चीन की आर्थिक धौंस के खिलाफ ‘डब्ल्यूटीओ’ सख्त कार्रवाई करे – ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री की माँग

‘डब्ल्यूटीओ’कैनबेरा/टोकियो/बीजिंग – जो देश आर्थिक जबरदस्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे देशों के विरोध में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) सख्त कार्रवाई करे, यह माँग ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बड़े आग्रह के साथ कही है। ब्रिटेन में शुक्रवार से ‘जी ७’ देशों की बैठक शुरू हो रही है और इस बैठक में यह मुद्दा उठाने के संकेत भी प्रधानमंत्री मॉरिसन ने दिए हैं। इस माँग का जापान ने समर्थन किया है और आर्थिक जबरदस्ती के मुद्दे पर हम ऑस्ट्रेलिया के साथ ड़टकर खड़े होने की बात जापान ने कही है।

ऑस्ट्रेलियन सरकार ने कोरोना की महामारी से तैवान तक के अलग अलग मुद्दों पर चीन के खिलाफ आक्रामक भूमिका अपनाई है। ऑस्ट्रेलिया की इस नीति से चीन की बौखलाहट हुई है और कम्युनिस्ट हुकूमत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया है। बीते वर्ष से चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात हो रहे लगभग २० अरब डॉलर्स के सामान पर अतिरिक्त कर एवं अन्य प्रतिबंध लगाए हैं। चीन की इस कार्रवाई के विरोध में ऑस्ट्रेलिया ने विश्व व्यापार संगठन में शिकायत भी दर्ज़ की है।

‘विश्व व्यापार संगठन में सुधार करना आर्थिक जबरदस्ती का मुकाबला करने के लिए अच्छा इलाज साबित हो सकता है। प्रभावी नियमों की रचना करनेवाले एवं विवाद में निष्पक्ष मध्यस्थता करनेवाले कार्यक्षम विश्व व्यापार संगठन की आवश्‍यकता है। यदि कोई देश आर्थिक जबरदस्ती का इस्तेमाल करता है तो उसके खिलाफ संगठन ने सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। आर्थिक जबरदस्ती एवं दबाव पर प्रत्युत्तर देना है तो यह बात अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए निर्णायक साधन साबित हो सकती है’, ऐसा इशारा ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने दिया है।

‘डब्ल्यूटीओ’ऑस्ट्रेलिया ने बीते कुछ महीनों से चीन के आर्थिक दबाव के खिलाफ भूमिका अपनाई है और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा समर्थन प्राप्त हो रहा है, इस ओर भी मॉरिसन ने ध्यान आकर्षित किया हैं। ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त किया जा रहा यह विश्‍वास बेवजह ना होने की बात कुछ ही समय में स्पष्ट हुई। ऑस्ट्रेलिया और जापान की ‘टू प्लस टू’ बातचीत के दौरान चीन की गतिविधियों का मुद्दा मुख्य एजेंड़े पर था। बैठक के बाद जारी किए गए संयुक्त निवेदन में इसकी छवि दिखाई दी है और जापान ने भी आर्थिक दबाव का मुद्दा उठाया है।

आर्थिक सुरक्षा के मुद्दे पर सहयोग बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान की सहमति हुई है। आर्थिक स्तर पर जबरदस्ती करना और अस्थिरता निर्माण करने के लिए कदम उठाने को हमारा कड़ा विरोध रहेगा। इस वजह से नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कमज़ोर हो सकती है। इस मुद्दे पर हम तीव्र चिंता व्यक्त कर रहे हैं’, ऐसा ऑस्ट्रेलिया और जापान के संयुक्त निवेदन में स्पष्ट किया गया है। जापान ‘जी ७’ गुट का सदस्य होने से चीन की गतिविधियों के विरोध में ऑस्ट्रेलिया का समर्थन करनेवाला संयुक्त निवेदन प्रसिद्ध करना अहम बात बनती है।

ऑस्ट्रेलिया-जापान के संयुक्त निवेदन में ‘झिंजियांग में चीन की हरकतों पर भी तीव्र चिंता जताई गई है। उइगरवंशी एवं अन्य अल्पसंख्यांक समुदायों के समावेश वाले झिंजियांग में चीन अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को प्रवेश दे, यह माँग ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रखी है।

 

उइगरवंशियों को निकाल बाहर करने के मुद्दे पर इस्लामी देशों में चिंता का स्वर

चीन द्वारा उइगरवंशियों के खिलाफ जारी गतिविधियों के विरोध में अब इस्लामी देशों में भी चिंता का स्वर सुनाई देने लगा है। वर्ष २०१७ से २०१९ के तीन वर्षों में इजिप्ट, सौदी अरब और यूएई से २८ उइगरवंशियों को चीन को सौंपा गया है। इस पर स्वयंसेवी संगठनों ने नाराज़गी व्यक्त की है।

चीन की हुकूमत झिंजियांग प्रांत के उइगरवंशियों पर लगातार अत्याचार कर रही है। इसके विरोध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीव्र प्रतिक्रिया दर्ज़ हुई है और कई देशों ने यह अत्याचार यानी वंशसंहार का हिस्सा होने का बयान किया है। चीन ने यह आरोप ठुकराए हैं, फिर भी इस मुद्दे पर चीन पर लगातार दबाव बढ़ने का चित्र सामने आ रहा है।

झिजियांग के उइगरवंशियों के साथ ही चीन ने विश्‍व के अन्य देशों में रहनेवाले उइगरवंशियों पर भी कार्रवाई शुरू की है। संबंधित देशों पर दबाव ड़ालकर वहां के उइगरवंशियों को चीन के हाथों सौंपने के लिए कहा जा रहा है। इस तरह के कई मामले एक के बाद एक सामने आने लगे हैं और इस वजह से इस्लामी देशों के गुटों ने भी इसके विरोध में नाराज़गी व्यक्त करना शुरू किया है।

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