अमरीका भारत से अवास्तविक उम्मीदें नहीं रख सकती – अमरीका के पूर्व रक्षा मंत्री की सलाह

वॉशिंग्टन – ‘अलिप्ततावाद यह भारत की पारंपरिक विदेश नीति रही है। रशिया यह भारत को शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री की आपूर्ति करनेवाला महत्वपूर्ण मित्र देश है। अपने शस्त्रास्त्रों के लिए भारत अभी भी रशिया पर निर्भर है। ये सारे शस्त्रास्त्र बाजू में रखकर भारत नये शस्त्रास्त्र की खरीद करें, ऐसी अव्यवहारिक उम्मीद कोई भी रख नहीं सकता, इसपर गौर किया तो अच्छा है’, ऐसा अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री ऍश्टन कार्टर ने कहा है। रशिया से ‘एस-४००’ हवाई सुरक्षा यंत्रणा की खरीद करने वाले भारत को प्रतिबंधों की धमकियाँ देनेवाले बायडेन प्रशासन को पूर्व रक्षामंत्री ऍश्टन कार्टर ने खरी खरी सुनाई दिख रही है।

अवास्तविक उम्मीदें

‘युएस चेंबर्स ऑफ कॉमर्स’ में ऍश्टन कार्टर बात कर रहे थे। ऍश्टन कार्टर इन दिनों अमरिका के हारवर्ड केनेडी स्कूल में बेलफेर सेंटर फॉर सायन्स अँड इंटरनॅशनल अफेअर्स इस विभाग के संचालक के रूप में काम कर रहे हैं कुछ टॉप भारत और अमेरिका के बीच के रक्षा विषयक सहयोग के बारे में बात करते हुए कमा यह बात अपरिहार्य होने का दावा कार्टर ने किया। लश्कर और सुरक्षा इस क्षेत्र में भारत और अमेरिका का सहयोग यह अपरिहार्य भवितव्य होने की बात कार्टर ने कही।

मैं जब अमरीका का रक्षा मंत्री था, तब प्रधानमंत्री मोदी के साथ मेरी चर्चा हुई थी। उस समय अमरीका के तंत्रज्ञान क्षेत्र में कार्यरत होनेवाले भारतीयों की जानकारी मैंने उन्हें दी थी, ऐसा कार्टर ने कहा। अंग्रेजी भाषा पर भारतीयों की हुकूमत होने के कारण, भारतीयों को अमरीका जैसे देश में औरों से ज्यादा प्रगति का बड़ा अवसर प्राप्त होता है, ऐसी धारणा है। उसका अप्रत्यक्ष हवाला देकर कार्टन यह बात स्पष्ट की कि दोनों देशों के बीच का सहयोग यह केवल अंग्रेजी भाषा तक ही सीमित नहीं है।

दोनों देशों के बीच का यह सहयोग उससे बहुत आगे जाने वाला है। लोकतंत्र के साथ ही दोनों देशों में बहुत सामान बातें हैं, ऐसा दावा कार्टर ने किया। लेकिन भारत और अमरीका के बीच के सहयोग के बारे में बात करते समय, कुछ बातों की खबर लेना अत्यावश्यक होने की बात कार्टर ने स्पष्ट की।

अलिप्ततावाद की परंपरा यह भारत की विदेश नीति का अहम भाग है, यह कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उसी समय रशिया यह भारत को रक्षासामग्री की सप्लाई करनेवाला पारंपरिक मित्र देश है। अभी भी भारत रशियन रक्षासामग्री और शस्त्रास्त्र बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहा होकर, उसके लिए भारत रशिया पर निर्भर है। भारत ये शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री स्क्रैप करके सभी चीज़ें नए से खरीदें, ऐसी अव्यवहारिक उम्मीद नहीं रख सकते, इसपर कार्टर ने गौर फरमाया। इसके द्वारा अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री विद्यमान बायडेन प्रशासन को खरी खरी सुना रहे हैं, यह बात सामने आ रही है।

बायडेन प्रशासन ने भारत के साथ के सहयोग को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की बात मान्य की थी। उसी समय, भारत रशिया से खरीद रहे ‘एस-४००’ हवाई सुरक्षा यंत्रणा को लेकर बायडेन प्रशासन भारत को प्रतिबंधों की धमकियाँ दे रहा है। साथ ही, भारत फ्रान्स से रफायल विमानों की खरीद कर रहा है, यह बात भी अमरीका को मान्य नहीं। उसके बजाय भारत अमरिकी कंपनियों के लड़ाकू विमानों की खरीद करें, ऐसी अमरीका को उम्मीद है। भारत का रक्षा विषयक मार्केट अरबों डॉलर्स का होकर, उसका अधिक से अधिक हिस्सा अमरीका प्राप्त करें, ऐसी अमरीका की माँग है। यह माँग अगर पूरी नहीं हुई, तो उसके परिणाम भारत को भुगतने पड़ेंगे, ऐसे संकेत अमरीका द्वारा भारत को दिए जा रहे हैं।

भारत ने अमरीका से भारी लष्करी यातायात करनेवाले विमान और हेलीकॉप्टर्स, हमला करने की क्षमता होनेवाले अटैक हेलीकॉप्टर्स और नौसेना के लिए पनडुब्बीविरोधी युद्ध में प्रभावी साबित होनेवाले रोमियो हेलीकॉप्टर्स की खरीद की है। साथ ही, अमरीका से हॉवित्झर तोपें और अत्याधुनिक राइफल्स इनकी भी खरीद भारत ने की है। इससे अमरीका भारत को रक्षा सामग्री और शस्त्रास्त्रों की सप्लाई करनेवाला महत्वपूर्ण देश बना है। लेकिन अमरीका की उम्मीद इससे कई गुना अधिक है। ये सारी उम्मीदें भारत पूरी नहीं कर सकता। उसी समय, रशिया जैसे अपने पारंपरिक मित्रदेश को दुखाने का फैसला करना भी भारत के लिए संभव नहीं है।

इसी का एहसास अमरीका के पूर्व रक्षा मंत्री ऍश्टन कार्टर विद्यमान बायडेन प्रशासन को करा रहे हैं। इस मोरचे पर बायडेन प्रशासन ने अगर आक्रामकता दिखाई, तो उसका असर भारत के साथ के संबंधों पर हुए बगैर नहीं रहेगा। इस कारण अमरीका का प्रशासन भारत के संदर्भ में अधिक चौकन्नी भूमिका अपनाएँ और भारत की समस्याओं को समझ लें, ऐसी सलाह कार्टर द्वारा बायडेन प्रशासन को दी जा रही है। इससे पहले अमरीका के विपक्षी नेताओं ने भी बायडेन प्रशासन को भारत के साथ के संबंधों को लेकर खरी-खरी सुनाई थी।

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