तुर्की और ईरान लष्करी सहयोग बढ़ाएगा

अंकारा: ईरान के लष्कर प्रमुख ने तुर्की का दौरा किया है और इस दौरे के बाद दोनों देशों में लष्करी सहयोग बढ़ाने की घोषणा की है। करीब चार दशकों में पहली बार ईरान के लश्कर प्रमुख तुर्की के दौरे पर गए थे। तुर्की व इराक, सिरिया के संघर्ष में परस्पर विरोधी घटनाओं के पीछे समर्थन में खड़े थे। ऐसी परिस्थिति में दोनों देशों में प्रस्थापित हो रहे इस लष्करी सहयोग की तरफ आश्चर्य से देखा जा रहा है।

ईरान और तुर्की की सीमारेखा एक दूसरे से भिड़ी है। फिर भी सन १९७९ में ईरान में हुए इस्लामी क्रांति के बाद तुर्की और ईरान में लष्करी सहयोग नहीं था। तुर्की यह नाटो का सदस्य देश, साथ ही युरोप एवं खाड़ी देशों को जोड़ने वाला और अमरीका का मित्र देश यह उसकी पहचान है। ईरान कट्टर अमरीका विरोधी भूमिका के लिए प्रसिद्ध है। ईरान के विरोध में युरोप में मिसाइल भेदी यंत्रणा तैनात करने की अमरीका की योजना को तुर्की ने समर्थन दिया था। इसीलिए पड़ोसी देश होते हुए भी देशों में व्यापक लश्करी सहयोग की आशंका नहीं थी। साथ ही सिरिया के अस्साद साम्राज्य के समर्थन में भूमिका लेने वाले ईरान का अस्साद साम्राज्य के विरोध में खड़े तुर्की के साथ दूरी और ज्यादा बढ रही थी।

ऐसी परिस्थिति में बुधवार के दिन ईरान के लष्कर प्रमुख जनरल मोहम्मद हुसैन बाकेरी ने तुर्की का दौरा करके लष्कर प्रमुख जनरल हुलुन्सी अकार के अंकारा इस राजधानी में भेंट की। उसके बाद जनरल बाकेरी ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयीप एर्दोगन और रक्षामंत्री नुरेत्तिन कानिक्ली से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान हुई चर्चा में ईरान और तुर्की के बीच लष्करी सहयोग बढ़ाने पर दोनों देशों के लष्कर प्रमुख ने सहमती व्यक्त की। यह जानकारी तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता इनराहिम कालीन ने दी।

तुर्की तथा ईरान ने इस लश्करी सहयोग का खुलासा करने की बात टाली, परंतु तुर्की या ईरान के सीमा भाग में कुर्दों की समस्या पर दोनों देशों के लष्करी अधिकारियों में चर्चा होने का दावा किया जा रहा है। तुर्की के कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) और ईरान के पेजाक यह कुर्द संगठनों ने दोनों देशों को आतंकवादी घोषित किया है। तुर्की ईरान के साथ इराक में स्थित कुर्द नेता एवं संघटना स्वतंत्र कुर्दिस्तान की मांग कर रहे हैं, पर स्वतंत्र कुर्दिस्तान की यह मांग मंजूर न करने की ठोस भूमिका इस समय तुर्की और ईरान के अधिकारियों ने ली है, यह जानकारी कालीन दी।

इन कुर्द आतंकियों की घुसपैठ न बढ़े इसलिए तुर्की ने ईरान की सीमारेखा पर करीब १४४ किलोमीटर लंबी दीवार निर्माण का काम शुरु किया है, जिसे ईरान ने भी मंजूरी दी है। ईरान और तुर्की नेताओं में इस बार सिरिया के संघर्ष साथ ही आयएस विरोधी संघर्ष पर भी चर्चा हुई। तथा गोपनीय जानकारी के आदान-प्रदान पर दोनों देशों की सहमति होने का दावा किया जा रहा है।

सिरिया के अस्साद साम्राज्य के समर्थन में ईरान एवं अस्साद विरोधी गटों को समर्थन देने वाला तुर्की होते हुए भी, रशिया के हस्तक्षेप से ईरान और तुर्की सिरिया के संघर्ष बंदी में शामिल हुए हैं। इसके व्यतिरिक्त, रशिया इराण एवं तुर्की में ७ अब्ज डॉलर्स का इंधन करार होने का दावा भी किया जा रहा है।

इसकी वजह से खाड़ी एवं पर्शियन खाड़ी की राजनीति शीघ्र गति से बदलने का चित्र दिखाई देने लगा है। कतार एवं सऊदी अरब में निर्माण हुआ तनाव कम करने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने हस्तक्षेप किया था। जिसे सफलता हासिल नहीं हुई यह कहा जा रहा है। उसके पश्चात समय में, इराक के प्रभावी नेता एवं मुक्तदा अल सद्र ने सऊदी को भेंट दी थी। कट्टर ईरान समर्थक पहचाने जाने वाले सद्र के इस सऊदी दौरे के बाद, सऊदी की ईरान विषयक भूमिका में महत्वपूर्ण बदलाव होने के संकेत मिल रहे हैं।

अमरीका ने ईरान से की दोस्ती पर हमें एतराज नहीं, यह सऊदी के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा है। साथ ही सऊदी और ईरान के बीच विवाद का प्रमुख कारण ठहरे, येमेन और सऊदी के संघर्ष से, सऊदी को बाहर आना है, यह प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने खुलासे में कहा। इस पृष्ठभूमि पर, ईरान एवं तुर्की के बीच हुए लष्करी सहयोग का खाड़ी देशों में बदलते हुए राजनीतिक एवं सामाजिक समीकरणों के स्पष्ट संकेत मिल रहा है।

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