तुर्की सेना की बगावत की कोशिश नाकाम

इस्तंबूल, दि. १६ (वृत्तसंस्था) – तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन  का तख्ता पलटने की सेना की कोशिश नाक़ाम हो चुकी है| राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने इस्तंबूल हवाईअड्डे पर संबोधित की हुई पत्रकार परिषद में कहा कि तुर्की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार के हाथ में ही सत्ता की बाग़ड़ोर क़ायम है|

turkey revolt- तुर्की सेनाइस घटनाक्रम में २५० से भी अधिक लोगों की मौत होने की तथा २,८३९ जवानों एवं अधिकारियों को गिरफ़्तार किये जाने की जानकारी दे दी गयी है|

शुक्रवार रात को लगभग ११ बजे तुर्की सेना के असंतुष्ट सैनिकों के एक गुट द्वारा, इस्तंबूल और अंकारा शहर स्थित सैनिकी अड्डों तथा सरकारी दफ़्तरों पर कब्ज़ा करने की कोशिश की गयी| इस वक्त, लडाक़ू विमान तथा हेलिकॉप्टर्स का भी इस्तेमाल किया गया| लडाक़ू विमान तथा हेलिकॉप्टर्स द्वारा चढाये गये हमलों के साथ इस गुट ने राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन की सरकार का तख़्ता पलटने का भी प्रयास किया| सरकारी अधिकारियों द्वारा यह जानकारी दी गयी है| इस वक्त तुर्की की संसद तथा प्रधानमंत्री के दफ्तर पर भी हमले किये गये| इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, बगावत करनेवालों में से १०० से भी ज़्यादा जवानों के साथ ही, तक़रीबन २५० लोगों की मौत होने की खबर दी जा रही है|

तुर्की पुलीस तथा अन्य सुरक्षा बलों द्वारा इस बगावत का डटकर मुक़ाबला किया गया और सरकारी दफ़्तर तथा अन्य महत्त्वपूर्ण इमारतों पर कब्ज़ा करने की, सेना के इस विद्रोही गुट की कोशिश नाकाम की गयी| बगावत की जानकारी मिलते ही, तुर्की की जनता भी बड़ी संख्या में लोकतंत्र की हिफ़ाज़त के लिये सड़कों पर उतर आयी| बग़ावत करनेवाले सैनिकों पर पथराव करते हुए तथा उनपर हमले करते हुए जनता ने अपना असंतोष प्रदर्शित किया| इस प्रखर विरोध के बाद, विद्रोही गुट हथियार नीचे रखकर शरण आते हुए दिखायी दिये|

Recep Tayyip Erdoğanतुर्की राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन ने जनता को दिए संदेश में देश की बाग़ड़ोर अभी भी लोकतांत्रिक सरकार के हाथ में होने का ऐलान किया| लेकिन फिर भी ख़तरा टला न होने की चेतावनी देते हुए, तुर्की जनता सड़कों पर आते हुए दबाव बनाए रखें, ऐसा आवाहन भी एर्दोगन ने किया है| इसी दौरान, इस बगावत के पीछे, एर्दोगन के सहकर्मी रह चुके फेतुल्लाह गुलेन नामक धर्मगुरू का हाथ होने का आरोप लगाया जा रहा है| गुलेन इस वक्त अमरीका में वास्तव्य कर रहे हैं| उन्होंने इस बगावत की घटना से कोई भी संबंध ना होने का खुलासा किया है| दूसरी ओर, तुर्की द्वारा अमरीका से गुज़ारिश की जा रही है कि वे गुलेन को तुर्की के हाथ में सोप दे|

एर्दोगन के कार्यकाल में, तुर्की सेना द्वारा की गयी बगावत की यह तीसरी घटना है| इससे पहले सन २००७ तथा सन २०१० में भी एर्दोगन सरकार के खिलाफ़ विद्रोह के प्रयास हुए थे| तुर्की सेना को राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन की विचारधारा पर विश्‍वास नहीं है| सेना में यह भावना प्रबल होती जा रही है कि एर्दोगन तुर्की के परंपरागत उदारमतवादी विचारधारा से दूर जा रहे है| इसीलिए एर्दोगन को इस तरह से सेना की बगावत का सामना करना पड़ रहा है| राजनीतिक स्तर पर भी, कभी उनके सहकर्मी के तौर पर काम करनेवाले नेता, एर्दोगन के खिलाफ़ जाते हुए नज़र आ रहे है| तुर्की के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अहमत दावूतोग्लू ने भी एर्दोगन की तानाशाही से बचने के लिए इस्तीफ़ा दे दिया था|

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