श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ५८

शिरडी के ग्रामवासियोंद्वारा बाबा के पास रोहिले के संबंध में की गई शिकायत की ओर बाबा ने अनदेखा कर दिया और बाबा उन ग्रामवासियों को रोहिले की कथा सुनने लगे। इसीके कथा माध्यम से बाबा ने उन्हें यह बताया कि रोहिला उन्हें प्रिय क्यों है।

अब बाबा उन ग्रामवासियों को रोहिले की कथा सुनाने लगे। इस रोहिलेकी पत्नी ने बिलकुल ही लाज-लज्जा छोड़ दी है, ऐसी है। वह इसके साथ नहीं रहती है। वह बारंबार मेरे पास आने के लिए उतावली रहती है। अर्थात उसका जब भी उस पर ध्यान नहीं होता, उस वक्त मौका पाते ही वह रोहिले की पत्नी मेरे पास आने की कोशिश करती है और जब मैं उसे भगा देता हूँ तब वह मेरी भी परवाह किए बगैर जोरजबरदस्ती से (बळजबरीने) घुसने की कोशिश करती है।

हेमाडपंत आगे दिए गए पंक्तियों में विशेष शब्दों द्वारा उस रोहिले की पत्नी का परिचय करवाते हैं।

इस रोहिले की पत्नी घर में घुसनेवाली। एक पल भी उसके साथ नहीं रहना चाहती है।

मेरे पास आने के लिए उतावली रहती है। चुका कर उसकी नजरें दिन में भी।

उसको किसी की परवाह नहीं। लाज-लज्जा सब छोड़ दी है।

उसे भगा देने पर भी। जोरजबरदस्तीसे (बळजबरीने) घर में घुस जाती हैं।

या रोहिल्याची बाईल घरघुशी। नांदूं न घटे तयापाशीं। यावया टोंके ती मजपाशीं। चुकवूनि त्यासी ते विवशी॥

नाहीं रांडेला पडदपोशी। लाजलज्जा लाविली वेशीं। हांकूनि बाहेर घालितां तिजसी। बलात्कारेंसीं घर घुसे॥

इस तरह के शब्दों में हेमाडपंत हमें उस रोहिले की पत्नी का परिचय करवाते हैं।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाईअब बाबा कहते हैं कि जब यह रोहिला जोर-जोर से नामगजर करने लगता है, चिल्लाने लगता हैं। उस वक्त दुर्बुद्धि के रूप में रहनेवाली रोहिले की पत्नी वहाँ से भाग खड़ी होती है। इस तरह से वह मेरे यहाँ मेरे पास नहीं आती।इससे मुझे सुख प्राप्त होता है। इसीलिए बाबा पुन: ग्रामवासियों से यह कहते हैं कि इस तरह से रोहिले के चिल्लाने से उसकी पत्नी मेरे पास न आकर भाग खड़ी होती है। इसीलिए तुम लोग रोहिले को किसी ही तरह से रोकने की कोशिश मत करो उसे मुक्तकंठ से चिल्लाने दो। इसके बगैर मैं रात नहीं बिता पाता हूँ। इस तरह से चिल्लानेवाले इस परोपकारी रोहिले को चिल्लाने देना ही मेरे लिए हितकारक है। इससे ही मुझे सौख्य प्राप्त होता है। इसतरह से रोहिले का वर्णन बाबा उनके लिए सुखदायी, हितकारी एवं परोपकारी इन शब्दों में करते हैं।

इसतरह से बाबा से ही रोहिला एवं रोहिली की कथा सुनने पर ग्रामवासियों का इलाज ही कुंठित हो गया और जिस रोहिले के चिल्लाने से उसकी ऐसी भयावह पत्नी बाबा के पास नही जा सकती है यह सुनकर आखिर लोग और क्या कह सकते हैं?

