८८. युद्धविराम समझौता; स्वतंत्र इस्रायल की मार्गक्रमणा शुरू

सन १९४८ के अरब-इस्रायल युद्ध में इस्रायल की विजय हुई। इस्रायल के चारों ओर से आक्रमण कर आयीं ५ अरब देशों की शस्त्रसुसज्जित ताकतवर सेनाएँ बनाम बहुत ही कम युद्धसामग्री के साथ, अपर्याप्त सैनिकबल के साथ उनका प्रतिकार करनेवाली इस्रायली सेना ऐसा यह विषम सामना इस्रायल ने अनगिनत अड़चनों को मात देकर जीता। अरब सेनाएँ खदेड़ दी गयी थीं।

इस युद्ध के दौरान दो बार युनो-प्रणित संघर्षबंदी (सीझफायर) घोषित की गयीं। ‘११ जून से ८ जुलाई १९४८’ और ‘१८ जुलाई से १५ अक्तूबर १९४८’ इन पहलीं दो संघर्षबंदियों का, युद्ध रोकने की दृष्टि से कुछ भी उपयोग नहीं हुआ। इस्रायल ने केवल इन संघर्षबंदियों की कालावधि का इस्तेमाल, युद्ध में गँवायी हुई अपनी ताकत को पुनरुज्जीवित करने के लिए किया।

इस युद्ध के ख़त्म होने तक इस्रायल ने, युनो के सन १९४७ के विभाजन प्रस्ताव के तहत ज्यूधर्मियों को प्रदान किया गया सारा भाग तो अपने कब्ज़े में कर ही लिया था; साथ ही, युनो द्वारा प्रस्तावित अरब-राष्ट्र को प्रदान किये गये भाग में से भी लगभग ६० प्रतिशत भाग पर कब्ज़ा कर लिया था। (पहले के ‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ के तक़रीबन ७८% भाग पर – जिसमें पूरा गॅलिली और जॅझरील समतल भाग, संपूर्ण नेगेव्ह रेगिस्तान, पश्‍चिम जेरुसलेम और संपूर्ण किनारी समतल प्रदेश का समावेश था।)

इस्रायल के सेनानी मोशे दायान ट्रान्सजॉर्डन का सेनानी अब्दुल्ला अल-तेल के साथ चर्चाबैठक में

लेकिन जॉर्डन नदी के पश्‍चिमी किनारे से सटे भाग पर – ‘वेस्ट बँक’ पर उस समय तो जॉर्डन का नियंत्रण रहा और गाज़ापट्टी पर इजिप्त का! इस वेस्ट बँक के साथ साथ जेरुसलेम का पूर्वी भाग भी जॉर्डन के कब्ज़े में रहा।

सन १९४९ शुरू हुआ, फिर भी युद्ध जारी ही था। लेकिन अरब सेना अब युद्ध के ख़त्म होने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही थी। युद्ध ख़त्म करने की इच्छा होने का पहला संकेत इजिप्त ने दिया। उसके बाद इस्रायल के इन आक्रमक अरब राष्ट्रों के साथ (इजिप्त के साथ २४ फ़रवरी १९४९ को, लेबेनॉन के साथ २३ मार्च को, जॉर्डन के साथ ३ अप्रैल को तथा सिरिया के साथ २० जुलाई को) ऐसे अलग अलग युद्धविराम समझौते हुए। इराक यह इस्रायल से सटा हुआ न होने के कारण (अर्थात् दोनों में सामायिक सीमारेखा न होने के कारण) इराक के साथ स्वतंत्र युद्धविराम समझौता न होते हुए, उसका समावेश जॉर्डन के साथ के समझौते में ही कर लिया गया।

जॉर्डन के साथ के समझौते की चर्चा सर्वाधिक पेचींदा साबित हुई, क्योंकि इसमें ‘वेस्ट बँक’ यह मुद्दा था। दरअसल जॉर्डन के साथ हुए समझौते से पहले इस्रायली सेना के – ‘आयडीएफ’ के सेनाधिकारियों ने, ‘हम वेस्ट बँक पर हमला कर वह भाग भी जीत लेते हैं’ ऐसा सुझाव बेन-गुरियन को दिया था। उस समय की ‘आयडीएफ’ की क्षमता को देखते हुए, दरअसल यह आसानी से मुमक़िन है, यह भी बेन-गुरियन जानते थे। मग़र फिर भी उन्होंने इस ऑपरेशन के लिए अनुमति नहीं दी। एक तो इस युद्ध में इस्रायल ने उम्मीद से बहुत ही ज़्यादा प्राप्त कर लिया था। उसीके साथ, ‘नर्म ज़मीन मिली है इसलिए खोदते ही गये’ तो, इस प्रश्‍न का जल्द से जल्द हल निकालने के लिए आग्रही होनेवाले अमरीका तथा ब्रिटन नाराज़ हो जाने का डर था। इसलिए, अब युद्ध में अधिक समय और ताकत ज़ाया न करते हुए, अपने नये से जन्मे राष्ट्र के गठन की तुरन्त ही शुरुआत करेंगे, ऐसा सेनाधिकारियों को समझाकर बताते हुए बेन-गुरियन ने इस ऑपरेशन से इन्कार कर दिया।

सिरिया के साथ के युद्धविराम समझौते में ‘गोलन हाईट्स’ (गोलन पहाडियाँ) का मुद्दा विवादास्पद था। हालाँकि की यह भाग पहले से ही फ्रेंच मँडेटरी सिरिया में था, मग़र अब इस युद्ध के दौरान उसमें का काफ़ी भाग इस्रायल के कब्ज़े में आया था और युद्ध में जीते हुए इस भाग का कब्ज़ा खो देने के लिए इस्रायल तैयार नहीं था। बहुत सारी चर्चा के बाद गोलन पहाड़ियों पर के दोनों पक्षों के नियंत्रण के भाग तय किये गये, साथ ही, ‘डिमिलिटराईज्ड झोन्स’ भी सुनिश्‍चित किये गये।

