श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-१०)

इस अध्याय के आरंभ में तीन महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में हमने अध्ययन किया, साईनाथ ने स्वयं अपने मुख से ये तीनों बातें हम से कही हैं। और उन्हें हमेशा याद रखना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है।

साई की गवाही, साई के वचन एवं साई का ब्रीद इनके बारे में स्वयं साईनाथ ही हमसे इस अध्याय के आरंभ में कह रहे हैं।

१) साई की गवाही –
फिर जो भी गायेगा उलटे-सीधे। मेरा चरित्र, मेरे पवाड़े (यशगान)।
उस के आगे-पीछे, चारों ओर। होता ही हूँ मैं खड़ा ॥

२) साई का वचन –
किसी के भी द्वारा किये जाते ही मेरा संकीर्तन। उसे मैं दूँगा आनंदघन।
नित्य सौख्य एवं समाधान। मान लो सत्य है यह मेरा वचन॥

३) साईं का ब्रीद –
जो मेरे प्रति होगा अनन्य-शरण। विश्‍वासयुक्त वह करेगा मेरा भजन।
मेरा ही चिंतन मेरा ही स्मरण। उसका उद्धार करना मेरा ब्रीद है॥

साई की गवाही यह इस साईराम की सीता-शक्ति है, साई के वचन यह इस साईराम की लक्ष्मण-शक्ति अर्थात शेष-शक्ति हैं और साई का ब्रीद यह श्रीसाईनाथ की उद्धरण-शक्ति अर्थात स्वयं साईनाथ ही है।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाई बच्चे के बोल भले ही तोतले भी हों, तब भी उसकी माँ को उसके वे बोल मधुर ही लगते हैं और वात्सल्य के कारण यह माँ अपने बच्चे के चारों ओर खड़ी ही रहती है। साईनाथ का पँवाड़ा गाने से उस आह्लादिनी को अपार आनंद होता है। और यह आह्लादिनी शक्ति ही अपने बच्चों का परिपालन करने के लिए बाबा की गवाही के रूप में हमें यह भरोसा दिलाती है कि शुद्ध प्रेमभाव के साथ बाबा का पँवाड़ा गानेवालों का परिपालन करने के लिए बाबा उनके आगे-पीछे, चारों ओर खड़े ही रहते हैं। साईनाथ की यह वात्सल्य शक्ति इस गवाही से प्रकट होती है।

बाबा के वचन ही ‘सत्य’ वचन है। बाबा स्वयं कहते हैं कि ‘सत्य वचन जानो’। अर्थात वह वचन ही सत्यस्वरूप शेष-शक्ति ही है। हमें आनंदघन प्रदान करनेवाली, सौख्य समाधान प्रदान करनेवाली क्षेमशक्ति अर्थात लक्ष्मण शक्ति है। आदिशेष स्वयं के सहस्रमुखों से इस महाविष्णु का निरंतर संकीर्तन करते ही रहते हैं। और इसीलिए इस वचन के द्वारा बाबा की यह क्षेमशक्ति हमें वचन देती है, आश्‍वस्त करती है कि जो भी कोई इस साईराम का गुणसंकीर्तन, नामसंकीर्तन करेगा, उसे क्षेम प्रदान करने के लिए ये साईनाथ समर्थ हैं ही।

बाबा का उद्धरण ब्रीद यह साईनाथ की समुद्धार शक्ति है। दलदल में फँसे हुओं को भी पूर्ण रूप से बाहर निकालकर स्वच्छ शुद्ध करके उनका जीवनविकास करनेवाली यह समुद्धार शक्ति यह स्वयं ये साईनाथ ही हैं क्योंकि यह ‘उद्धार बीज’ वे स्वयं धारण करते हैं। समुद्धार करने का सामर्थ्य केवल साईनाथ का ही है। और वे ही इस ब्रीद को गरजकर कह सकते हैं, अन्य कोई भी नहीं। अपना स्वयं का ब्रीद तो वे रखते ही हैं, परन्तु हमारा उद्धार करने के लिए हमारी तैयारी होना यह भी उतना ही अधिक महत्त्व रखता है।