फिर भी बाबा आगे ग्रामवासियों से कहते हैं कि जब यह रोहिला स्वयं ही थक जायेगा उस वक्त वह शांत हो जायेगा और उसके शांत हो जाने पर तुम लोगों को शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा अथवा इसका और भी एक अर्थ हो सकता है कि जब वह रोहिली रोहिले की पत्नी स्वयं ही थक जायेगी और थक जाने पर वह अपने आप ही शांत हो जायेगी और उसके शांत हो जाने पर अर्थात जब मेरे पास आने की उसकी कोशिश के पूर्णत: थम जाने पर वह रोहिला भी चिल्लाना बंद कर देगा। इसतरह से रोहिले का चिल्लाना बंद हो जाने पर तुम्हारी भी परेशानी दूर हो जायेगी।

यह कथा यही पर खत्म नहीं होती है बल्कि आगे फागुन महीने के आने पर उस महीने में तो रोहिले ने मात्र कमाल ही कर दिया। उसने किसी की भी परवाह किए बगैर अत्यन्त ऊँचे स्वर में नामगजर आरंभ कर दिया। इतना सब कुछ होने पर भी बाबा रोहिले से कुछ नहीं कहते हैं बाबा की क्षमाशीलता को देखकर ग्रामवासी हैरान रह जाते हैं।

रोहिला कुछ इस प्रकार से चिल्लाता था कि लोगों के मन में सवाल उठने लगता था कि इसका गला कैसे नहीं सूखता और उसकी वह आवाज सुनकर तो किसी का भी सिर दर्द से फट जाता, पर फिर भी बाबा का कहना निश्‍चित था कि उसे चिल्लाने दो।

परन्तु वह रोहिला दिखने में भले ही पागलों की तरह दिखाई देता था फिर भी बाबा के प्रति उसके दिल में काफ़ी आदर का भाव था। और वह भी भगवान का ही नाम लेता था इसीलिए बाबा को वह काफ़ी प्रिय लगता था।

जिसे हरि के नाम का ही आलस था। बाबा भी ऐसे लोगों से दूर रहते थे।

कहते थे व्यर्थ ही क्यों रोहिले से परेशान हो। भजन में जो निरंतर रत रहता है।

जयासी हरिनामाचा कंटाळा। बाबा भीती तयाच्या विटाळा। म्हणती उगा कां रोहिल्यास पिटाळा। भजनीं चाळा जयातें॥

जो लोग हरि का नाम नहीं लेते अथवा भगवान का नाम लेने में भी जो आलस करते हैं। ऐसे लोगों का साथ बाबा को भी भयप्रद लगता था और इसीलिए जो भगवान का नाम लेता है ऐसे रोहिले को यूँ ही रहने दो ऐसा उनका विचार था।

अर्थात हेमाडपंत आने कहते हैं कि यह पूर्ण कथा (मायिक) काल्पनिक है। जिस रोहिले के पास एक पैसा (दिडकी) भी नहीं थी ऐसे व्यक्ति से शादी करेगा भी कौन? फिर आई कहाँ से उसकी पत्नी? और जहाँ उसकी पत्नी का ही पता नही वहाँ वह बाबा के पास जायेगी भी कैसे? और बाबा भी बल ब्रह्मचारी। फिर इस कथा का क्या?

इस कथा का निष्कर्ष हेमाडपंत इस तरह से प्रस्तुत करते हैं –

कहाँ कलमों की प्रबोध वाणी। कहाँ ग्रामवासियों की खोखली शिकायतें।

उन्हें मार्ग दिखाने के लिए। बाबा ने यह रचना रची।

कोठें कलम्यांची प्रबोध वाणी। कोठें ग्रामस्थांचीं पोकल गार्‍हाणीं। तयासीं आणावया ठिकाणीं। बतावणी ही बाबांची॥

कि प्रत्यक्ष श्रीसाईनाथ परमात्मा का शिरड़ी में सगुण-साकार रूप में होने पर भी उनकी भक्ति करने के बजाय ग्रामवासी केवल अपने घर-गृहस्थी के झगड़े झमेलों को लेकर उनके पास जाते थे। उन्हें गृहस्थी के साथ-साथ परमार्थ भी करना चाहिए यही बाबा की इच्छा थी परन्तु उनके घर-गृहस्थी के झगड़े-झमेलों की शिकायतें सुनकर ही बाबाने भी उन्हें भक्तिमार्ग पर लगाने के लिए नामगजर करनेवाले रोहिले की कथा उन्हें सुनाई।

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