श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३४)

हेमाडपंत अपने प्रथम शिरडी-आगमन के समय होने वाली घटनाओं का उल्लेख यहाँ पर इस कथा के माध्यम से कर रहे हैं। हेमाडपंत के मन में पूरा विश्‍वास है कि बाबा ही इस चिड़ी के पैर में डोर बाँधकर उसे शिरडी खींच लाये यानी मुझे शिरडी ले आये। परन्तु बाबा की इस योजना में जिनकी अहम भूमिका थी, वे थे काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर। इन के ऋणों का भी उल्लेख हेमाडपंत इस कथा के आरंभ में कर रहे हैं। यह सच है कि बाबा ही मुझे शिरडी ले आये, परन्तु इसके लिए बाबा की महानता मुझ तक पहुँचाने वाले एवं मुझे कम से कम एक बार तो शिरडी चलने का आग्रह करने वाले इन दो श्रेष्ठ भक्तों का मेरे शिरडीगमन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
काकासाहब भक्त-प्रवर (भक्तश्रेष्ठ)। नानासाहब चांदोरकर।

इनका ऋणानुबंध यदि न होता। तो कैसे पहुँच पाता शिरडी में यह हेमाडपंत॥

काकासाहब दीक्षितश्री. हरि सीताराम दीक्षित अर्थात काकासाहब दीक्षित। श्री. नारायण गोविंद चांदोरकर अर्थात नानासाहब चांदोरकर। यहाँ पर सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हेमाडपंत यहाँ पर दोनों के मूल नाम को न लिखकर ‘काकासाहब’ एवं ‘नानासाहब’ इस प्रकार से उनका उल्लेख करते हैं।  इसका कारण यह है कि दीक्षितजी को ‘काका’ एवं चांदोरकरजी को ‘नाना’ ये नाम बाबा ने दिये थे। बाबा दीक्षितजी को ‘काका’ कहकर संबोधित करते थे और चांदोरकरजी को ‘नाना’ कहकर संबोधित करते थे।

बाबा के मुख से जिस व्यक्ति के संदर्भ में जो नाम निकला है वही उस व्यक्ति की सही पहचान है, इसी विशेष सिद्धान्त का प्रतिपादन हेमाडपंत यहाँ पर कर रहे हैं। हर एक व्यक्ति के मन में रहनेवाले ‘मैं कौन हूँ, मेरी अपनी पहचान क्या है’, इन मूलभूत प्रश्‍नों के वास्तविक उत्तर हेमाडपंत यहाँ पर दे रहे हैं। लौकिक दृष्टि से मैं कौन हूँ, मेरी अपनी क्या योग्यता है, दुनिया में मेरी क्या पहचान है इन सब बातों से अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि बाबा मेरे बारे में क्या सोचते हैं, बाबा मेरे बारे में क्या कहते हैं। स्वयं मैं अपने आप को क्या कहता हूँ उसकी अपेक्षा बाबा मेरे बारे में क्या कहते हैं, वह अधिक महत्त्वपूर्ण है।

बाबा मेरी जो पहचान मुझे देते हैं वही मेरी सच्ची पहचान है। मैं अपने-आप को कितना जानता हूँ? कोई भी अपने मन की गहराई को पूरी तरह से नहीं जान सकता है। हाँ, इस जन्म के बारे में कुछ हद तक अपने-आप को मैं भले ही जान पाऊँ, परन्तु अपने पिछले अनेक जन्मों के बारे में क्या मैं अपने-आप को जान पाऊँगा? हमें सदैव एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि बाबा ही हर किसी को भली-भाँति जानते हैं।