तृतीय अध्याय के आरंभ में ही इन तीन पंक्तियों के आधार पर राम के सीता-लक्ष्मणसहित स्वरूप की पहचान हमें बाबा स्वयं ही करवा रहे हैं। राम, लक्ष्मण एवं सीता ये तीनों ही इन तीनों पंक्तियों के अधिष्ठाता हैं और उनकी शक्ति ही इन पंक्तियों द्वारा प्रकट हुई हैं। बाबा की गवाही, बाबा के वचन, बाबा का ब्रीद इन बातों का ध्यान हमें सदैव बनाये रखना चाहिए। श्रद्धावान वही होता है, जो इन तीनों बातों का ध्यान सदैव रखता है और इसी के अनुसार वह साईनाथ की भक्ति में सदैव सक्रिय रहता है। श्रीसाईसच्चरित की कथाओं का पठन, मनन करना और साथ ही श्रीसाई का चिंतन एवं स्मरण करके बाबा पर पूरा विश्‍वास रखकर साईलीला का संकीर्तन करते रहना यही इसका मर्म है।

ऐसे भक्त के जीवन में फिर सचमुच चमत्कार होता है। यह चमत्कार बाह्य चमत्कार न होकर आंतरिक धरातल पर होता है। प्रारब्ध के बंधन से मुक्त करनेवाला होता है। आगे चलकर बाबा स्वयं ही कहते हैं, ‘मेरा नाम, मेरी भक्ति जहाँ पर होती है, जिसे सदैव बाबा के द्वारा दिखाये गए मार्ग पर चलने की अपनी ज़िम्मेदारी पूर्ण रूप से पार करने की तत्परता है, जिसे साईसच्चरित की पोथी का नित्यस्मरण रहता है, जो अपने आचरण में साईचरित में बाबा के द्वारा बताये गए गुणों को उतारने के लिए प्रत्यत्नशील रहता है, जिसके चित्त में अखंड रूप में बाबा का नामस्मरण चलता रहता है ऐसे भक्त के मन में विषय-वासनाएँ अपना स्थान भला कैसे बना सकती हैं?

हमारे मन में अकसर यही प्रश्‍न उठते रहते हैं, हमारे मन में विभिन्न प्रश्‍न हर पल उठते ही रहते हैं। हम कितना ही मन पर काबू क्यों न रख लें, मन को अपने वश में करने की कोशिश कर लें, मग़र ङ्गिर भी हमारा मन विषय-वासनाओं की ओर दौड़ते ही रहता है। हम अपने मन को ऐसी विषय-वासनाओं से कैसे बचाये? इसके लिए सरल सुंदर उपाय क्या हो सकता है, यही हमारी समझ में नहीं आता हैं।

यहाँ पर बाबा हमें उसी मार्ग का अवलोकन करवा रहे हैं। हमारा मन साईनाथ के बगैर अन्य किसी भी चीज से भरा होगा तो स्वाभाविक है कि उसमें विषय-वासनायें बारंबार प्रवेश करती ही रहेंगी। हम अपने मन को विषय वासनाओं से कैसे बचाये?

हमारे मन का कोना-कोना साईनाथ से भरा रहे यही हमारी ज़रूरत है और यह होने के लिए अर्थात संपूर्णत: साईनाथ हमारे मन में समाये रहें इसके लिए साईनाथ हमें सुंदर उपाय दिखा रहे हैं। एक ही पंक्ति में उन्होंने इस सुंदरमार्ग को दिग्दर्शित किया है। जिसका अनुसरण करना हर किसी के लिए सहज ही संभव है।

१) साईनाथ का नाम (मेरा नाम)

२) भक्ति एवं सेवा दोनों समान रूप में करना (मेरी भक्ति)

३) पिपिलिका पथ पर अपनी ज़िम्मेदारी, अपना गन्तव्यस्थान ध्यान में रखते हुए प्रवास करते रहना

४) श्रीसाईसच्चरित ग्रंथ को प्रमाण मानकर उसके अनुसार ही स्वयं में उचित परिवर्तन लाते रहना अर्थात बाबा मुझे जैसा बनना चाहते हैं वैसा ही बनना। (मेरी पोथी)

५) चित्त में सदैव साईनाथ का ही, केवल एकमात्र सद्गुरु साईनाथ का ही ध्यान स्मरण बनाये रखना। (ध्यान अक्षय चित्त में)

इन पाँचों ही बातों का अनुसरण करनेवाले के मन को ये साईराम पूर्ण रूप से व्याप्त कर लेते हैं, और जहाँ पर ये साईराम पूर्ण रूप से समाये हुए हैं, वहाँ पर विषयवासना तो क्या, अन्य चीजें भी आयेंगी भी तो कैसे? और कहाँ से? इसीलिए बाबा कहते हैं –

मेरा नाम मेरी ही भक्ति। मेरा बस्ता मेरी ही पोथी।
मेरा ध्यान अक्षय चित्त में। विषयस्फूर्ति कैसे वहाँ॥

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