बेंगलूरु

Bangalore

प्रकृति और विज्ञान-तन्त्रज्ञान दोनों ही मानवी जीवन के साथ बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं। मनुष्य का जीवन एवं उसकी प्रगति इन दोनों क्षेत्रों में प्रकृति और विज्ञान-तन्त्रज्ञान इनका बहुमूल्य योगदान है। इसीलिए इन दोनों का समन्वय करना मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है। ‘सिलिकॉन व्हॅली ऑफ इंडिया’ और ‘गार्डन सिटी ऑफ इंडिया’ इन दोनों उपाधियों को धारण करनेवाले बेंगलूरु शहर ने प्रकृति और विज्ञान-तन्त्रज्ञान के आपसी तालमेल को बड़ी आसानी से प्रस्थापित किया है। आधुनिक भारत की विज्ञान-तन्त्रज्ञान इन क्षेत्रों की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देनेवाला, ऐसा यह बेंगलूरु शहर।

कर्नाटक राज्य की राजधानी होनेवाला यह शहर ‘बेंगलोर’ इस नाम से सुपरिचित है, लेकिन इस शहर का मूल नाम ‘बेंगलूरु’ होने के प्रमाणों की पुष्टि हुई है। नौवी सदी के गंगा राजवंश के बारे में उपलब्ध शिलालेख से यह जानकारी प्राप्त हुई है। योद्धाओं के गुणों का वर्णन करनेवाले इस शिलालेख में इसवी 890 में ‘बेंगलूरु’ इस स्थान पर हुए युद्ध का उल्लेख है। पुरानी कन्नड भाषा का यह शिलालेख बेगुर में प्राप्त हुआ है। इस शिलालेख के अनुसार इस शहर पर गंगा राजवंश की इसवी 1004 तक हुकूमत थी और इस शहर को ‘बेंगवल-उरु’ अर्थात् रक्षकों का शहर (सिटी ऑफ गार्ड्स) कहा जाता था। यहाँ पर प्राप्त हुए रोमन सिक्कों के अनुसार पहली-दूसरी सदी में यह शहर एक बहुत बड़ा व्यापारी केन्द्र था, ऐसा अनुमान है।

गंगा राजवंश के बाद तमिलनाडू के चोळ राजवंश की इसवी 1024 से लेकर 1116 तक इस शहर पर हुकूमत थी और उसके पश्चात् होयसाळ राजवंश ने यहाँ पर शासन किया।Bangalore - Vidhan Saudha

आज अस्तित्व में होनेवाले बेंगलूरु शहर की स्थापना केंपगौडा ने की। विजयनगर साम्राज्य के मांडलिक केंपगौडा ने इसवी 1537 में यहाँ एक मिट्टी का क़िला एवं नन्दी के मन्दिर का निर्माण किया और इस शहर को ‘वीरों की भूमि’ यह नाम प्रदान किया। इस क़िले के भीतर क़सबों के रूप में नगर की रचना की गई। इस नगर में ‘चिक्कपेठ’ और ‘दोड्डपेठ’ ये दो प्रमुख मार्ग थें। चिक्कपेठ यह मार्ग पूर्व-पश्चिमी दिशा में फैला हुआ था, वहीं दोड्डपेठ यह मार्ग उत्तर-दक्षिणी दिशा में फैला हुआ था। केंपगौडा के वारिस केंपगौडा-2 ने इस नगरी की चारों दिशाओं में मीनारों का निर्माण किया और उन मीनारों तक नगर का विस्तार हुआ। विजयनगर साम्राज्य में इस नगर को ‘देवरायनगर’ एवं ‘कल्याणपुर’ कहा जाता था।

इसवी 1638 में केंपगौडा-3 को शहाजीराजे भोसले और रणदुल्लाखान इन विजापुर सरदारों की फौज ने युद्ध में परास्त करके इस शहर को जीत लिया और उसे शहाजीराजे के कब्जे में दे दिया गया। इसवी 1687 में मुघलों ने शहाजीराजा के पुत्र को परास्त करके इस नगर को म्हैसूर के चिक्कदेवराय वोडेयार को बेच दिया। फिर इसवी 1761 में इस शहर पर हैदर अली और उनके बाद उनके पुत्र टिपू सुलतान की सत्ता प्रस्थापित हुई। अंग्रेजों के साथ छिड़ी जंग में टिपू सुलतान की हार एवं उनकी मृत्यु के कारण अन्त में इस शहर पर अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत प्रस्थापित हुई। अंग्रेजों ने क़सबों का कारोबार म्हैसूर के महाराजा को सौंपकर फौजी छावनी का कारोबार अपने पास रखा। अंग्रेजों के राज में बेंगलूरु इस शहर को मद्रास प्रेसिडेन्सी में शामिल किया गया।

