अमरीका और पश्‍चिमी देशों के अस्तित्व के लिए सबसे अधिक खतरा चीन से – अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन

जॉन बोल्टनवॉशिंग्टन/बीजिंग – अमरीका और पूरे पश्‍चिमी जगत के अस्तित्व के लिए चीन २१वीं सदी का सबसे बड़ा खतरा है, ऐसा इशारा अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने दिया। अमरीका के साथ पश्‍चिमी देशों के गुट ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खतरे के खिलाफ ड़टकर खड़े रहने का समय है, यह इशारा भी बोल्ट ने दिया। अमरीका फिलहाल राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन और चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की चर्चा कराने की कोशिश में होने का वृत्त सामने आया था। इस पृष्ठभूमि पर बोल्टन ने दिया हुआ इशारा ध्यान आकर्षित करता है।

ब्रिटेन के ‘एलबीसी’ रेडियो स्टेशन को दिए साक्षात्कार के दौरान बोल्टन ने कोरोना संक्रमण के मुद्दे पर चीन को लक्ष्य किया। ‘चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने कोरोना वायरस की जड़ों को छुपाया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना के मुद्दे पर हो रही जाँच में अड़ंगे ड़ाले। इस पृष्ठभूमि पर पश्‍चिमी देशों को चीन के उद्देश्‍यों पर संदेह करना पड़ेगा। चीन के खिलाफ एकजुट होकर खड़े रहने की इच्छा अधिक मज़बूत करनी चाहिए। चीन के खिलाफ सिर्फ सख्त निकष या नीति नहीं बल्कि कृति भी इसके अनुसार ही करनी पड़ेगी’, ऐसी सलाह बोल्टन ने दी।

‘कोरोना की महामारी के विरोध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उचित रिस्पान्स नहीं दिया है। यह बात घातक है और इस वजह से भविष्य में आतंकी संगठनों के पास जैविक हमले करने के लिए दरवाज़े खुले हुए हैं और इसके लिए चीन को ही ज़िम्मेदार ठहराना होगा’, ऐसी आलोचना बोल्टन ने इस दौरान की। कोरोना की जड़ें कहां पर हैं, इसकी खोज़ हमें करनी ही चाहिए, इस पर किसी भी तरह की दो राय नहीं हो सकती। यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसके लिए आवश्‍यक गतिविधियाँ नहीं करता तो वह हमारी बहुत बड़ी भूल होगी’, यह इशारा जॉन बोल्टनभी पूर्व सलाहकार ने दिया।

इस दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। चीन में कम्युनिस्ट हुकूमत स्थापित करनेवाले माओ के बाद शी जिनपिंग चीन के सबसे ताकतवर नेता हैं, इस बात का ध्यान पश्‍चिमी देशों ने रखना चाहिए, ऐसा इशारा अमरीका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार ने दिया। जिनपिंग के नेतृत्व में अधिक आक्रामक और ताकतवर बने चीन को रोकने का यही अवसर है, यह दावा भी बोल्टन ने इस दौरान किया।

कोरोना की महामारी, मानव अधिकारों का उल्लंघन, साउथ चायना सी में जारी हरकतों जैसे मुद्दों पर चीन के विरोध में प्रति दिन असंतोष बढ़ रहा है। बीते कुछ दिनों में ‘जी ७’ एवं ‘नाटो’ की बैठक में चीन के विरोध में उठा आक्रामक स्वर इसी के संकेत माने जा रहे हैं। अमरीका और यूरोप चीन के विरोध में एक हुए हैं, फिर भी उनकी कृति से बड़ी आक्रामकता अभी तक दिखाई नहीं दी है। इस पृष्ठभूमि पर बोल्टन ने चीन यह अस्तित्व के लिए खतरा होने का बयान करके पश्‍चिमी देशों को दिया हुआ इशारा अहमियत रखता है।

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