अंतरिक्ष में परमाणु केंद्र प्रक्षेपित करने की अमरिका की योजना – अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के लिए परमाणु उर्जा का इस्तेमाल करने के संकेत

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरवॉशिंग्टन: अंतरिक्ष की मुहीम किसी भी कठिनाई से लंबे समय तक शुरू रखने के लिए सीधे परमाणु केंद्र अंतरिक्ष में भेजने की योजना अमरिका ने बनाई है| अमरिका की अंतरिक्ष संस्था ‘नासा’ एवं उर्जा विभाग इस योजना पर काम कर रहे है| इस संबंधी कुछ प्राथमिक परीक्षण किए गए है और वर्ष २०२२ तक अंतरिक्ष में परमाणु केंद्र भेजना मुमकिन होगा, यह दावा ‘नासा’ के अधिकारी कर रहे है| अंतरिक्ष में भेजे जानेवाले रॉकेट में परमाणु उर्जा का सीमित इस्तेमाल वर्ष १९७० के दशक से शुरू हुआ है| फिर भी सीधे परमाणु केंद्र अंतरिक्ष में भेजने की यह पहली कोशिश होगी|

अमरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने उर्जा विभाग की सहायता से वर्ष २०१५ से ‘किलोपॉवर प्रोजेक्ट’ की योजना पर काम शुरू किया है| इसमें १ से १० किलोवैट उर्जा निर्माण करने में सक्षम ‘फिशन रिएक्टर’ का निर्माण करने की कोशिश हो रही है| इसके लिए ‘युरेनियम २३५’ का इस्तेमाल किया जाएगा| अंतरिक्ष की मुहीमों में कम से कम १० से १५ वर्ष लगातार बिजली की सप्लाई शुरू रहेगी, इस तरह से परमाणु केंद्र विकसित करके इसका इस्तेमाल करने की कोशिश है|

किलोपॉवर प्रोजेक्ट के प्रमुख पैट्रिक मैकक्लर ने अगले तीन वर्षों में इस संबंधीत प्रक्रिया पूरी होगी और अंतरिक्ष में परमाणु केंद्र भेजने के लिए हम तैयार होंगे, यह दावा किया है| नासा के ‘स्पेस टेक्नॉलॉजी मिशन डायरेक्टरेट’ ने इस बारे में जानकारी देते समय चांद एवं मंगल पर भविष्य में ‘ह्युमन आउटपोस्ट’ बनाकर उसे भी किलोपॉवर प्रोजेक्ट के परमाणु केंद्र उपयोगी हो सकते है, यह संकेत दिए गए है|

परमाणु उर्जा का अंतरिक्ष में इस्तेमाल करना यह नई बात नही है, फिर भी ‘फिशन रिएक्टर’ के जरिए परमाणु उर्जा का निर्माण करना और इस्तेमाल करनेवाली परियोजना काफी महत्त्वाकांक्षी है, यह विशेषज्ञों का कहना है| ‘नासा’ के ‘वोएजर१’ एवं ‘क्युरिऑसिटी मार्स रोव्हर’ इन अहम अंतरिक्ष मुहिमों के लिए परमाणु उर्जा का इस्तेमाल किया गया है| लेकिन, इसमें ‘रेडिओआईसोटोप थर्मोइलेक्टिक जनरेटर्स’ (आरटीजी) तकनीक का इस्तेमाल किया गया था| इसमें ‘रेडिओआईसोटोप’ के जरिए निर्माण होनेवाली बिजली का इस्तेमाल किया गया था|

लेकिन, किलोपॉवर प्रोजेक्ट में ‘स्टर्लिंग तकनीक’ का इस्तेमाल किया जा रहा है और युरेनियम की सहायता से उर्जा निर्माण करने की कोशिश हो रही है| इससे प्राप्त होनेवाली उर्जा ‘न्यूक्लिअर इलेक्ट्रीक प्रोपल्जन’ तकनीक के जरिए अंतरिक्ष यान के उडान के लिए इस्तेमाल करने के संकेत भी दिए गए है|

पिछले कुछ वर्षों में अमरिका, चीन, रशिया जैसे प्रमुख देशों ने चांद एवं मंगल ग्रह पर मनुष्य के लिए रियासी क्षेत्र निर्माण करने के लिए काफी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के संकेत दिए है| इस पृष्ठभूमि पर परमाणु केंद्र अंतरिक्ष में भेजकर लंबे समय तक उर्जा का प्रावधान करने की कोशिश ध्यान आकर्षित करती है|

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