श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७४

रोहिले की कथा देखी जाए तो अनेक पहलुओं से संपन्न है। हमने रोहिले के वर्णन द्वारा हेमाडपंत के माध्यम से साईनाथ हमें क्या उपदेश देना चाहते हैं इस संबंध में हमने विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इसके साथ ही हम रोहिले के आचरण से संबंधित अध्ययन भी कर रहे हैं। पिछले लेख में रोहिला द्वारकामाई में क्यों आकर रहने लगा इस बात का महत्त्व भी हमने अध्ययन द्वारा समझ लिया। द्वारकामाई में अर्थात साईभक्तों का गुरुस्थान यह कोई केवल इस विश्‍व के त्रिमिती में एक स्थान ही नहीं है बल्कि यह साक्षात् भक्तिभूमि ही है। जो हर एक भक्त को त्रिमिती से परे ले जाकर उसका प्रवास सद्गुरुराया के दिशा में तीव्रगति के साथ करनेवाली है।

रोहिले की कथा के हर एक पद की हर एक पंक्ति हमें बोधामृत प्रदान करनेवाली है। शिरडी में आनेवाले इस रोहिले ने द्वारकामाई में ही अपना बसेरा कर लिया। इसके पश्‍चात् दिन हो या रात, मशिदमाई हो अथवा चावड़ी, वह ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करता ही रहा।

दिवस हो अथवा रात्रि। मस्जिद हो अथवा चावड़ी॥
कलमे पढ़ता रहा उच्च स्वर में। अति आवेशपूर्ण स्वच्छंद स्वर में॥
(दिवस असो वा निशी। मशिदीसी वा चावडीसी। कलमे पढे उंच स्वरेसी।अति आवेशी स्वच्छंद॥)

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाईइसमें से प्रथम पंक्ति से संबंधित अध्ययन हमने पहले ही कर लिया है। दिन एवं रात ये द्वंद्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुख हो अथवा दुख, कोई भी द्वंद्व जीवन में हो, पर फिर भी मुझे ईश्‍वर का ही गुणसंकीर्तन हर एक परिस्थिती में करते रहना है। यह गुणसंकीर्तन ही हमें सभी द्वंद्वों से परे ले जाते हैं। संकट आ जाए, कोई अड़चन आ जाती है, किसी चीज़ की आवश्यकता होते ही हमें भगवान का स्मरण होता है। परन्तु वैसे देखा जाए तो सुख में हम भगवान को भूला बैठते हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। अपितु हमें हर एक पल भगवान को याद करते रहना चाहिए।

भगवान को याद करना, उनका स्मरण करना अर्थात क्या? तो मुख से ‘साईराम’ ‘साईराम’ कहना है यह हुआ सरलार्थ, परन्तु इसके साथ ही तन-मन-एंव धन से भी उनका स्मरण करते रहना चाहिए। कर्म में भी हमें उनका स्मरण करना चाहिए। रोज का निश्‍चित समय, चौबीस घंटों में से ‘कम से कम’ चौबीस मीनट तो साईनाथ की उपासना में देना चाहिए। अपनी काया को साईनाथ के बच्चों की सेवा में घिसनी चहिए। उनके लिए प्रतिदिन निश्‍चित समय दे सकते है तो अतिउत्तम अन्यथा प्रति सप्ताह निश्‍चित समय सेवाकार्य के लिए देना चाहिए। हमारे लिए घर से बाहर जाकर यदि सेवाकार्य में सहभागी होना संभव नही है तो चरखा चलाना, गुदड़ी सिलाना, स्वेटर बुनना, छोटे बच्चों को इकठ्ठा करके श्रीसाईनाथ की लीलाओं का र्वणन करना, निरक्षर लोगों को साईसच्चरित पढ़कर दिखलाना, इस प्रकार की सेवा तो हम निश्‍चितरूप में कर सकते हैं। इसके साथ ही मुझे प्राप्त होनेवाले धन में से निश्‍चित हिस्सा उचित दान के लिए देना चाहिए। परन्तु यह दान उचित स्थान पर देना चाहिए जिससे वह जरूरतमंदों तक पहुँच सके। इसीतरह मुझे अपना निश्‍चित समय भी विभिन्न प्रकार के सेवाकार्य के लिए देना चाहिए।

