सुदान के दर्फूर में भड़के वांशिक संघर्ष में ४८ लोगों की मृत्यु

दर्फूर – सुदान के दर्फूर क्षेत्र में जातीय संघर्ष में कम से कम ४८ लोग मारे गए और ९० से अधिक घायल हो गए। ‘एल गेनैना’ क्षेत्र में हुए इस संघर्ष के बाद सुदान सरकार ने ‘पश्चिम दर्फूर’ प्रांत में कर्फ्यू घोषित किया है। पिछले तीन हफ्तों में पश्चिम दर्फूर में जातीय संघर्ष की यह दूसरी घटना है। सुदान के दर्फूर क्षेत्र में तैनात शांति सेना की नियत अवधि पिछले साल के अंत में समाप्त हो गई थी और अब इस क्षेत्र में सुदानी लष्कर को तैनात किया जा रहा है। इस पृष्ठभूमि पर, जातीय संघर्ष की बढ़ती घटनाएँ चिंताजनक मानीं जातीं हैं।

शनिवार को, पश्चिम दर्फूर प्रांत की राजधानी ‘एल गेनैना’ में और उसके आसपास जातीय संघर्ष भड़क उठा। कहा जाता है कि विस्थापितों के लिए लगाए गए शिविरों में ‘मसालित’ और खानाबदोश अरब जनजातियों के बीच हुए विवाद से संघर्ष छिड़ गया है। वैद्यकीय अधिकारियों ने कहा कि संघर्ष में कम से कम ४८ लोग मारे गए होकर, लगभग ९७ लोग घायल हो गए। मृतकों में कई महिलाएँ और बच्चें शामिल थे। सूत्रों ने दावा किया कि कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं, जिससे मृतकों की संख्या बढ़ सकती है।

सुदान के दर्फूर क्षेत्र में पिछले १५ साल से अधिक समय से जातीय संघर्ष और हिंसाचार जारी है। पानी, कृषि और ज़मीनों के मुद्दों पर सन २००३ में संघर्ष छिड़ गया। स्थानीय जनजातियों ने सरकार के फैसलें और नियंत्रण का विरोध करके हिंसाचार शुरू कर दिया। इसका मुकाबला करने के लिए, राष्ट्रपति बशीर ने सेना की तैनाती के साथ-साथ स्वतंत्र विद्रोही समूहों की स्थापना करके उन्हें मजबूत किया था। इस संघर्ष में लगभग तीन लाख लोग मारे गए हैं और २५ लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।

हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सन २००७ में दर्फूर में ८ हज़ार से अधिक जवानों का समावेश होनेवाली शांति सेना तैनात की थी। लेकिन फिर भी, हिंसाचार में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है। उल्टे, स्थानीय सशस्त्र समूहों और सरकार समर्थक समूहों द्वारा संयुक्त राष्ट्र की शांतिसेना पर भी हमले किये जाने की घटनाएँ हुईं थीं। इस शांतिसेना का कार्यकाल भी ३१ दिसंबर, २०२० को समाप्त हो गया है। आनेवाले समय में, सुदानी सेना शांतिसेना की जगह ले लेगी और इसी अवधि में जातीय संघर्ष फिर से शुरू होना ग़ौरतलब साबित हो रहा है।

सुदान में इस समय राजनीतिक हस्तांतरण की प्रक्रिया जारी है। पिछले साल सुदान में तानाशाह ‘उमर अल-बशीर’ के खिलाफ विद्रोह हुआ था। इस विद्रोह में बशीर के सत्ता का तख़्ता पलट दिया गया था। उसके बाद सेना ने सत्ता की बाग़डोर सँभाली थी। हालाँकि सत्ता का स्वीकार करते समय यह घोषणा की गई थी कि प्रशासनिक जिम्मेदारियों को नियत समय में राजनीतिक प्रतिष्ठान को सौंप दिया जाएगा। इसकी प्रक्रिया शुरू हुई है और इस पृष्ठभूमि पर, जातीय संघर्ष की घटनाएँ नयी सरकार के लिए चिंता का विषय हो सकती हैं।

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