चीन के अलावा अन्य देशों के लिए ताइवान यह एक राष्ट्र ही है

फ्रेंच अखबारले फिगारोकी चीन को फटकार

china-taiwan-figaro-1पैरिस/ताईपे/व्हिल्निअस – सिर्फ चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ही ताइवान उनका ही प्रांत होने की सोच रखती है। अन्य सारे विश्‍व के लिए ताइवान एक राष्ट्र ही है, इन शब्दों में फ्रान्स के शीर्ष अखबार ‘ले फिगारो’ ने चीन को फटकार लगाई है। लिथुआनिया ने ताइवान को स्वतंत्र राजनीतिक दफ्तर शुरू करने के लिए प्रदान की हुई मंजूरी से चीन को बड़ी मिर्च लगी है और इस मुद्दे पर चीन ने लिथुआनिया से अपने राजदूत को वापिस बुलाया है। इससे संबंधित खबर प्रसिद्ध करते समय फ्रेंच अखबार ने ताइवान में लोकतंत्र के अनुसार चुनी हुई सरकार बनी है, इस बात की याद भी दिलाई। लिथुआनिया के मुद्दे पर चीनी माध्यम भी आक्रामक हुए हैं और चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ लिथुआनिया को सबक सिखाने के लिए चीन अब रशिया से हाथ मिलाएगा, ऐसा धमकाया है।

बीते महीने ताइवान ने पूर्व यूरोप के लिथुआनिया में स्वतंत्र राजनीतिक दफ्तार शुरू करने का ऐलान किया था। खास बात तो यह है कि, यह दफ्तर ‘द ताइवानीज्‌ रिप्रेज़ेटेटिव ऑफिस’ नाम से ही शुरू किया गया है। ताइवान के इस प्रस्ताव को लिथुआनिया ने भी अधिकृत स्तर पर मंजूरी प्रदान की है और ताइवान में अपना राजनीतिक दफ्तर शुरू करने के भी संकेत दिए हैं। यूरोपिय महासंघ के छोटे देशों में से एक लिथुआनिया ने ताइवान को लेकर अपनाई यह नीति चीन की हुकूमत को बेचैन करनेवाली साबित हुई है।

china-taiwan-figaroइस वजह से आक्रामक होकर चीन ने लिथुआनिया से अपने राजदूत को वापिस बुलाया है। साथ ही चीन में नियुक्त लिथुआनिया के राजदूत को भी देश से बाहर खदेड़ ने का इशारा दिया है। यूरोपिय महासंघ के साथ प्रमुख देशों ने इन गतिविधियों का संज्ञान लिया है और चीन के खिलाफ नाराज़गी का स्वर आलापा है। फ्रान्स के शीर्ष अखबार ने भी लिथुआनिया-चीन की गतिविधियों की खबर जारी करते समय चीन को फटकार भी लगाई है। सिर्फ ताइवान ताइवान का नाम इस्तेमाल करने से चीन की हुकूमत चिल्लाहट कर रही है, ऐसा ‘ले फिगारो’ ने अपनी खबर में कहा है। लिथुआनिया की सराहना करते समय ताइवान के नाम से यूरोपिय देश में पहली बार राजनीतिक दफ्तर शुरू होने की ओर ध्यान आकर्षित किया है।

यूरोपिय महासंघ के विदेश विभाग ने भी चीन के निर्णय की आलोचना की है। अमरीका ने लिथुआनिया के पीछे ड़टकर खड़े रहने का वादा किया है। लिथुआनिया के राष्ट्राध्यक्ष गितानस नॉसेदा ने अपना देश आज़ाद है और अन्य देशों के साथ कैसे ताल्लुकात रखने है, यह निर्णय करने की छूट है, ऐसे कड़े शब्दों में ताइवान संबंधी निर्णय का स्वागत किया है। ताइवान ने भी लिथुआनिया की इस भूमिका का स्वागत किया है और यह निर्णय साहसी होने का बयान भी किया है।

इसी बीच, चीन के माध्यमों ने इस मुद्दे पर आक्रामक रवैया अपनाया है और चीन के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने २४ घंटों के दौरान तीन स्वतंत्र लेख जारी करके लिथुआनिया को धमकाया है। एक लेख में लिथुआनिया द्वारा रशिया के खिलाफ कार्रवाईयों का ज़िक्र किया है और इस देश को सबक सिखाने के लिए रशिया और बेलारूस से हाथ मिलाने का इशारा भी दिया। अपने इशारे का समर्थन करते हुए यह आरोप भी लगाया है कि, लिथुआनिया ने ताइवान को लेकर किया हुआ यह निर्णय अमरीका को खुश करने के लिए है। अन्य यूरोपिय देश लिथुआनिया की राह पर चलने का विचार भी ना करें, यह इशारा भी ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने दिया है।

लिथुआनिया और ताइवान के बीच राजनीतिक दफ्तर शुरू करने के संबंध में हुआ समझौता चीन के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। बीते कुछ वर्षों में चीन ने ताइवान के खिलाफ अधिकाधिक आक्रामक भूमिका अपनाना शुरू किया है। चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने किसी भी स्थिति में ताइवान का विलय होकर रहेगा, यह इशारा भी दिया है। चीन के लष्करी अफसरों ने ताइवान पर हमला करके कब्ज़ा करने का खुलेआम इशारा देना शुरू किया है। तो दूसरी ओर ताइवान को स्वतंत्र पहचान दे रहें देशों को चीन के पक्ष में करने की कोशिश भी कम्युनिस्ट हुकूमत कर रही है। लिथुआनिया की घटना ने चीन की इन कोशिशों को बड़ा झटका लगता दिख रहा है।

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