तिरुअनन्तपुरम् (भाग – १)

Padmanabhaswami-temple-at-Trivandrum

भारतवर्ष में तीन प्रमुख मौसम हैं – गर्मी, बारिश और जाड़े का मौसम। भारतवर्ष यह कृषिप्रधान देश होने के कारण बारिश तो हमारे लिए जीवन ही है। ते़ज गर्मी के मौसम के बाद मई के अन्त में एवं जून के प्रारम्भ में हम ‘केरल में मान्सून का आगमन हुआ है’ इस ख़बर की बड़ी उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करते रहते हैं। और जहॉं मान्सून का सर्वप्रथम आगमन होता है, वह भारत का शहर है, केरलस्थित ‘तिरुअनन्तपुरम्’।
महात्मा गांधीजी ने इस शहर को ‘भारत का हराभरा शहर’ (एव्हरग्रीन सिटी ऑफ इंडिया) कहकर गौरवान्वित किया है। आज केरल की राजधानी के तौर पर जाना जानेवाला यह शहर पूर्वकालीन त्रावणकोर राज्य की राजधानी थी।

‘केरलमाहात्म्य’ नामक ग्रन्थ में एक कथा इस प्रकार से कही गयी है – परशुरामजी ने अर्जित समस्त भूमि एक यज्ञ में कश्यप को दक्षिणा के रूप में प्रदान की। फिर वे उस भूमि से आगे निकल पड़े और दक्षिण दिशा में जाकर गोकर्ण क्षेत्र में उन्होंने वरुण का ध्यान किया। प्रसन्न हुए वरुण से परशुरामजी ने उनका परशु जहॉं तक जा पहुँचा, उतनी भूमि को प्राप्त किया। केरलमाहात्म्य ने केरल की जन्मकथा को इस प्रकार से प्रतिपादित किया है।

केरल की राजधानी को हम ‘त्रिवेन्द्रम्’ नाम से जानते हैं। त्रिवेन्द्रम् यह उच्चारण अंग्रे़जों ने उनकी शैली के कारण किया था। इसवी १९९१ तक यह शहर ‘त्रिवेन्द्रम्’ इस नाम से ही जाना जाता था, लेकिन फिर सरकार ने इस शहर को उसकी ‘तिरुअनन्तपुरम्’ यह पहचान पुनः प्रदान की।

‘तिरुअनन्तपुरम्’ इस शब्द का मल्यालम् भाषा में अर्थ है, ‘अनन्त का निवासस्थान’। पुराने जमाने में यह नगर व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। उस समय, इस नगर से मसालों, हाथी दॉंत और चन्दन का व्यापार होता था और इसी व्यापार के लिए इसापूर्व १०३६ में सोलोमन नामक राजा के जहाज यहॉं पर स्थित ओफिर बन्दरगाह में आये हुए थें, ऐसा कहा जाता है।

इस नगरी के शुरुआती काल के शासक अय राजवंश के राजा थे। संगम काल से संपन्न बने इस अय राजवंश ने १०वीं सदी तक राज किया। लेकिन १०वीं सदी में इन राजाओं की सत्ता नष्ट होकर वेनाड राजवंश की सत्ता इस नगरी पर स्थापित हुई।

मार्तण्ड वर्मा नामक त्रावणकोर (तिरुवितांकुर, त्रिवांकुर) राज के राजा ने इसवी १७४५ में तिरुअनन्तपुरम् को त्रावणकोर राज की राजधानी बनाया। इस मार्तण्ड वर्मा के काल में तिरुअनन्तपुरम् शहर समृद्ध होने लगा। तिरुअनन्तपुरम् शहर के वैभव के रूप में जाना जानेवाला श्रीपद्मनाभस्वामी मन्दिर, भगवान विष्णु के इस मन्दिर का मार्तण्ड वर्मा राजा ने जीर्णोद्धार किया और श्रीपद्मनाभ के चरणों में अपना राज्य अर्पण कर वह केवल पद्मनाभ के दास के रूप में शासन करने लगा। इस मार्तण्ड वर्मा ने अपनी सेना को अधिक प्रगत बनाने के साथ-साथ लोगों के लिए रास्ते आदि कईं सुविधाओं का भी निर्माण किया।

