अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष करेंगे तालिबानी नेताओं से भेंट

वॉशिंग्टन/काबुल: कतार के दोहा में अमरिका और तालिबा में हुई शांति वार्ता पर अलग अलग प्रतिक्रिया प्राप्त हो रही है| इस शांति समझौते का मतलब अफगानिस्तान में फिर से तालिबान की सरकार बनेगी क्या? यह सवाल किया जा रहा है और अफगान सेना में, खास तौर पर महीलाओं के मन में इससे डर का माहौल बना है| हमारी बलि चढाकर यह शांति समझौता करने की कोशिश है क्या? यह सवाल अफगान महीला कर रही है| इसपर जवाब देने के लिए कोई भी आगे नही आया है, बल्कि जल्द ही हम तालिबानी नेताओं से भेंट करेंगे, यह ऐलान करके अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने तालिबान के साथ किए समझौते का समर्थन किया|

शनिवार के दिन कतार की राजधानी दोहा में अमरिका और तालिबान ने शांति समझौता किया| इसके दुसरे ही दिन अमरिका के राष्ट्राध्यक्ष की यह प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है| तालिबान ने जो कुछ कबुल किया है इसपर वह कायम रहेंगे और आगे भी स्वयं ही आतंकियों को खतम करने का वादा निभाएंगे, यह भरोसा डोनाल्ड ट्रम्प ने जताया| अफगानिस्तान में जारी आतंकवाद विरोधी युद्ध में अमरिका को बडी जीत प्राप्त हुई है, पर अब अपने सैनिकों को स्वदेश लाने का अवसर बना है, यह कहकर ट्रम्प ने अमरिकी सेना हटाने के लिए तैयार होने का दावा किया| ट्रम्प के इस निर्णय का समर्थन कर रहे है, तभी अमरिका में कुछ लोगों ने इस निर्णय पर चिंता व्यक्त की है|

अमरिकी सिनेटर लिंडसे ग्राहम ने तालिबान पर भरोसा करना काफी कठिन होने की बात कही है| अमरिका के भूतपूर्व लष्करी अफसर भी ग्राहम की तरह तालिबान की भूमिका पर संदेह व्यक्त कर रहे है| अफगान सरकार ने भी शांति समझौते का स्वागत किया है, फिर अपने कब्जे में होनेवाले तालिबान के हजारों सदस्यों को रिहा करने से इन्कार किया है| साथ ही अफगानिस्तान के सभी घटकों के साथ हो रही बातचीत के मुद्दे पर भी अफगान सरकार ने सावधानता से भूमिका अपनाई दिख रही है| अफगान समाज में भी तालिबान के साथ अमरिका की बातचीत के दौरान बेचैनी बनती दिख रही है| खास तौर पर महीला वर्ग तालिबान फिर से सत्ता में आएगी क्या, इस डर से त्रस्त है|

अफगानिस्तान पर तालिबान की सत्ता थी तभी महीलाओं की शिक्षा बंद की गई थी| इस दौरान महीलाओं को घर से बाहर निकलना भी कठीन हुआ था| वही दिन लौटेंगे, यह चिंता अफगान महीला जता रही है|

इसी कारण हमारा भविष्य गिरवी रखकर अमरिका ने तालिबान के साथ शांति समझौता किया है क्या, यह सवाल अफगानिस्तान में पुछा जा रहा है| हमें जनतंत्र की व्यवस्था मंजूर ना होने की बात तालिबान ने पहले ही घोषित की थी| अगले दौर में लोकनियुक्त सरकार की निती को तालिबान मंजूरी देगी क्या? यह बुनियादी सवाल इस शांति समझौते के बाद उपस्थित किया जा रहा है|

तालिबान के बारे में ऐसी सभी चिंता जताई जा रही है तभी पाकिस्तान में तालिबान समर्थक चरमपंथी जल्लोष कर रहे है| तालिबान ने अमरिका को सेना हटाने के लिए मजबूर किया यह कहकर यह चरमपंथी तालिबान की जीत होने का दावा कर रहे है| इसके अलावा अब अफगानिस्तान का नियंत्रण पाकिस्तान का प्रभाव होनेवाले तालिबान के हाथ में आएगा और अफगानिस्तान में बना भारत का प्रभाव खतम होगा, यह दावा करके यह भारत द्वेषी चरमपंथी संतोष जता रहे है|

अमरिका ने अफगानिस्तान में आतंकवादविरोधी युद्ध शुरू करते समय अफगानिस्तान की भूमिका का इस्तेमाल दुसरें देश के विरोध में नही होने देंगे, यह ऐलान किया था| पर, अब तालिबान ही अफगानिस्तान की भूमिका इस्तेमाल दुसरे देश के विरोध में ना होने देंगे, यह ऐलान कर रही है, इस ओर पाकिस्तान के यह चरमपंथी विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे है| इस वजह से तालिबान ही इस युद्ध में विजेता होने की बात कहकर अफगानिस्तान में जल्द ही तालिबान की सरकार बनेगी, यह दावा पाकिस्तान के यह चरमपंथी जता कर रहे है| तभी कुछ विश्‍लेषक तालिबान की नीति में बदलाव होने का दावा कर रहे है|

अफगानिस्तान का युद्ध शुरू हुआ था तब की तालिबान और अब की तालिबान में काफी बडा अंतर है| कुछ दिन पहले अमरिकन समाचार पत्र में तालिबान का प्रमुख नेता सिराजउद्दीन हक्कानी का लिखा लेख प्रसिद्ध हुआ था| इस लेख में उसने अफगानिस्तान के युद्ध में सभी लोग थक चुके है, यह कहकर तालिबान को भी अब शांति की उम्मीद होने का दावा किया था| इस वजह से अगले दिनों में तालिबान पाकिस्तान के इशारे पर काम करेगी, यह मुमकीन नही है, यह बात पाकिस्तान के कुछ विश्‍लेषक कर रहे है| उसी समय अफगानिस्तान में बनें लष्करी अड्डे अमरिका खाली नही करेगी, इस ओर भी यह विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे है|

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