रोहिले के आचरण का दूसरा मुद्दा यह है कि द्वारकामाई हो अथवा चावड़ी, वह दोनों ही स्थानों पर ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करता ही था। इसका भावार्थ यह है कि उपासना स्थल हो, प्रार्थनास्थल हो अथवा गृहस्थी दोनों ही स्थानों पर गुणसंकीर्तन करना ही चाहिए। हम केवल साईनाथ के मंदिर में सामूहिक उपासना के लिए अथवा गुरुवार के दिन जाते हैं, उसी वक्त गुणसंकीर्तन करते हैं। अन्यथा हमें गुणसंकीर्तन करने की आवश्यकता नहीं ऐसा नहीं होता है। ‘चावड़ी’ यहाँ पर व्यवहार का प्रतिनिधित्व करती है। रोज का व्यवहार अर्थात यहाँ की चावड़ी। हम अपने घर पर रहे, नौकरी के स्थान पर रहे, गाड़ी में रहें, रास्ते में चलते रहे, हमें हमेशा ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करते रहना चाहिए। हम व्यवहार करते हैं, नित्यनैमित्तिक व्यवहार में उलझे हैं इसीलिए ईश्‍वर को भूलाकर नहीं चलेगा। हमें अपना काम ईमानदारी से करना ही है। कार्यालय के समय कार्यालय का ही काम करना है। परन्तु इसके साथ ही मन से बारंबार साईनाथ का स्मरण करते रहना है। काम करते हैं, उस स्थान पर साईनाथ की तस्वीर ऐसे स्थान पर रखेंगे कि काम के बीच जब भी हमें समय मिलता है, उस वक्त विशेषतौर पर हमें साईनाथ का दर्शन होगा। बाबा के गुणों के साथ-साथ बाबा के रूप का स्मरण भी मन में अपने आप ही होता रहेगा और वह भी काफी महत्त्वपूर्ण है।

व्यवहार में जब हम गुणसंकीर्तन करते हैं, श्रीसाईनाथ के रूप का भी स्मरण करते हैं, उनकी तस्वीर को निहारते हैं, उस वक्त हमारा व्यवहार भी भली-भाँति होता है। हमारे काम में गलती नहीं होती ऐसे नहीं है। गलती यदि हो भी जाती है तो उसे सुधारकर हमारा विकास करने के लिए साईनाथ हमारी चिंता करने के लिए तत्पर होते ही हैं। कभी-कभी हमारा काम काफी जोखिम का, जिम्मेदारी का होता है। सामनेवाला मनुष्य मन में क्या हेतु लेकर आया है। वह हमें मुश्किल में तो नहीं फँसा देगा। इस प्रकार के अनेक जोखिम हमारे काम में होते ही हैं। हमारा ऐसा ही कोई निर्णय, हमारी ऐसी ही कोई स्वाक्षरी आगे चलकर हमारे लिए त्रासदायक साबित हो सकती है। हम ठहरे सामान्य मनुष्य दूसरों के दिल की बात समझ ही नहीं सकते हैं। इसके लिए हमारी बुद्धि कम पड़ जाती है। ऐसे वक्त ही हमारे द्वारा किया गया गुणसंकीर्तन, स्मरण हमारे काम आता है। और उचित समय आने पर हमें सावधान करके श्रीसाईनाथ संकटों से हमारी रक्षा करते हैं। मिरीकर की कथा, बुट्टीजी की कथा इनके जैसे साईसच्चरित की कथाओं में बाबा उचित समय आते ही भक्त को सावधान करके उसकी रक्षा कैसे करते हैं ये हम बता देते हैं। बाबा को सदैव अपने भक्तों का स्मरण होता ही है। मुझे ही बारंबार बाबा का स्मरण करते रहना चाहिए।

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