हर सप्ताह में दुनिया बडी नैसर्गिक आपत्ति का सामना कर रही है – संयुक्त राष्ट्रसंघ का इशारा

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरसंयुक्त राष्ट्र – ‘मोझांबिक में झटका दे रहे चक्रवात और भारत में दिखाई दिया सुखा, पूरी दुनिया के माध्यमों का ध्यान आकर्षित कर रहा था| लेकिन, इसके अलावा दुनिया के कई कोनों में लगातार नैसर्गिक आपत्ति का झटका लग रहा है और इशसे बडी संख्या में जान एवं अन्य नुकसान हो रहा है| यह अब भविष्य का प्रश्‍न नही रहा, बल्कि वर्तमान का मुद्दा बना ’, यह कहकर दुनिया में बडी नैसर्गिक आपत्ति की संख्या में बढोतरी होने का इशारा संयुक्त राष्ट्रसंघ ने दिया है| हर सप्ताह में देखी जा रही नैसर्गिक आपत्ति के झटकों से अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सालाना ५०० अरब डॉलर्स से भी अधिक नुकसान उठाना पड रहा है, यह दावा संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी मामि मिझुतोरी ने किया|

दुनिया में हर सप्ताह में नैसर्गिक आपत्ति का झटका लग रहा है और सभी आपत्तियों की ओर सही मात्रा में ध्यान दिया नही जा रहा है, यह नाराजगी मिझुतोरी ने अहवाल में व्यक्त की है| साथ ही नैसर्गिक आपत्ति की वजह से विकसनशील देशों कें नुकसान होने का प्रमाण ज्यादा है और यह रोकने के लिए तुरंत प्रावधान करना जरूरी होने का निवेदन संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिकारियों ने किया है| अबतक नैसर्गिक आपत्ति का सामना करने के लिए इससे होनेवाला नुकसान कैसे कम होगा, इसी बात पर ध्यान दिया जा रहा है| लेकिन, इसके आगे इसमें बदलाव करके आपत्ति का सामने करने के लिए आधुनिक बुनियादी सुविधाओं का निर्माण एवं इसके लिए बडा निवेष करने पर जोर देना होगा, ऐसा संयुक्त राष्ट्रसंघ की अहवाल में कहा गया है|

मौसम में हो रहे बदलाव के कारण बनी आपात्कालीन स्थिति एवं संकट के मुद्दे पर लगातार बयान किया जाता है| लेकिन, नैसर्गिक आपदा के कारण हो रहा असर और नुकसान को लेकर गंभीरता से विचार किया गया नही तो संभव है आगे हम जीवित ही ना बच पाएंगे, यह चौकानेवाला इशारा संयुक्त राष्ट्रसंघ के वरिष्ठ अधिकारी मामि मिझुतारी ने दिया है| कुछ नैसर्गिक आपदा से हो रहे बडे नुकसान से बचना संभव है, इस ओर भी उन्होंने ध्यान केंद्रीत किया| इसके लिए इन आपत्ति का झटका महसूस हो रही जनता को सही समय पर चेतावनी देना, अच्छी बुनियादी सुविधा उपलब्ध होना, और सरकार को खतरनाक क्षेत्रों का सही ज्ञान होना जरूरी है, ऐसा मिझुतोरी ने कहा|

साथ ही नैसर्गिक आपत्ति की बढती मात्रा और इससे हो रहा नुकसान की समस्या सीर्फ विकसनशील देशों की नही है| अमरिका में लग रही जंगल की आग, यूरोप में उठ रही गरमी की लहर जैसी आपदा का झटका प्रगत देशों को भी लग रहा है, यह बात स्पष्ट हुई है| प्रगत देशों के सामने भी बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करके जनता को सुरक्षित रखने की चुनौती है, इसे भुला नही जा सकता, इश ओर भी संयुक्त राष्ट्र के अहवाल में ध्यान दिया गया है|

Leave a Reply

Your email address will not be published.