री-भक्त अघोरमणीदेवी बहुत ही सीधासादा जीवन जीतीं थीं। उनके दिवंगत पति के परिवारवालों से पतिनिधन के बाद उन्हें कुछ रक़म मिली थी, जिसका निवेश कर उसके ज़रिये जो प्रतिमाह ५-६ रुपये ब्याज आता था, उसपर वे अपने पूरे महीने का गुज़ारा कर लेती थीं। अघोरमणीदेवी ‘बालकृष्ण’ तो अपना आराध्य बनायें, यह मार्गदर्शन भी […]

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परमहंस-१२३

परमहंस-१२३

रामकृष्णजी की स्त्रीभक्त ‘योगिन माँ’ की तरह ही रामकृष्ण-परिवार में विख्यात होनेवालीं दुसरीं स्त्रीभक्त यानी ‘गोलप माँ’। रामकृष्णसंप्रदाय स्थापन होने के शुरुआती दिनों में उसे ठीक से आकार देने का काम जिन्होंने निष्ठापूर्वक किया, उनमें से एक गोलप माँ थीं। ‘अन्नपूर्णा देवी’ उर्फ ‘गोलप सुंदरी देवी’ ऐसे पूर्वनाम होनेवालीं गोलप माँ रामकृष्णजी के पास आयीं, […]

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परमहंस-१२२

परमहंस-१२२

रामकृष्णजी कीं स्त्रीभक्त रामकृष्णजी की निष्ठावान स्त्रीभक्तों में ‘योगिन (जोगिन) माँ’ तथा ‘गोलप माँ’ इन नामों से आगे चलकर विख्यात हुईं अग्रसर स्त्रीभक्त थीं। इनमें से ‘योगिन माँ’ (मूल नाम ‘योगींद्रमोहिनी मित्रा’) ये अमीर परिवार से थीं। लेकिन बहुत पैसा होने के बावजूद भी घर में पति की व्यसनाधीनता के कारण सुखशांति नहीं थी। घर […]

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परमहंस-१२१

परमहंस-१२१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी का विवाह हालाँकि हो चुका था, लेकिन वह नाममात्र था। अपनी पत्नी के साथ ही सभी स्त्रियों को वे ‘देवीमाता का अंश’ ही समझते थे और उसीके अनुसार उनका स्त्रियों से साथ का आचरण होता था। अतः उनकी संगत में स्त्रियों को अंशमात्र? भी डर या संकोच नहीं लगता […]

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परमहंस-१२०

परमहंस-१२०

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख श्रद्धावान के मन में ईश्‍वर के प्रति, अपने सद्गुरु के प्रति होनेवाली उत्कटता में कितनी आर्तता होनी चाहिए, इसके बारे में बताते हुए रामकृष्णजी ने कुछ उदाहरण दिये – ‘एक बार हमारे यहाँ आनेवाले एक भक्त को कहीं पर तो बबूल का एक पेड़ दिखायी दिया। उस बबूल के पेड़ […]

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परमहंस-११९

परमहंस-११९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ‘जैसे जैसे श्रद्धावान भक्तिमार्ग प्रगति करता जाता है, वैसे वैसे – ‘ईश्‍वर श्रद्धावान के नज़दीक ही होते हैं और वह भी सक्रिय रूप में’ यह एहसास उस श्रद्धावान के दिल में जागृत होता रहें ऐसे अधिक से अधिक संकेत उसे प्राप्त होते रहते हैं। उसके जीवन में ईश्‍वर की विभिन्न […]

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परमहंस-११८

परमहंस-११८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख सांसारिक इन्सानों के लिए रामकृष्णजी के उपदेश अत्यधिक सीधेसादे-सरल हुआ करते थे – ‘यह गृहस्थी भी उस ईश्‍वर ने ही उन्हें प्रदान की है, इस बात का एहसास सांसारिक लोग रखें और इस कारण विश्‍वस्तबुद्धि से (‘ट्रस्टीशिप’), लेकिन प्यार से गृहस्थी निभायें। अपने परिजनों के प्रति रहनेवाले अपने कर्तव्य प्रेमपूर्वक […]

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परमहंस-११७

परमहंस-११७

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी के दौर में प्रायः भक्तिमार्गी समाज में होनेवाला प्रमुख विवाद था – निर्गुण निराकार ईश्‍वर सत्य है या सगुण साकार? इनमें से किसी भी एक संकल्पना को माननेवाले कई बार रामकृष्णजी के पास आते थे और रामकृष्णजी अपने तरी़के से, विभिन्न उदाहरण देकर उन्हें समझाते थे। ईश्‍वर मूलतः निर्गुण […]

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