समय की करवट (भाग ८३) – अरब-इस्रायल विवाद

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-४३

इस कोल्ड वॉर में हमने अब तक देखे क्रायसिस ये कोल्ड वॉर के अहम पड़ाव हैं, जिस समय यह कोल्ड वॉर दो महासत्ताओं के बीच प्रत्यक्ष युद्ध होने की कगार तक जा पहुँचा था|

लेकिन इस कालावधि में दरअसल शायद एक दिन भी ऐसा नहीं गया होगा, जब अप्रत्यक्ष रूप में एक-दूसरे को शह देने की कोशिशें इन महासत्ताओं द्वारा की गयीं न हों|

इस दौरान ‘अरब-इस्रायल’ इस पुराने विवाद में दोनों पक्षों द्वारा संघर्ष शुरू किये जाने के दो प्रसंग आये और उनका, अमरीका और सोव्हिएत रशिया ने स्वाभाविक रूप से फ़ायदा उठाया| वे दो वाक़ये थे –

सन १९६७ में इस्रायल ने किया हुआ इजिप्त-सिरिया-जॉर्डन के खिलाफ़ का – ५ जून से १० जून १९६७ इस कालावधि में खेला गया छः दिवसीय युद्ध;

और सन १९७३ में इस्रायल के खिलाफ़ इजिप्त की अगुआई में संयुक्त अरब जगत ने किया हुआ ‘योम-किप्पूर’ युद्ध|

सन १९५६ के ‘सुएझ नहर क्रायसिस’ की परिणति, इजिप्त द्वारा सुएझ नहर तथा तिरान की खाड़ी दुनिया के लिए खुली करने में हुई थी और उस भाग में संयुक्त राष्ट्रसंघ की शांतिसेना तैनात थी|

आगे चलकर इस्रायल के रक्षामंत्री और बाद में विदेशमंत्री बने मोशे दायान इस युद्ध में इस्रायल का नेतृत्व कर रहे थे|

लेकिन अब इस संयुक्त राष्ट्रसंघ की शांतिसेना की इस इलाक़े में ज़रूरत नहीं है, यह कहकर नासरने सुएझ नहर परिसर में बड़े पैमाने पर सेना को एकत्रित करना शुरू किया| साथ ही, उसने आकाबा गल्फ और तिरान की खाड़ी इन भागों में भी नाविक नाकाबंदी की और इस्रायली जहाज़ों को उनका इस्तेमाल करनी की मनाही की| इन तीन देशों के साथ, जॉर्डन के ‘निमंत्रण से’ इराक ने भी अपनी सेना को उनकी सहायता के लिए भेजा| यह अपने खिलाफ़ के युद्ध की ही तैयारी है, यह मान चलकर ग़ुस्सा हुए इस्रायल ने फ़ौरन अपनी गतिविधियॉं शुरू कीं| आगे चलकर इस्रायल के रक्षामंत्री और बाद में विदेशमंत्री बने मोशे दायान इस युद्ध में इस्रायली सेना का नेतृत्व कर रहे थे|

दुश्मन उनपर हमला करने की प्रतीक्षा करते रहने के बजाय, तुरन्त गतिविधियॉं कर इस्रायल ने पहले ही दिन यानी ५ जून १९७३ को इजिप्त, सिरिया, जॉर्डन और इराक इन चारों राष्ट्रों के हवाईदलों को नाक़ाम बनाकर उनकी एकत्रित सेना को भागने पर मजबूर कर दिया|

छः दिन चल रहे इस युद्ध में सिनाई का रेगिस्तान, जॉर्डन नदी के पश्‍चिमी किनारे पर का भाग यानी वेस्ट बँक, साथ ही, गाझापट्टी तथा सिरिया स्थित गोलन पहाड़ियॉं ये रणनीति की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण होनेवाले प्रदेश इस्रायल के कब्ज़े में आ गये|

इस युद्ध ने, तब तक अरब जगत का नेतृत्व माने गये इन चार देशों की, ख़ासकर इजिप्त के नासर की इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया|

