अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अमरिकी डॉलर के हिस्से में गिरावट

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरवॉशिंगटन – रशिया और चीन जैसी अर्थव्यवस्था अमरिका के आर्थिक वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश कर रही है| ऐसे में अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में प्रमुख ‘अमरिकी डॉलर’ के हिस्से में गिरावट होने की जानकारी सामने आयी है| अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने राखीव चलनों में हुई निवेष की जानकारी प्रसिद्ध की है| इसमें अमरिकी डॉलर्स का हिस्सा पिछले छह वर्षों में सबसे निचले स्तर तक जा गिरा हुआ देखा गया है| डॉलर्स के हिस्से में गिरावट हो रही है और ऐसे में जापान के येन में हुए निवेष में बढोतरी होने की बात मुद्रा कोष की रपट में कही गई है|

मुद्रा कोष ने रखी जानकारी के अनुसार वर्ष २०१९ के दुसरे तिमाही में राखीव विदेशी भंडार के तौर पर अमरिकी डॉलर्स में हुआ निवेष ६.७९ ट्रिलियन डॉलर्स तक सीमित रहा है| दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में डॉलर्स का हिस्सा ६१.६३ प्रतिशत तक निचे गिरा है| इस वर्ष के पहले तिमाही में यही मात्रा ६१.८६ प्रतिशत दर्ज हुई थी| बल्की इससे पहले वर्ष २०१३ के आखरी तिमाही में अमरिकी डॉलर्स का हिस्सा ६१.२७ तक निचे गिरा था|

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने घोषित की जानकारी में दुनिया के सभी देशों की सेंट्रल बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार की जानकारी रखी गई है| इसमें अमरिकी डॉलर्स में हो रहे निवेष में कमी होने की बात दिखाई दे रही है| अमरिकी डॉलर्स के निवेष में गिरावट हो रही है और ऐसे में यूरो, येन और चीन के युआन में हुए निवेष की तादाद बढी है, इस ओर मुद्रा कोष ने ध्यान आकर्षित किया है| जापान के येन को इस स्थिति का सबसे बडा लाभ हुआ है और इस चलन में हुआ निवेष ५.४१ प्रतिशत तक जा पहुंचा है| यह पिछले दो दशकों का उच्चांक समझा जा रहा है|

इसी बीच चीन के ‘युआन’ चलन के हिस्से में भी बढोतरी हो रही है और अंतरराष्ट्रीय विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्सा करीबन २ प्रतिशत हुआ है| मुद्रा कोष ने सीर्फ तीन वर्ष पले चीन के ‘युआन’ का समावेश जागतिक अर्थव्यवस्था के आरक्षित मुद्रा के तौर पर हो किया था| इसके बाद युआान की व्याप्ती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ रही है| मुद्राकोष के रपट से भी इस बात का समर्थन हुआ है| ‘यूरो’ चलन के आरक्षित भंडार में होनेवाली स्थिति में भी सुधार हुआ है| और इसकी तादाद २० प्रतिशत तक बढ चुकी है|

अमरिकी डॉलर्स की इस गिरावट के पीछे रशिया और चीन समेत दुनिया अन्य देशों ने शुरू की डॉलर की बिक्री कारण साबित हुई है| रशियाने इसी वर्ष में करीबन १०० अरब डॉलर्स के बांड की बिक्री की है| जापन और चीन समेत भारत ने भी अमरिकी डॉलर्स का निवेश कम करना शुरू किया है, यही बात प्राप्त आंकडों से स्पष्ट होती है| अमरिकी डॉलर के अलावा सोने की खरीद बढाने पर जोर दिया गया है| ऐसे में सेंट्रल बैंक में जमा सोने की तादाद भी विक्रमी स्तर पर जा पहुंची है

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