चीन के लिए पाक़िस्तान से भी महत्त्वपूर्ण देश है श्रीलंका – चीन के सरकारी माध्यमो का दावा

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श्रीलंका के प्रधानमंत्री रनील विक्रमसिंघे फिलहाल चीन के दौरे पर आये होकर, उनके इस दौरे का पूरा फ़ायदा उठाने की तैयारी चीन ने की है। चीन का सबसे नज़दीकी मित्रदेश माने जानेवाले पाक़िस्तान की हालत फिलहाल बिगड़ी रहते हुए, श्रीलंका यही चीन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण देश साबित होता है, ऐसा दावा चीन के सरकारी माध्यम करने लगे हैं। इसीलिए श्रीलंका के प्रधानमंत्री के चीन दौरे का महत्त्व बढ़ा होने का दावा ‘द ग्लोबल टाईम्स्’ इस चीन के मुखपत्र ने किया है।

चीन के लिए श्रीलंका का महत्त्व सबसे अधिक होने का दावा ‘द ग्लोबल टाईम्स्’ में छपे एक लेख में किया गया है। चीन ने पाक़िस्तान में बहुत बड़े निवेश किये होकर, चीन के महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प पाक़िस्तान में विकसित हो रहे हैं। ऐसा होने के बावजूद भी चीन को अपेक्षित रहनेवाली सहायता पाक़िस्तान से प्राप्त नहीं हो रही है। सुरक्षा के मोरचे पर अस्थिर बने पाक़िस्तान का इस्तेमाल  कर चीन इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकेगा, ऐसा दावा इस लेख में किया गया है।

पाक़िस्तान के साथ किया गया सहयोग तथा निवेश इसके अपेक्षित रिटर्न्स न मिल रहे होने के कारण, चीन के लिए श्रीलंका यही अधिक विश्वसनीय विकल्प साबित होता है, ऐसा सूर इस लेख में अलापा गया है। चीन तैयार कर रहे ‘सिल्क रूट’ के लिए श्रीलंका यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण देश है। साथ ही, श्रीलंका के साथ सहयोग करके, हिंदी महासागर की अपनी व्यापारी यातायात की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देना चीन के लिए संभव होगा, ऐसा इस लेख में नमूद किया गया है। इसीलिए चीन ने श्रीलंका के साथ के अपने संबधों को अधिक प्रधानता देने की ज़रूरत होने का विश्लेषण इस लेख में किया गया है।

इसी दरमियान, फिलहाल श्रीलंका पर भारत का बहुत प्रभाव है, यह कहते हुए, चीन श्रीलंका में विकसित करने जा रहे ‘कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट’ को भारत ने स्थगित करवाया था, इसकी याद भी इस लेख में करा दी गयी है। भारत के दबाव में आकर ही श्रीलंका ने यह प्रकल्प स्थगित किया, ऐसा आरोप इस दैनिक ने किया होकर उसके लिए भारत को खरी खरी सुनायी है। श्रीलंका का इस्तेमाल करके चीन भारत को घेर रहा होने का आरोप भी तथ्यहीन है, ऐसी आलोचना भी इस दैनिक ने की है। चीन द्वारा श्रीलंका में किया गया निवेश भारत के लिए ख़तरा साबित नहीं होगा, ऐसा यक़ीन भी इस लेख में दिलाया गया है।

इसी दौरान, महिंद्रा राजपक्षे जब श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्षपद पर विराजमान थे, तब चीन ने श्रीलंका का भारत के विरोध में हर संभव इस्तेमाल करने का एक भी मौका नहीं गँवाया था। लेकिन राजपक्षे की जगह राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना की सरकार आने के बाद श्रीलंका के भारत के साथ रहनेवाले संबंधों में सुधार होने लगा है। उसी अनुपात में, श्रीलंका चीन से दूर जा रहा होने के दावे चीन के माध्यमों द्वारा किये जा रहे हैं। इस पार्श्वभूमि पर, श्रीलंकन प्रधानमंत्री के चीन दौरे का हर संभव इस्तेमाल करके दोनों देशों के बीच के संबंध नये सिरे से स्थापित करने की कोशिशें चीन की यंत्रणाएँ कर रहीं होकर, ‘ग्लोबल टाईम्स’ के उपरोक्त लेख से भी यही बात अधोरेखित हुई है।

गत कुछ वर्षों से, भारत को मात देने के लिए चीन पाक़िस्तान का इस्तेमाल कर रहा होने की बात बार बार स्पष्ट हुई थी। लेकिन चीन जैसे देश से भारी मात्रा में सहायता हासिल करके भी, पाक़िस्तान चीन को अपेक्षित रहनेवाली भूमिका निभा नहीं रहा होने का खेद चीन के विश्लेषक ज़ाहिर करते आए हैं।

आतंकवादियों के कारनामों के कारण पाक़िस्तान खोख़ला हो चुका होकर, इस देश में सुरक्षाविषयक हालात बहुत ही नाज़ूक बन चुके दिखायी दे रहे हैं। इसका असर चीन के निवेश तथा प्रकल्पों पर भी हो रहा होकर, पाक़िस्तान में किये जा रहे निवेश को लेकर चीन भी शंकित है, यह बात सामने आ रही है। इसीलिए चीन ने पाकिस्तान में निवेश करते समय, इस निवेश के ब्याजदर इस ख़तरे पर ग़ौर करके ही निश्चित किये हैं, ऐसा बताया जाता है। पाक़िस्तान के इस भद्दे प्रदर्शन को देखते हुए, आशिया में भारत को रोकने के लिए चीन को दूसरे सहयोगी देश की सख़्त ज़रूरत है।

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