प्रो. सतिश धवन (१९२०-२००२)

१८ जुलाई १९८० के दिन सुबह के समय श्रीहरिकोटा के अन्तरिक्ष अड्डे (स्पेस स्टेशन) से भारत का पहला उपग्रह प्रक्षेपक वाहन (SLV) छोड़ा गया और अपोजी मोटर ने रोहिणी उपग्रह को यथायोग्य गति के साथ निश्चित किए गए कक्ष में यशस्वी रूप में प्रक्षेपित किया। उपग्रह प्रक्षेपण की यंत्रणा प्राप्त कुछ गिने-चुने देशों में भारत का नाम भी समाविष्ट हो गया। इंदिरा गांधी द्वारा विशेष टेलिग्राम भेजे जाने पर लोकसभा में बेंचें आदि बजाकर आनंद व्यक्त किया गया। इस यशस्वी उड्डान का श्रेय अनेक रथी-महारथियों सहित सभी लोगों को यशस्वी नेतृत्त्व देने वाले प्रो. धवन को भी निश्चित ही जाता है। प्रोफेसर सतीश धवन, इस्त्रो के चेयरमेन ने अपने संयमित शब्दों में ‘अंतरिक्ष की उडान भरना इसके आगे देश के लिए अब सहज-सुलभ होगा’ ऐसी घोषणा की। सौ प्रतिशत स्थानिक तकनीक का प्रयोग करके इस उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया था।

एक सधन उच्चशिक्षित परिवार में, भारत के श्रीनगर में २५ सितंबर, १९२० के दिन सतीश धवन का जन्म हुआ। उनके पिता हिन्दुस्तान की सीविल सर्विस में उच्च श्रेणी के अधिकारी थे, साथ ही विभाजन के पश्चात् वाले भारत में उन्होंने रिसेटलमेंट कमिशनर पद की जिम्मेदारी भी संभाली थी।

पंजाब में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात सतीश धवन द्वारा प्राप्त की गयी उपाधियां यह विविध शाखाओं का मानो एक दुर्लभ संयोग था, मानो जैसे मधुमख्खियों ने विविध फूलों से मधुकण लाकर अंत में छत्ते में जमाकर एकजीव कर दिया हो। गणित एवं भौतिकशास्त्र में बी.एससी., अंग्रेजी साहित्य में एम.ए., मेकॅनिकल इंजीनियरिंग में बी.ई., एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एम्‌. एस. (अमरिका के मिनीसोटा महाविद्यालय से), एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की उपाधि १९४९, एरोमॅटिक्स एवं गणित इन विषयों में पी.एच.डी. १९५१, (कॅलिफोर्निया इन्स्टिट्युट ऑफ टेक्नॉलॉजी)। इन ज्ञान संपदाओं के साथ प्रो. धवन का सर्वगुणसंपन्न ऐसा व्यक्तित्व प्रस्थापित हुआ।

१९५१ में ‘इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ सायन्स’ बंगलुरु में एक उच्च स्तर वैज्ञानिक अधिकारी के रूप में वे कार्यरत हो गए। १९५५ से वे उसी संस्था में प्राध्यापक एवं कुछ समय पश्चात एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग विषय के प्रमुख बन गए, वहीं १९६२-८१ इस समय के दौरान वे उसी संस्था के संचालक थे। साथ ही १९७१-७२ के दौरान वे ‘कॅलिफोर्निया इन्स्टिट्युट ऑफ टेक्नॉलॉजी’ (अमरीका) नामक इस संस्था में विजिटिंग प्राध्यापक थे।

१९७२-२००० की अवधि में वे ‘इंडियन स्पेस कमिशन’ के प्रमुख रहे, वहीं ‘इंडियन ऍकॅडमी ऑफ सायन्स’के १९७७-७९ में अध्यक्ष थे। नेशनल एरोस्पेस लॅबोरेटरिज्‌ (बंगालोर) के १९८४-९३ में वे प्रमुख थे। ‘इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनायझेशन ’(इस्त्रो) नामक इस संस्था में १९७२-९५ की अवधि में प्रमुख पद पर वे सम्मानित रहे। प्रो. विक्रम साराभाई के कार्य का सूत्र संचालन उनके पश्चात्‌ प्रो. धवन ने अपने हाथो में ले लिया।