इस मार्तण्ड वर्मा राजा के पश्चात् त्रावणकोर राज पर कईं राजाओं ने शासन किया। लेकिन १९वी सदी के मध्य में राजगद्दी सँभालनेवाले महाराजा स्वाती तिरुनल और महाराजा अयिल्यम तिरुनल इन्होंने इस शहर को और त्रावणकोर राज को समृद्धि का सुवर्णयुग प्रदान किया। तिरुअनन्तपुरम् की जनता के लिए इसवी १८३४ में पहला अंग्रे़जी स्कूल, इसवी १८३७ में वेधशाला, इसवी १८३९ में जनरल हॉस्पिटल, इसवी १८७३ में ओरिएंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट अँड मॅन्युस्क्रिप्ट्स लायब्ररी और युनिव्हर्सिटी कॉलेज इनकी स्थापना की गयी। इसी दौरान पागलों के लिए पहला अस्पताल भी शुरू किया गया।

श्री. मूलम् तिरुनल नामक शासक के शासनकाल में संस्कृत कॉलेज, लॉ कॉलेज, महिलाओं के लिए कॉलेज और आयुर्वेद कॉलेज खोले गएँ।
मार्तण्ड वर्मा के पश्चात् त्रावणकोर राज पर कईं शासकों ने शासन किया और इन शासकों में स्त्री-शासक भी थीं।

जिस स्वाती तिरुनल नामक राजा के शासनकाल में इस तिरुअनन्तपुरम् शहर और त्रावणकोर राज की समृद्धि हुई, वह राजा एक उत्तम शासक तो था ही, साथ ही साथ वह संगीत का भी अच्छा जानकार था और संगीतकार भी था। राजा को संस्कृत, हिंदी, मल्याळम, तेलगु, तमिळ, कन्नड, मराठी, बंगाली, ओरिया और इंग्लिश ये भाषाएँ अवगत थीं। उम्र के छठे वर्ष उसने मल्यालम् और संस्कृत तथा उम्र का सातवें वर्ष अंग्रे़जी सीखना शुरू किया। इस राजा ने इसवी १८३६ में अपने राज में सर्वप्रथम जनगणना की।

राणी गौरीलक्ष्मीबाई और राणी सेतुलक्ष्मीबाई इन दो स्त्रीशासकों ने तिरुअनन्तपुरम् पर शासन किया। इनमें से सेतुलक्ष्मीबाई नामक रानी ने पशुबली और देवदासी की प्रथाओं को बन्द कर दिया। इस रानी ने शिक्षा को प्रधानता दी, अर्थात जनता को शिक्षित करने के लिए सरकारी आय से लगभग ४०% धनराशि का उपयोग किया।

आज भारत के सर्वाधिक शिक्षित राज्य के रूप में केरल पहचाना जाता है और ऊपर बतायी गई बात इसके लिए बीजरूप से अवश्य ही सहायभूत हुई होगी।

तिरुएनन्तपुरम् शहर के इतिहास को देखें, तो यह बात समझ में आती है कि इस शहर पर अंग्रे़जों का प्रत्यक्ष शासन कभी भी प्रस्थापित नहीं हुआ, लेकिन ऐसा होते हुए भी भारत के स्वतन्त्रतायुद्ध में इस शहर ने ठोंस योगदान दिया हुआ है। अंग्रे़जों के भारत में प्रवेश करने के बाद भी त्रावणकोर के शासक ही तिरुअनन्तपुरम् पर शासन कर रहे थें। लेकिन तिरुअनन्तपुरम् को त्रिवेन्द्रम् कहा जाने लगा, तो इसका अर्थ है कि अंग्रे़जों ने वहॉं जरूर प्रवेश किया हुआ था।

