सामान्य जनों तक संगणक पहुँचाने वाले डॉ. विजय भटकर

‘मूर्ति छोटी पर कीर्ति बड़ी’ इस लोकोक्ति के अनुसार अन्तरराष्ट्रीय कीर्ति के खोजकर्ता के रूप में भारतीय संगणक एवं आय टी क्षेत्र में डॉ. विजय भटकर का नाम कब का दर्ज हो चुका है। दो दशकों पूर्व एक ऐसा दौर चल रहा था, जब भारत जैसे विकसनशील देश को एक ताकतवर देश सुपर संगणक तकनीकी ज्ञान देने से कर रहा था। डॉ. विजय भटकर ने उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ‘हम भारतीय शास्त्रज्ञ इस आधुनिक तकनीकी ज्ञान को विकसित कर सकते हैं’ यह निर्धारपूर्वक कहा। साथ ही हम अपने संगणक विषय से संबंधित ‘सी-डॅक’ नामक तकनीकी ज्ञान केन्द्र में सुपर संगणक बनायेंगे यह कहकर उन्होंने वैसा ही महासंगणक बनाकर दिखला भी दिया। अमरीका के समान बलवान माने जानेवाले राष्ट्र को संगणक के क्षेत्र में आज संगणक शास्त्रज्ञों की मदद लेने हेतु भारत पर निर्भर रहना पड़ रहा है, यह तो हम जानते ही हैं।

विदर्भ के मुरंबा इस छोटे से गाँव में ११ अक्तूबर १९४६ के दिन उनका जन्म हुआ। अपनी मातृभाषा में ही उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। नागपूर महाविद्यालय से बी.ई., बड़ौदा महाविद्यालय से एम.ई. और दिल्ली के इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी इस संस्था से पी.एच.डी. की उपाधि उन्होंने प्राप्त की। पुणे महाविद्यालय के प्रांगण में ‘सेंटर फॉर डेव्हलपमेंट ऑफ अ‍ॅडवान्सड् कॉप्युटिंग’ ‘सी-डॅक’ नामक आंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संस्था विकसित थी।

‘इलेक्ट्रॉनिक संशोधन’, संशोधन एवं विकास’ ‘ईटीएच संशोधन प्रयोगशाला’ इस प्रकार की अनेक संस्थाएँ डॉ. विजय भटकर के अथक परिश्रम से निर्मित हुई। भारत में आय.टी. अर्थात् ‘इर्न्फोमेशन टेक्नॉलॉजी’ तथा ‘इंडिया मल्टी यूनिव्हर्सिटी इंटरनेशनल’ इन क्षेत्रों में भी उन्होंने अनमोल कअर्य किया है। ‘सर्वांगीण शिक्षा’ विषयक योजना बनाने का उनका उद्देश्य रहा होगा। ‘परम’ सुपर संगणक बनानेवाले एवं बहुभाषिक भाषांतर एक ही समय में संगणक पर कर सकनेवाली नयी तकनीक ढूँढ़कर निकालनेवाले संशोधनकर्ता के रूप में भी डॉ. भटकर जाने पहचाने जाते हैं। फिलहाल ‘ईटीएच’ अर्थात ‘एज्युकेशन टू होम’ – ‘घर बैठे शिक्षा’ यह योजना बनाकर उसे घर-घर में पहुँचाने के लिए वे कार्यरत हैं। GIST multilingual technology नामक यह तकनीकी ज्ञान उन्होंने १० लिपियों सहित १६ महत्त्वपूर्ण भाषाओं के माध्यम से विकसित किया है। १९९८ में एक देश ने भारत को परम संगणक के प्रति तकनीकी ज्ञान देने से इंकार करते ही डॉ. भटकर ने १९९८ में ‘परम-८०००’ एवं १९९९ में ‘परम १०,०००’ इस प्रकार के संगणक विकसित करके अपने देश को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बना दिया। रशिया, कॅनडा, जर्मनी, सिंगापुर इन देशों में भी भारत ने संगणकों को निर्यात किया।

देश के करोड़ो लोगों में से बहुत कम प्रतिशत लोग अंग्रेजी भाषा बोलते हैं। बचे हुए अधिकांश लोग भारतीय भाषा में व्यवहार करनेवाले हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए संगणक में ही विभिन्न भाषाओं का अनुवाद करनेवाली तकनीक ढूँढ़कर विकसित करने में सी-डॅक नामक संस्था के यशस्वी होने में डॉ. विजय भटकर का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उसका लाभ यह है कि अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य भाषाओं का भाषांतरित लेखन, साहित्य सामग्री, संभाषण पढ़ने एवं सुनने की सुविधा भी की गई थी। संगणक एक्स्पर्टस् की बढ़ती माँग को ध्यान में रखकर सी-डॅक एवं अन्य संस्थाओं में प्रशिक्षण के लिए अनेक सुविधाएँ उपलब्ध कर दी गईं हैं। आज उनके द्वारा स्वयं लिखी गई एवं संपादित की गई आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ८० से अधिक संशोधनों से संबंधित शोध निबंध विविध परिषदों में विशेषज्ञों के समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं।

प्रधानमंत्री के साथ काम करनेवाले आय. टी. ज्ञान विकास कार्यक्रम के समूह में डॉ. भटकर का भी समावेश था। केन्द्र सरकार के वैज्ञानिक समिति के एक सदस्य के रूप में उनकी नियुक्ति की गई थी। रॉयल सोसायटी (इंग्लैड) में संगणकशास्त्र संबंधित विषय पर बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था। भारत ने दक्षिण अफ्रिका को संगणक एवं आय. टी. ज्ञान प्रतियोगिता में किस प्रकार से मदद करनी चाहिए, इससे संबंधित कार्य करने वाली कमिटी के वे प्रमुख थे। ‘भारत-फ्रेंच’, ‘भारत-हंगेरी’ इस प्रकार की संयुक्त समितियों के वे सदस्य थे। डॉ. भटकर के अनेक शिष्य आज अमरिका में वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे हैं। ‘डिश-नेट’ नामक संस्था के भी वे अध्यक्ष हैं। त्रिवेंद्रम के ‘केरला इन्फोटेक पार्क’ इस अत्यन्त उत्तम श्रेणी के माने जानेवाले आय. टी. पार्क के निर्माण के पीछे भी डॉ. भटकर का ही हाथ है। संगणकशास्त्र का उपयोग करके वेदकालीन ज्ञान की जड़ें मज़बूत करना, उसका संवर्धन करना, संगणकशास्त्र का अधिक प्रसार और आय. टी. ज्ञान का प्रशिक्षण इन कार्यों में उनका बहुत बड़ा योगदान है।

अध्यात्म यह जीवन का सार मानकर चलनेवाले इस संशोधनकर्ता को सैंकड़ों पुरस्कारों, अ‍ॅवॉर्डस् आदि से गौरवान्वित किया गया है। उनमें से महत्त्वपूर्ण है, २००० में प्राप्त होनेवाला ‘पद्मश्री’ पुरस्कार, १९९९-२००० ‘महाराष्ट्र भूषण’ और २००३ में आय टी क्षेत्र का सर्वोच्च माना जाने वाला ‘डाटा क्वेस्ट लाईफ टाईम अचिव्हमेन्ट पुरस्कार’। एक वाक्य में यदि कहना हो तो सामान्य मानवों तक संगणक पहुँचानेवाले और आय टी ज्ञान एवं संगणक क्षेत्र के तकनीशन तैयार करने में अनमोल योगदान देनेवाले डॉ. भटकर ये एक संशोधनकर्ता हैं।

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