इस शहर के विकास की वजह बनी, दो बहुत ही महत्त्वपूर्ण बातें। टेलिग्राफ और रेल्वे इनकी सहायता से इसवी 1864 में इस शहर को मद्रास (आज जिसे चेन्नई कहते हैं) के साथ जोड़ा गया और वह शीघ्रता से विकसित होने लगा।

Bangalore - Lalbaughइसवी 1898 में प्लेग की महामारी के कारण इस शहर की आबादी घट गई, परिणामस्वरूप क़सबों की सीमा के बाहर इस शहर का विस्तार बढ़ने लगा। प्लेग की महामारी के समय जल्द से जल्द सहायता उपलब्ध हो पाए, इस हेतु से इसवी 1898 में बेंगलूरु शहर में टेलिफोनसेवा शुरू कर दी गई और साथ ही वैद्यकीय अधिकारी की भी नियुक्ति की गई।

बेंगलूरु के बारे में एक आख्यायिका प्रचलित है। 11वी सदी में होयसाळ राजवंश के वीर बल्लाळ-2 नाम के राजा शिकार के लिए जंगल में गए थें और वे राह भूल गएँ। उस समय राजा को एक कुटिया दिखाई दी। उस कुटिया में रहनेवाली वृद्धा ने भूखे राजा को ‘बेंगळ’ नाम के कडधान की घुँघनी (एक प्रकार का साग) पकाकर खाने के लिए दी। उस वृद्धा के प्रति अपने कृतज्ञताभाव को व्यक्त करने के लिए राजा ने उस स्थान का ‘बेंद-काल-ऊरु’ अर्थात् कन्नड भाषा में ‘पकाये हुए बेंगळ का गाँव’ इस तरह नामकरण कर दिया, जो आगे चलकर ‘बेंगलूरु’ हो गया। दूसरी राय के अनुसार ‘बेंग’ नाम के वृक्ष के फूल के कारण यह नाम दिया गया है। ‘बीजक’ नाम के वृक्ष को बेंग कहते हैं, जिसका ‘इंडियन किनो ट्री’ यह नाम भी है।
बेंगलूरु नाम से परिचित इस शहर का नाम अंग्रेजों ने ‘बेंगलोर’ कर दिया। लेकिन 1 नवम्बर 2006 से इस शहर का नाम अधिकृत रूप से पुनः इसके प्राचीन नाम के अनुसार ‘बेंगलूरु’ कर दिया गया।

इसवी 1927 से इस शहर का विकास ‘सिटी ऑफ गार्डन्स’ के रूप में होने लगा। इस शहर में कईं बाग और उपवनों का निर्माण किया गया। इसवी 1927 में कृष्णराज वोडेयार-4 की हुकूमत के रौप्य महोत्सव के उपलक्ष्य में शहर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए कईं बागों का निर्माण किया गया। ‘शिवसमुद्रम्’ में हायड्रॉलिक प्लांट की स्थापना करके बिजली का निर्माण करना शुरू किया और 1906 से बेंगलूरु शहर को बिजली की आपूर्ति होने लगी। इस तरह बेंगलूरु यह बिजली की आपूर्ति होनेवाला भारत का पहला शहर बन गया।Bangalore - Tipu Sultan Mahal