बाबा मेरे बारे में क्या कहते हैं यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। स्वयं मैं क्या सोचता हूँ इसकी अपेक्षा बाबा के वचन ही पूर्ण सत्य हैं, यह विश्‍वास मुझ में होना चाहिए। यहाँ पर इस अध्याय में हेमाडपंत इसी परिपेक्ष्य में अपने नामकरण का उल्लेख तो करते ही हैं और इसी संदर्भ में स्वयं के नामकरण की कथा शुरू करने से पहले वे दीक्षित एवं चांदोरकर का नामकरण, जो बाबा ने किया था, उसका उल्लेख करते हैं और उसके बाद ही अपने नामकरण की कथा का आरंभ करते हैं।

दोनों के ही लिए वे ‘भक्तप्रवर’ इस विशेषण का उपयोग करते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि काकासाहब दीक्षित एवं नानासाहब चांदोरकर बाबा के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं। इसीलिए इन दोनों के चरित्र का अध्ययन करना हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।

यहाँ पर हेमाडपंत एक रहस्य हमें बता रहे हैं। हेमाडपंत कहते हैं कि बाबा के पास जाने की दिशा मुझे जिसने दिखलाई, लौकिक रूप में बाबा के पास कैसे जाना है, शिरडी का प्रवास कैसे करना है, साईचरणों तक कैसे पहुँचना है यह मार्गदर्शन जिन दो भक्तप्रवरों ने किया, वे दो सर्वश्रेष्ठ भक्त यानी काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर ये दोनों हर एक भक्त को साईचरणों तक पहुँचने की दिशा प्रदान करनेवाले श्रेष्ठ भक्त हैं।

शिरडी का रास्ता हर किसी को इन दोनों के चरित्र का अध्ययन करने से मिल सकता है और हर एक भक्त इन्हीं की तरह उत्तम शिष्य बन सकता है। हेमाडपंत कहते हैं कि इन दोनों ने जिस तरह मुझे शिरडी का रास्ता दिखाया, ठीक उसी तरह तुम सब को भी दिखा ही रहे हैं। साईसच्चरित में आनेवाली कथाओं के माध्यम से इनके चरित्र का अध्ययन करके, इनके आचरण का अभ्यास करके हम निश्‍चित ही शिरडी जा पहुँचेंगे यानी साईलोक में जा पहुँचेंगे।

इन दोनों के आचरण का अध्ययन कर हम निश्‍चित ही शिरडी पहुँच सकते हैं और बाबा के चरणों पर अपना माथा टेक सकते हैं। इन दोनों के आचरण का अभ्यास करते हुए हम यह जान पायेंगे कि उत्तम शिष्य बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए। हेमाडपंत स्पष्ट रूप में कह रहे हैं कि यदि इन दोनों के साथ ऋणानुबंध न होता तो मैं शिरडी में पहुँच ही कैसे पाता?

‘इनके साथ ऋणानुबंध न होते, तो कैसे पहुँचता यह हेमाडपंत शिरडी में। ’

काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर इनके साथ यदि ऋणानुबंध (ऋण-अनुबन्ध) न होता तो, प्रस्तुत लेखक (हेमाडपंत) शिरडी में भला कैसे पहुँच पाता, यह बात हेमाडपंत यहाँ पर स्वयं के बारे में बता रहे हैं। और हेमाडपंत का यह वचन यहाँ पर हम सभी को समान रूप में लागू होता है। साईसच्चरित का सार ही मानो हेमाडपंत यहाँ पर बता रहे हैं। काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर इनके ऋणों का निर्देश करना यह हेमाडपंत का उद्देश्य तो है ही परन्तु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, हेमाडपंत के मन में उठने वाला यह भाव कि ‘शिरडी में हर एक भक्त कैसे पहुँच सकता है, इस बात का रहस्य सबको बताना। हेमाडपंत के मन में तड़प उठ रही है कि हर एक भक्त को ये साईनाथ पूर्णत: प्राप्त हो जाये और इसीलिए तो वे श्रीसाईसच्चरित लिख रहे हैं। परन्तु ये साई पूर्णत: प्राप्त होने हेतु सहज, आसान एवं सुंदर मार्ग कौन सा है? तो दीक्षित और चांदोरकर के आचरण का अनुसरण करने का मार्ग।

