‘आकाश’ की निर्यात को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ुरी

नई दिल्ली – केंद्रीय मंत्रिमंडल ने, ‘आकाश’ क्षेपणास्त्र की मित्रदेशों को निर्यात करने के प्रस्ताव को मंज़ुरी दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुलायी गई मंत्रिमंडल की बैठक में यह फ़ैसला किया गया। आनेवाले समय में शस्त्रास्त्र और रक्षासामग्री की तक़रीबन पाँच अरब डॉलर्स की निर्यात करने का ध्येय भारत ने सामने रखा है। ‘आकाश’ के बारे में किया गया यह फ़ैसला, इस योजना का अहम हिस्सा है। अब तक रक्षा क्षेत्र में भारत ने की हुई निर्यात की तुलना में ‘आकाश’ की निर्यात यह बहुत ही अलग बात साबित होगीम् ऐसा कहकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने इसपर सन्तोष व्यक्त किया है।

ज़मीन से हवा में दागा जानेवाला देसी बनावट का ‘आकाश’ क्षेपणास्त्र, सन २०१४ में वायुसेना में और सन २०१५ में लष्कर में शामिल किया गया था। २५ किलोमीटर तक की मारकक्षमता होनेवाले ‘आकाश’ के ९६ प्रतिशत इतने पुर्ज़ों का निर्माण देश में ही किया जाता है। यह क्षेपणास्त्र बहुत प्रभावी होकर कुछ मित्रदेशों ने इसकी खरीद के लिए उत्सुकता दर्शायी थी। इस पृष्ठभूमि पर, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘आकाश’ की निर्यात को मंज़ुरी देने का फ़ैसला किया। शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री की सर्वाधिक मात्रा में आयात करनेवाला देश, ऐसी भारत की पहचान बनी थी। लेकिन आनेवाले समय में भारत, शस्त्रास्त्र और रक्षासामग्री का निर्माण तथा निर्यात करनेवाला देश बनेगा, ऐसा दावा केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा था। इसके लिए तक़रीबन पाँच अरब डॉलर्स के शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री की निर्यात का लक्ष्य सरकार ने सामने रखा था। ‘आकाश’ की निर्यात यह इस मोरचे पर अहम पड़ाव साबित होता है।

भारत ने अब तक रक्षा क्षेत्र से संबंधित जो कुछ भी निर्यात की है, उसकी तुलना में ‘आकाश’ की निर्यात बहुत अलग है। अब तक भारत की निर्यात में रक्षा सामग्री के पुर्ज़ों जैसी बातों का समावेश था। लेकिन संपूर्ण शस्त्रास्त्र अथवा यंत्रणा इनका इस निर्यात में बहुत ही कम हिस्सा था, ऐसा कहकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने, ‘आकाश’ की निर्यात से संबंधित किये गए इस निर्णय पर सन्तोष व्यक्त किया है। शस्त्रास्त्र तथा रक्षा सामग्री के मार्केट में अपना स्वतंत्र स्थान निर्माण करने के लिए भारत ने कदम उठाये हैं।

सन २०२५ तक भारत लगभग १.७५ लाख करोड़ रुपयों के शस्त्रास्त्र और रक्षासामग्री का निर्माण करके, रक्षा से संबंधित उत्पादन देश में ही बनें, इसके लिए बढ़ावा देनेवाला है। इस संदर्भ में सामरिक फ़ैसलें किये गए हैं। मई महीने में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन ने, रक्षासामग्री का निर्माण करनेवालीं विदेशी कंपनियों के भारतीय कंपनियों में होनेवाले निवेश की मर्यादा ४९ प्रतिशत से बढ़ाकर ७४ प्रतिशत पर लाकर रखी थी।

वहीं, अगस्त महीने में रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने, रक्षाबलों के लिए आवश्यक होनेवाली लगभग १०१ सामग्रियों की सूचि जारी करके, सन २०२४ तक उनकी ख़रीद देसी कंपनियों से ही करने का फ़ैसला किया था। इनमें डुलाई करनेवाले विमान, हल्के वज़न के लड़ाक़ू हेलिकॉप्टर्स, पारंपरिक पनडुब्बियाँ, क्रूझ क्षेपणास्त्र तथा सोनार यंत्रणा का समावेश है।

रक्षा से संबंधित होनेवाले देसी उद्योग को बढ़ाना देने के लिए ये फ़ैसले किये गए थे। इसका लाभ आनेवाले समय में भारत को मिलेगा, ऐसा विश्‍वास व्यक्त किया जाता है। इसी बीच, ‘आकाश’ क्षेपणास्त्र की अन्य देशों को निर्यात करने की तैयारी भारत ने की है कि तभी रशिया के साथ संयुक्त रूप में निर्माण किये जानेवाले ‘ब्राह्मोस’ क्षेपणास्रों की भी माँग बढ़ी होने की बात सामने आ रही है। कुछ दिन पहले, सौदी अरब भारत से ब्राह्मोस की ख़रीद करनेवाला होने की ख़बरें जारी हुईं थीं। साथ ही, चीन के सामर्थ्य के कारण दहशत में होनेवाले आग्नेय एशियाई देशों ने भी, ब्राह्मोस की ख़रीद के लिए उत्सुकता दर्शायी है, ऐसीं ख़बरें प्रकाशित हुईं थीं।

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