इनसॅट पोलार सॅटेलाईट, लाँच वेईकल, इंडियन रिमोट सेंसिंग सॅटेलाईट इस प्रकार की अंतरिक्ष से संबंधित यंत्रणा की बनावट एवं विकास में प्रो. धवन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। उनके कार्यकाल के दौरान विविध वैज्ञानिक संस्थाओं का कार्य काफी प्रभावकारी रहा। ‘सुपरसॉनिक विंड टनल’ का निर्माण भारत में करने का श्रेय प्रो. धवन को ही जाता है। ‘बाऊंड्री लेयर थियरी’ (Boundary Layer Theory) नामक इस पुस्तक में उनके द्वारा विविध क्षेत्रों में किए गए योगदान की जानकारी प्राप्त होती है।

कुछ महान भारतीय वैज्ञानिक तथा उनके सहसंशोधक जिन्हें प्रो. धवन के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने भी उनके बारे में कुछ लिखकर रखा है, वह कुछ इस प्रकार है-

प्रो. धवन ध्येयवादी व्यक्तित्व के धनी थे। इस्त्रो रूपी जहाज के वे सही मायने में कप्तान थे। उन्हें यदि किसी विषय के बारे में ठीक से समझ में नहीं आता था तो वे उससे संबंधित लोगों से विचार-विमर्श करके अपनी आशंका का समाधान कर लेते थे। मैं ही सब कुछ जानता हूं ऐसा उनका स्वभाव नहीं था। कनिष्ठ सहकारियों के साथ वे कठोर परन्तु न्यायपूर्ण व्यवहार रखते थे। कोई भी निर्णय लेते समय वे अपने मन में दयाभाव रखते थे। तात्पर्य यह है कि वे सभी की सूचनाएं, उनकी राय आदि के बारे में विचार करते थे, परन्तु एक बार यदि वे दृढ़ निर्णय कर लेते थे तब वे उसके प्रति एकनिष्ठ रहते थे। मानो आकार में आने वाला बर्तन भट्टी से मज़बूत बनकर बाहर निकला है और अब वह बरतन बड़ी से बड़ी कठिनाईयों का सामना करने के लिए मज़बूत एवं समर्थ रहेगा। किसी भी वस्तु के बारे वे जब बताते थे उस वक्त सुननेवाला उनकी विवेचन पद्धति, बुद्धिमत्ता एवं ज्ञान की क्रमबद्धता के प्रति आकर्षित हो जाता था। उनके साथ होनेवाला बौद्धिक वाद-संवाद यह बुद्धि को और भी अधिक तीव्र बनाने वाला व्यायाम था, हर किसी को उर्जा प्रदान करने वाला स्त्रोत था। अपनी स्वयं की गलतियों का वे कठोरता से मूल्यमापन करते थे, परन्तु दूसरों की गलतियों के प्रति सहनशील थे। गहराई से विचार कर गलतियों को सुधारकर वे अपना निर्णय देते थे, साथ ही दोषी लोगों को सब कुछ भुलाकर क्षमा कर देते थे। करुणा एवं आशावाद यह उनके आचरण का सहज स्वभाव था।

वैज्ञानिक युग के प्रो. धवन ‘फ्ल्युइड डायनामिक्स’ के जनक माने जाते हैं। ज्ञानवर्धन के क्षेत्र में उन्होंने ‘मोलीक्युलर बायोफिजिक्स’ नामक नया विभाग शुरु किया, साथ ही ‘ऍटमॉस्फिअरिक सायन्स’ जैसे नवीन क्षेत्र के कार्य को उत्तेजना प्रदान की। एक दयालु विद्यार्थीप्रिय शिक्षक, बहु आयामी संशोधक, सतत कुछ नया करने की चाह रखने वाले, तकनीकी, संस्थापकीय एवं व्यवस्थापकीय कौशल्यवादी विशेष आसामी। ऐसे प्रो. धवन को १९८१ में ‘पद्मविभूषण’, १९९९ में ‘इंदिरा गांधी नॅशनल इंटिग्रेशन’ पुरस्कार’ साथ ही इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ सायन्स एवं कॅलिफोर्निया इन्स्टिट्युट ऑफ टेक्नॉलॉजी (१९६९) इन संस्थाओं का ‘डिस्टींगविशड्‌ ऍलम्‌नस पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।

५ सितम्बर, २००२ में भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के हाथों श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) स्पेस स्टेशन का नामांतरण प्रो. सतीश धवन स्पेस सेंटर किया गया। एक असामान्य प्राध्यापक को शिक्षा दिवस के दिन कृतज्ञतापूर्वक दी गई यह एक सलामी ही है।

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