जिस भक्त का ऋणानुबंध दीक्षित एवं चांदोरकर इनके साथ नहीं हैं, वह भक्त भला किस तरह इस मार्ग को ढूँढ़ पायेगा। यहाँ पर दीक्षित एवं चांदोरकर ये दोनों भक्तश्रेष्ठ महज़ व्यक्ति न रहकर ‘आकृति’ बन गए हैं। साईप्रेम की, साईभक्ति की, साईसेवा की एवं साई-शारण्य की आकृति।

भक्तप्रवरत्व की आकृति है ये दोनों भक्त। एक श्रेष्ठ भक्त के, एक उत्तम शिष्य के सभी गुण इन दोनों में दिखाई देते हैं और इसीलिए ये दोनों भक्तप्रवरत्व की आकृति हैं। इनके साथ ऋणानुबंध होना इसका अर्थ है- इनके गुणों के साथ, इनके आचरणों के साथ, इनके विचारों के साथ, इनके भावों के साथ बँधे रहना। हमें यदि शिरडी में यानी साईनाथ के गोकुल में जाना है, तो हमें इन दोनों श्रेष्ठ भक्तों के आचरण का अध्ययन करना चाहिए।

हेमाडपंत कहते हैं कि मुझे शिरडी का रास्ता दिखाया, साईनाथ के इन दो भक्तप्रवरों ने, भक्तोत्तमों ने अर्थात काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर ने। इन दोनों के साथ यदि मेरा ऋणानुबंध नहीं होता तो मैं साईगोपाल के गोकुल में शायद कभी न पहुँच पाता। इसीलिए इनके ऋणों का निर्देश करना मेरा परमकर्तव्य है और इसके साथ ही तुम्हें भी यदि साईनाथ की इस शिरडी में अर्थात कृष्ण के गोकुल में जाना है, वहाँ पर प्रवेश लेना है तो ये दोनों भक्तप्रवर तुम्हें शिरडी का रास्ता ज़रूर दिखलायेंगें। हेमाडपंत की एक पंक्ति में कितना महत्त्वपूर्ण रहस्य छिपा हुआ है ना! और यही रहस्य यहाँ पर उजागर होता है।

अब हमें काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर इनके साथ ऋणानुबंध प्रस्थापित करने के लिए क्या करना चाहिए, जिससे कि मुझे भी साईनाथ के गोकुल में प्रवेश प्राप्त हो सके? इसके लिए एक ही उपाय है और वह है- श्रीसाईसच्चरित में काकासाहब दीक्षित और नानासाहब चांदोरकर की जो भी कथाएँ हैं, उनका भली-भाँति अध्ययन करके, उनके आचरण से सीख लेकर अपने आचरण में इन महान भक्तों के उत्तम गुणों को उतारने का प्रयास करना।

जो भी इनके आचरण का अध्ययन करके स्वयं के आचरण को सुधारने का प्रयास करने में एहतियात बरतेगा, उस भक्त के कार्य में चाहे हजारों रोड़े, रुकावटें आ जायें, वह आगे बढ़ता ही रहेगा, निरंतर प्रयास करता रहेगा, उसके लिए शिरडी दूर नहीं है, ऐसे भक्त को हर प्रकार से सहायता पहुँचाकर बाबा उसे अपनी गोकुल-नगरी में बुला ही लेते हैं। हेमाडपंत जिस तरह शिरडी गए और बाबा के गोकुल के गोप बन गए, क्या हम उसी प्रकार का आचरण करके वहाँ नहीं पहुँच सकेंगे? अवश्य पहुँच सकेंगे। हेमाडपंत स्वयं यक़ीन दिला रहे हैं कि हर एक श्रद्धावान गोप अवश्य बन सकता है, बस इसके लिए काकासाहब और नानासाहब के साथ ‘ऋणानुबंध’ होना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published.