ज्यूविरोधी हिंसाचार में फँसे येमेनस्थित ज्यूधर्मियों को ‘ऑपरेशन मॅजिक कार्पेट’ इस खुफ़िया ऑपरेशन के अंतर्गत हवाई मार्ग से सुखपूर्वक इस्रायल में लाया गया।

इन सारे युद्धविराम समझौतों के तहत, इस्रायल की पड़ोसी अरब देशों के साथ होनेवालीं युद्धविराम-रेखाएँ (‘आर्मिस्टाईस लाईन्स’) भी सुनिश्‍चित की गयीं, जो स्थायी राजकीय सीमारेखाएँ न होकर, केवल मार्गदर्शकस्वरूप एवं लष्करी तैनाती की दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण थीं। इस सारे समझौतों में पॅलेस्टिनी अरब स्थलांतरितों का मसला और इस्रायल की सीमाएँ इन दो ही मुद्दों पर अधिकांश रूप में चर्चा की गयी।

स्वतंत्र इस्रायल की घोषणा करने के बाद इस्रायल ने तुरन्त ही ज्यू-स्थलांतरण पर लगी हुई पाबंदी को पूरी तरह हटाकर दुनियाभर से इच्छुक ज्यूधर्मियों को इस्रायल में समा लेने की शुरुआत की थी। उसके कुछ सालों में दुनियाभर से लगभग दस लाख से भी अधिक ज्यूधर्मीय इस्रायल में स्थलांतरित हुए, जिनका इस्रायल में दिल से और प्रेमपूर्वक स्वागत किया गया।

इतना ही नहीं, बल्कि येमेन, एडन, जिबूती ऐसे कई स्थानों में, जहाँ ज्यूधर्मीय ज्यूविरोधी दंगों में, हिंसाचार में फँसे हुए थे, वहाँ गोपनीय ऑपरेशन्स करवाकर वहाँ के हज़ारों ज्यूधर्मियों के हवाई मार्ग से, ब्रिटीश और अमरिकी विमानों की तक़रीबन ३८० उड़ानें भरकर सुखपूर्वक इस्रायल में लाया गया। (‘ऑपरेशन मॅजिक कार्पेट’)

उल्टे, इस युद्ध के दौरान पॅलेस्टाईन प्रांत से अरब देशों में पलायन की हुई पॅलेस्टिनी अरब जनता को इन अरब देशों ने समा नहीं लिया। ना तो उन्हें अपना नागरिकत्व बहाल किया और ना ही उनका अन्यत्र पुनर्वसन किया। उन्हें हमेशा स्थलांतरितों के लिए निर्माण किये गये संक्रमणशिविरों में ही कायम रखा और उनका इस्रायल के खिलाफ़ केवल राजकीय हथियार के रूप में इस्तेमाल कर लिया। (अपवाद (एक्सेप्शन) केवल जॉर्डन का था, जिसमें ‘वेस्ट बँक’स्थित लगभग दो लाख पॅलेस्टिनी अरब निर्वासितों को जॉर्डन का नागरिकत्व तथा जॉर्डन की संसद में प्रतिनिधित्व देने की तैयारी जॉर्डन के राजा ने दर्शायी। लेकिन उनका पुनर्वसन जॉर्डन में किया जानेवाला नहीं था, बल्कि उन्हें वेस्ट बँक में ही रहना था।)

जनवरी १९४९ में हुए स्वतंत्र इस्रायल के पहले चुनावों में मतदान का हक़ जताते हुए इस्रायली प्रधानमंत्री डेव्हिड बेन-गुरियन

इस्रायल में इस युद्ध को बतौर ‘इस्रायल का स्वतन्त्रतायुद्ध’ (‘वॉर ऑफ इंडिपेन्डन्स’) पहचाना जाता है; वहीं, अरब-विश्‍व में इस युद्ध को ‘नक़बा’ (महाआपत्ति-‘कॅटॅस्ट्रोफ’) माना जाता है; क्योंकि इस युद्ध के कारण ही इतनी भारी मात्रा में अरब जनसंख्या को पॅलेस्टाईन प्रांत छोड़कर अन्यत्र आश्रय लेना पड़ा था।

सारे युद्धविराम समझौते संपन्न होने के बाद, बेन-गुरियन और उनके सहकर्मी ज़ोर से काम में जुट गये थे। इसी बीच, २५ जनवरी १९४९ को इस्रायल में पहले चुनाव भी हुए थे। ८६% से अधिक मतदान हुए इन चुनावों में डेव्हिड बेन-गुरियन की ‘मापई’ पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिलीं। १२० सीटों की इस्रायली संसद – ‘नेसेट’ का पहला अधिवेशन १४ फ़रवरी १९४९ को शुरू हुआ। इसमें अधिकृत रूप में, कैम वाईझमन का ‘इस्रायल के पहले राष्ट्राध्यक्ष’ के रूप में और डेव्हिड बेन-गुरियन का ‘इस्रायल के पहले प्रधानमन्त्री’ के रूप में बहुमत से चयन किया गया।

पहले चुनावों में जीत हासिल करने के बाद पहले मंत्रिमंडल की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री डेव्हिड बेन-गुरियन

प्रशासन के लिए आवश्यक अन्य संस्थाओं का निर्माण करने के साथ ही बेन-गुरियन ने राष्ट्र के गठन की दृष्टि से ग्रामीण विकास, जलव्यवस्थापन, नेगेव्ह जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में बस्तियाँ आदि कई महत्त्वपूर्ण प्रकल्पों की शुरुआत की।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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