त्रावणकोर राज्य का अन्तिम शासक चित्रा तिरुनल बलराम वर्मा नामक राजा। इसवी १९४७ में भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद इस राजा ने शुरुआत में आनाकानी करते हुए बाद में अपनी रियासत को स्वतन्त्र भारत में शामिल किया। इस राजा का त्रावणकोर संस्थान और पड़ोसी कोचीन राज्य इन्हें एकत्र करके त्रावणकोर-कोचीन राज्य का निर्माण किया गया और त्रावणकोर का अन्तिम राजा इस एकत्रित राज का राजप्रमुख था। इसवी १९४९ से इसवी १९५६ तक इस राजा ने राजप्रमुख के रूप में शासन किया और अन्ततः १ नवम्बर १९५६ को केरल राज्य का निर्माण हुआ। परन्तु त्रावणकोर की राजधानी तिरुअनन्तपुरम् यही नये स्थापित हुए केरल राज्य की राजधानी थी।

इस सदाहरित शहर में मई के अन्त में या जून की शुरुआत में जिस प्रकार से मान्सून की बारिश होती है, उसी प्रकार अक्तूबर में भी फिर एक बार मान्सून की बारिश यहॉं पर होती है। इस शहर और जिले में प्रचुर मात्रा में वनसम्पत्ति है। यहॉं पर दुर्लभ प्रजाति के ऑर्किड्स, औषधि वनस्पतियॉं और केरल मुख्य रूप से जिस व्यापार के लिए प्रसिद्ध है, वे मसाले (मसालों के पेड़) बड़ी मात्रा में हैं। और इसी प्रचुर वनसम्पदा के कारण यहॉं पर विभिन्न प्रकार के जानवर भी बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं।

पेड़-पौधों की इस प्रचुरता और विभिन्नता का अभ्यास करने के लिए केरल सरकार ने तिरुअनन्तपुरम् शहर में १७ नवम्बर १९७९ को ‘ट्रॉपिकल बोटॅनिकल गार्डन अँड रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ की स्थापना की। यह संस्था बायोटेक्नॉलॉजी और टॉक्सोनॉमी इन विषयों पर संशोधन करती है। चूँकि ये दोनों विषय बगीचों से जुड़े हुए हैं, यह संस्था औषधि वनस्पति, दुर्लभ प्रजाति के ऑर्किड्स, आमदनी करानेवाले पेड़, इनके सम्बन्ध में अभ्यास और अनुसन्धान करती है। यह संस्था उस प्रदेश में उगनेवाली हर एक वनस्पति की सुसंगत और क्रमबद्ध जानकारी हासिल करने का काम करती है। उपयोग की दृष्टि से वनस्पति में संस्कार करने के लिए यह संस्था वनस्पति पर जैविक एवं रासायनिक दृष्टि से अनुसन्धान करती है।

तिरुअनन्तपुरम् जिले में शिक्षित व्यक्तियों का प्रमाण ८९.३६% है और दूसरी आश्चर्य की बात यह है कि यहॉं पुरुषों से महिलाओं का प्रमाण अधिक है। १००० पुरुषों की तुलना में १०३७ महिलाएँ इस प्रकार से यह प्रमाण है।

विश्‍व में स्थित दूसरे क्रमांक का सबसे अधिक दूरी का रेलमार्ग है, कन्याकुमारे से लेकर जम्मू तक। लगभग भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक के इस सबसे अधिक दूरी के रेलमार्ग पर स्थित दक्षिण का पहला प्रमुख शहर अर्थात् तिरुअनन्तपुरम्। इस शहर का हवाई अड्डा यह भारत में स्थित सुदूर दक्षिण की दिशा में स्थित हवाई अड्डा है।

हमारे प्राचीन वैद्यकशास्त्र आयुर्वेद को विश्‍व में विख्यात करने में और मेडिकल टूरिझम इस संकल्पना को प्रत्यक्ष में उतारने में इस शहर का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

भारत का प्रथम एवं एकमात्र ऍनिमेशन पार्क इसी शहर में है। साथ ही आय.टी. इंडस्ट्रीज् के लिए बनाया गया यहॉं का टेक्नोपार्क भी भारत का सबसे बड़ा टेक्नोपार्क है।

तिरुअनन्तपुरम् के वैभव एवं गौरव इन्हें बढ़ानेवाली वास्तुओं के बारे में हम अगले लेख में जानकारी हासिल करेंगे।

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