केंपगौडा द्वारा निर्मित और टिपू सुलतान के द्वारा विकसित किया गया बेंगलूरु का क़िला और वोडेयार राजा के द्वारा इसवी 1887 में जिसका निर्माण किया, वह महल ये इस शहर के मुख्य आकर्षण हैं। साथ ही ‘लालबाग’ भी शहर की शोभा को बढ़ाती है। हैदर अली ने इस बोटॅनिकल गार्डन का निर्माण किया और उसके पुत्र ने इसे विकसित किया। यहाँ पर दुनिया भर से कईं प्रकार की वनस्पतियों को लाकर संवर्धित किया गया है। आज लगभग 1000 वनस्पतियों की प्रजातियाँ यहाँ पर पायी जाती हैं। इस बाग में लंडन के क्रिस्टल पॅलेस की क़िस्म के ‘ग्लास हाऊस’ का निर्माण किया गया है। इस ग्लास हाऊस में फूलों की प्रदर्शनियाँ सम्पन्न होती रहती हैं। आधुनिक स्थापत्य शैली और द्राविडी स्थापत्य शैली इनके सुन्दर संगम से इसवी 1954 में ‘विधानसौध’ इस इमारत का निर्माण किया गया।

बेंगलूरु के सन्दर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि भारतीय क्रिकेट को कईं श्रेष्ठ खिलाड़ी इस शहर से प्राप्त हुए हैं।

प्रकृति की छत्रछाया से सम्पन्न इस शहर ने भारत को अपनी आधुनिक पहचान बनाने के कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान के विकास में इस शहर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। दुनिया के नक़्शे में आज बेंगलूरु यह शहर आय.टी. इंडस्ट्रीज् (इन्फर्मेशन अँड टेक्नॉलॉजी – जानकारी एवं तन्त्रज्ञान क्षेत्र की कंपनियों) के कारण विख्यात है। इस शहर में स्थित कईं आय.टी. कंपनियों के कारण इस शहर को ‘सिलिकॉन व्हॅली ऑफ इंडिया’ कहा जाता है।

इस शहर की एक और विशेषता यह है कि ‘इस्रो’ (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनायझेशन) इस संस्था का मुख्यालय यहीं पर है। जून 1972 में ‘डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस’ के अन्तर्गत ‘इस्रो’ की स्थापना की गई। यह संस्था अवकाशविषयक तन्त्रज्ञान का भारत के विकास के लिए किस प्रकार से उपयोग किया जा सकता है, इससे सम्बन्धित कार्य करती है।

Bangalore - Raman Research Instituteइसवी 1930 में ‘रामन इफेक्ट’ इस अनुसन्धान के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त ‘डॉ.चंद्रशेखर वेंकट रामन’ (सी.व्ही.रामन) का नाम बेंगलूरु से जुड़ा हुआ है। ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्स’ इस बेंगलूरुस्थित संस्था के डॉ. रामन अध्यक्ष बने और इस संस्था ने भारत में सूक्ष्मगणक उपकरणों के निर्माणकार्य की शुरुआत की। इसवी 1949 में डॉ. सी.व्ही. रामन ने बेंगलूरु में ‘रामन रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ की स्थापना की।

एरोनॉटिक्स और एरोस्पेस ये बेंगलूरु शहर से जुड़े हुए दो महत्त्वपूर्ण विषय हैं। ‘हिंदुस्थान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ इस संस्था का मुख्यालय बेंगलूरु में है। यह कंपनी एअरक्राफ्ट, एरोस्पेस से सम्बन्धित उपकरणों का निर्माण करती है। दक्षिणी एशिया के पहले फौजी हवाई जहाज का निर्माण यहीं पर किया गया। फौजी क्षेत्र के अलावा समाज के लिए उपयोगी विमान सेवाओं के अनुसन्धान एवं विकास का कार्य यहाँ की एरोस्पेस लॅबोरेटरीज के द्वारा सम्पन्न होता है।

आज के दौर में ते़जी से बढ़नेवाले क्षेत्र के रूप में ‘बायोटेक्नॉलॉजी’ यह क्षेत्र जाना जाता है। बायोटेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में बंगलूरु का योगदान लगभग 47 प्रतिशत है। जीवशास्त्र पर आधारित तन्त्रज्ञान यह इस क्षेत्र का स्वरूप है। इसका उपयोग खेती, दवाइयाँ, अनाज आदि में किया जाता है। इसी तरह जैविक ईन्धन निर्माण एवं पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान रखना भी इसी क्षेत्र के कार्य हैं।

प्रकृति और विज्ञान-तन्त्रज्ञान इनके मानव के साथ होनेवाले अटूट रिश्ते के कारण ही आज इस शहर के हुए विकास ने भारत को अपनी आधुनिक पहचान बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

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