जर्मनी में तैनात अपने ९,५०० सैनिकों को अमरीका हटाएगी

बर्लिन, – जर्मनी में तैनात अपने करीबन ९,५०० सैनिक हटाने की योजना को अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने मंज़ुरी दी है। अधिकृत स्तर पर जर्मनी ने अभी इस निर्णय पर प्रतिक्रिया दर्ज़ नहीं की हैं, लेकिन जर्मनी के मंत्रिमंडल के दो वरिष्ठ सदस्यों ने इसपर चिंता जताई है। इसी बीच, नाटो के सदस्य होनेवाले अन्य युरोपिय देश भी अमरीका के इस निर्णय के कारण चिंता से घिरे हैं।

नाटो के सदस्य देशों की सुरक्षा के लिए अमरीका इसके आगे और खर्च नहीं करेगी। सदस्य देश आगे आएँ और इस खर्च का भार उठाएँ, यह चेतावनी राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने दी थी। नाटो के सभी सदस्य देश, अपने जीडीपी की तुलना में करीबन दो प्रतिशत राशी रक्षा के लिए खर्च करें, यह माँग ट्रम्प ने की थी। यह माँग मंज़ूर ना होने पर, ट्रम्प ने दी हुई चेतावनी सच्चाई में उतरी दिख रही है।

सितंबर महीने में अमरीका जर्मनी में तैनात अपने ९,५०० सैनिकों को हटायेगी। जर्मनी में स्थित अमरीका के अड्डों पर करीबन पच्चीस हज़ार अमरिकी सैनिक तैनात होने की बात कही जाती है। इनमें से ९,५०० सैनिकों को या तो वापस बुलाया जाएगा या फिर उन्हें अन्य ज़गह पर तैनात किया जाएगा, ऐसी जानकारी अमरिकी माध्यमों ने प्रदान की है।

दूसरे विश्‍वयुद्ध पश्चात् के दौर से ही जर्मनी में अमरिकी सैनिकों की तैनाती की गई थी। सोवियत रशिया से बने खतरें की पृष्ठभूमि पर जर्मनी की सुरक्षा के लिए अमरीका ने यह तैनाती की थी और अगले दिनों में सिर्फ जर्मनी ही नहीं, बल्कि यूरोप के अन्य देशों की सुरक्षा के लिए भी अमरिकी सेना की तैनाती अहम समझी जा रही थी। लेकिन, डोनाल्ड ट्रम्प अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष होते ही उन्होंने नाटो के सभी सदस्य देशों को, रक्षा खर्च का अधिक भार उठाने का आवाहन किया था। ‘आज तक नाटो के सदस्य देशों की सुरक्षा के लिए अमरीका ने बड़ी मात्रा में खर्च किया है। लेकिन, अब सदस्य देशों को भी अपनी सुरक्षा के लिए खर्च करना होगा। अमरीका इस खर्च का अतिरिक्त भार नहीं उठा सकती’ ऐसा ट्रम्प ने जताया था।अमरीका, जर्मनी

नाटो के सदस्य देशों ने उनकी यह माँग ठुकराने के बाद ट्रम्प ने, जर्मनी के साथ युरोपिय सदस्य देशों में तैनात अमरिकी सेना हटाने की धमकी दी थी। अपनी यह धमकी ट्रम्प सच्चाई में उतारेंगे, यह चित्र अब स्पष्ट हो रहा है। सितंबर महीने में जर्मनी के अड्डे पर तैनात करीबन ९,५०० सैनिक हटाए जाएँगे। इनमें से अधिकतर सैनिकों को पोलैंड में तैनात किया जाएगा, यह विश्‍वास पोलैंड के प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया है। इससे पहले अमरीका ने पोलैंड में ‘मिसाइल’ विरोधी सुरक्षा यंत्रणा तैनात करने का निर्णय किया था। साथ ही, रशिया से पोलैंड के लिए बना खतरा ध्यान में रखकर, इस देश की सुरक्षा के लिए लष्करी अड्डे का निर्माण करने का निर्णय अमरीका ने किया था। इसका आर्थिक मुआवजा अमरीका को देने की बात पोलैंड ने मान्य की थी। इसकी वज़ह से जर्मनी से हटाई जानेवाली सेना को पोलैंड में तैनात किया जाएगा, ऐसें दावे हो रहे है। पोलैंड के प्रधानमंत्री ने किए बयान से ऐसें संकेत भी प्राप्त हो रहे हैं। इसी बीच अमरीका के इस निर्णय पर अभी जर्मनी ने अधिकृत स्तर पर प्रतिक्रिया दर्ज नही की हैं। नाटो के खर्च को लेकर अमरीका और जर्मनी के बीच तीव्र मतभेद होने की बात पहले भी सामने आयी थी। जर्मनी को रशिया से अब खतरा नहीं रहा और इस कारण जर्मनी को अब अमरिकी सेना की ज़रूरत नहीं रही, यह बयान जर्मनी की चान्सेलर एंजेला मर्केल ने किया है। साथ ही, नाटो अब पुरानी हुई हैं और युरोपिय देशों की संयुक्त सेना तैयार करने का समय अब आया है, ऐसा चान्सेलर मर्केल का कहना है।

युरोपिय देशों की संयुक्त सेना गठित करने का प्रस्ताव खतरनाक है और रशिया के तूफ़ानी हमले के सामने युरोपियन देशों की संयुक्त सेना टिक नहीं सकेगी, यह चेतावनी नाटो के प्रमुख ने पहले ही दी थी। फिर भी जर्मनी के नेतृत्व ने यह विचार अभी छोड़ा नही हैं। बल्कि जर्मनी और रशिया के बीच, र्इंधन सप्लाई करने के लिए ‘नॉर्द स्ट्रीम’ समझौता किया गया हैं। इसके चलते रशिया से अब जर्मनी के लिए खतरा नहीं बनता, यह जर्मनी की अधिकृत भूमिका होने की बात स्पष्ट हो रही हैं।

उसी समय, पोलैंड जैसा देश, उसे रशिया के आक्रमण का डर होने की भावना लगातार व्यक्त कर रहा है। अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष ने जर्मनी में स्थित सेना के बारे में किए निर्णय की ऐसी पृष्ठभूमि है।

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