गलवान के संघर्ष का भारत-चीन संबंधों पर हुआ विपरित परिणाम – विदेशमंत्री एस.जयशंकर

नई दिल्ली – वर्ष १९९३ से भारत और चीन ने विभिन्न समझौते किए। इन समझौतों की वजह से प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर सेना तैनाती की मर्यादा और सैनिकों की गतिविधियों के नियम तय हुए थे। लेकिन, जून १५ के दिन लद्दाख की गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष की वजह से भारत-चीन संबंधों पर विपरित परिणाम हुआ है, इन शब्दों में भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने भारतीय जनता के मन में चीन के विरोध में उबल रहे असंतोष का अहसास कराया। साथ ही प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के करीब चीन की बड़ी सेना तैनाती भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती साबित हो रही है और भारतीय रक्षा बलों की उस पर कड़ी नज़र होने का इशारा जयशंकर ने दिया है।

गलवान संघर्ष

बीते ३० वर्षों के दौरान भारत ने चीन से अच्छे संबंध स्थापित किए। प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर शांति और सुव्यवस्था निर्माण करना ही इन संबंधों का उद्देश्‍य था। इसके लिए भारत और चीन में इस दौर में विभिन्न समझौते हुए थे। प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर सेना तैनाती सीमित रखकर एवं दोनों सैनिकों के व्यवहार इस समझौते से तय करके इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने की कोशिश की गई। सैद्धांतिक स्तर से बर्ताव के स्तर तक का पूरा दायरा तैयार किया गया था। लेकिन, इस वर्ष गलवान घाटी में चीन ने जो कुछ किया उसे देखकर चीन ने इस समझौते से अपने कदम पीछे हटाने जैसा है, यह आरोप विदेशमंत्री जयशंकर ने लगाया।

चीन ने प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर बड़ी मात्रा में सेना का जमावड़ा करके भारत के साथ किए समझौते का उल्लंघन किया है, यह आरोप भारतीय विदेशमंत्री ने लगाया। यह सेनातैनाती बढ़ाने के साथ ही १५ जून के दिन गलवान की घाटी में जो कुछ हुआ उससे भारतीय जनता और सियासत पर गहरा असर पडा है। वर्ष १९७५ के बाद पहली बार प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर सैनिक मारे गए और इस वजह से भारत और चीन के संबंधों में बड़ी उथल पुथल हुई है, इस बात का अहसास जयशंकर ने कराया। साथ ही प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के करीब बड़ी मात्रा में सेना एवं हथियारों की तैनाती करके चीन ने भारत की सुरक्षा को बड़ी चुनौती दी है, यह आलोचना भी विदेशमंत्री ने की।

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