तुर्की में जनमतसंग्रह के बाद राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन के हाथ में अनिर्बंध सत्ता

इस्तंबूल, दि. १७ : रविवार को तुर्की में हुए ऐतिहासिक जनमतसंग्रह के नतीज़ें आ चुके हैं| राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन के आवाहन को तुर्की जनता ने केवल मामूली बहुमत का सहारा दिया है| राष्ट्राध्यक्षीय शासनप्रणाली लाने का एर्दोगन का मनसूबा क़ामयाब हुआ होकर, ५१ प्रतिशत मतदारों ने उन्हें समर्थन दिया है| लेकिन मताधिक्य में होनेवाले मामूली फ़र्क़ को देखते हुए, राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को सँभलकर कदम उठाने चाहिए, ऐसी सलाह युरोपीय नेताओं ने दी है| इसीके साथ, जनमतसंग्रह में अफरातफरी हुई होने के मसले पर तुर्की के प्रमुख शहरों में व्यापक प्रदर्शन शुरू होने की बात सामने आयी है|

जनमतसंग्रहतुर्की में फिलहाल अस्तित्व में रही संसदीय शासनप्रणाली को समाप्त कर, अमरीका की तरह राष्ट्राध्यक्षीय शासनप्रणाली लाने के लिए रविवार को जनमतसंग्रह का आयोजन किया गया था| इस जनमतसंग्रह में, तुर्की में रहनेवाली जनता के साथ ही, तुर्की के बाहर रहनेवाले तुर्कीवंशीय लोगो को भी मतदान का अधिकार दिया गया था| रविवार को हुए मतदान में पूरे ८५ प्रतिशत जनता ने अपना मतदान का अधिकार निभाया, ऐसा सामने आया| तुर्की स्थित और तुर्की के बाहर के करीब ढ़ाई करोड़ मतदाताओं ने एर्दोगन की राष्ट्राध्यक्षीय शासनप्रणाली की माँग को समर्थन दिया है, ऐसा सामने आया|

उसी समय, एर्दोगन की इस माँग का विरोध करनेवालों की संख्या भी बड़ी होकर, लगभग दो करोड़ से अधिक मतदाताओं ने उनकी इस माँग को नकारा है, ऐसा स्पष्ट हुआ है| तुर्की की राजधानी अंकारा समेत इस्तंबूल और इझमिर, इन तीन प्रमुख शहरों में एर्दोगन के जनमतसंग्रह को नकारा गया है, ऐसा साबित हुआ| तुर्की की विरोधी पार्टियों ने भी, जनमतसंग्रह के दौरान अफरातफरी होने का आरोप किया है| इसमें ६० प्रतिशत मतों की पुन: गिनती होनी चाहिए, ऐसी आक्रामक भूमिका उन्होंने अपनायी है| इस्तंबूल समेत अन्य कुछ शहरों में, इस जनमतसंग्रह के नतीजे को अवैध बताकर एर्दोगन के विरोध में प्रदर्शनों की शुरुआत हुई है|

जनमतसंग्रहतुर्की के सार्वमत में हुई एर्दोगन की जीत पर यूरोपीय महासंघ से सावधानी से प्रतिक्रियाएँ उमड़ रहीं हैं| युरोपीय कमिशन ने, नतीजे के कम फ़र्क़ के मुद्दे को अधोरेखित कर, अगली कार्यवाही एकमत से हों इसके लिए कोशिश करने की सलाह तुर्की सरकार को दी है| जर्मन चॅन्सेलर अँजेला मर्केल ने, यह फैसला तुर्की समाज में पड़ी दरार को दर्शानेवाला है, ऐसा दावा किया है| ‘अब इसके आगे तुर्की नेतृत्व पर की ज़िम्मेदारी और बढ़ गयी है, ऐसा भी उन्होंने कहा है|

जनमतसंग्रह

लेकिन राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन ने, जनमतसंग्रह में हुई जीत यह तुर्की जनता ने किया हुआ ऐतिहासिक फैसला है, ऐसा विश्वास व्यक्त किया है| ‘तुर्की ने अपनी जनता की सहायता से, इतिहास के सबसे बड़े सुधार का पड़ाव पार किया है| संसद और जनता की इच्छा की बदौलत तुर्की में बहुत महत्वपूर्ण बदलाव होनेवाला है| तुर्की अब अपनी शासनप्रणाली बदलनेवाला है’ इन शब्दों में एर्दोगन ने इस जीत का समर्थन किया| साथ ही, जीत का विरोध करनेवालों की कोशिश नाक़ाम होगी, उससे कुछ फ़र्क़ पड़नेवाला नहीं है, ऐसी चेतावनी भी दी|

जनमतसंग्रह के नतीजे के बल पर, सन २०१९ में होनेवाले चुनाव के बाद देश में राष्ट्राध्यक्षीय व्यवस्था का अमल शुरू हो जायेगा| प्रधानमंत्रीपद रद्द होनेवाला है| राष्ट्राध्यक्ष को, पाँच साल के दो टर्म्स पर रहने का तथा सभी मंत्रियों एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार मिलनेवाला है| इन अधिकारों के बलबूते पर एर्दोगन तुर्की में तानाशाही लायेंगे, ऐसी आलोचना आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है|

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