इस्रायल की सीमाओं में हालॉंकि, रणनीति की दृष्टि से उनका बहुत फ़ायदा करानेवाली वृद्धि हुई, मग़र वह उनके लिए हमेशा का सिरदर्द बनकर रह गयी| इस सारे जीते हुए भाग में उस समय जो लगभग १० लाख अरब जनसंख्या थी (जिसमें से ६ लाख तो वेस्ट बँक में ही थी), उसमें से अनगिनत युवा इस्रायल के विरोध में ‘पॅलेस्टिनियन लिबरेशन ऑर्गनायझेशन’ इस सन १९६४ में स्थापन किये गए; संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा, अरब-इस्रायल विवाद का हल निकालते समय इस्रायल को बहाल की गयी भूमि की ‘आज़ादी के लिए’ लड़नेवाले, लेकिन इस्रायल ने ‘आतंकवादी’ घोषित किये हुए सशस्त्र संगठन में शामिल हुए और यह बात इस्रायल के लिए निरन्तर का सिरदर्द बनकर रह गयी|

इस महज़ छः दवस चले युद्ध में भी, अमरीका तथा पश्‍चिमी देश इस्रायल की सहायता कर रहे थे; वहीं, सोव्हिएत रशिया अरब राष्ट्रों की!

इस हार के बाद नासर ने आत्मपरीक्षण किया और इस नाट्य के अगले अंक के लिए वह इजिप्त की लष्करी ताकत में वृद्धि करने लगा|

वह ‘अगला अंक’ हुआ सन १९७३ में – ‘योम किप्पूर वॉर’ के रूप में|

उस समय तक इजिप्त का नेतृत्व अन्वर सादात के पास आया था और इस्रायल का गोल्डा मायर के बास|

सन १९६७ के छः दिवसीय युद्ध के पश्‍चात् हालॉंकि इस्रायल ने स्वयं होकर शांतिसमझौता करते हुए सिनाई रेगिस्तान इजिप्त को और गोलन पहाड़ियॉं सिरिया को लौटाने का ऐलान किया, लेकिन वेस्ट बँक और गाझापट्टी ये प्रदेश विवादग्रस्त ही रह गये| उसीके परिणामस्वरूप सन १९७३ का यह युद्ध हुआ|

‘योम किप्पूर’ यह ज्यू धर्म में सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और ६ अक्तूबर १९७३ को जब पूरे इस्रायल भर में यह त्योहार मनाया जा रहा था, तब इजिप्त तथा अन्य अरब राष्ट्रों की संयुक्त सेना ने, ‘छः दिवसीय युद्ध में’ इस्रायल ने कब्ज़ा की हुई भूमि पुनः अपने कब्ज़े में करने के लिए इस्रायल पर हमलें चढ़ाये|

त्योहार मना रही असावधान इस्रायली सेना इस अचानक हुए हमले से शुरू शुरू में बौखला गयी| दो ही दिन में अरब सेना बहुत ही भीतर तक घुसी चली आयी| लेकिन उसके बाद इस्रायली सेना सँभल गयी और उसने पुनः सिनाई प्रदेश तथा गोलन पहाड़ियों को अपने कब्ज़े में कर लिया|

२४ अक्तूबर तक युनो ने शांतिसेना भेजकर युद्धबंदी लागू की|

यह युद्धबंदी समझौता कराने में, तब तक अमरीका के विदेशमंत्री बने हेन्री किसिंजर ने अहम भूमिका निभायी|

नासर के पश्‍चात् इजिप्त के सर्वेसर्वा बने अन्वर सादात ने १९७३ के ‘योम किप्पूर’ युद्ध का हँडलिंग बराबर नहीं किया, ऐसी धारणा पॅलेस्टिनी जनता ने बना ली|

इजिप्त की पराजय से, तब तक नासर के उत्तराधिकारी बने और ‘पॅलेस्टिनियों को आज़ादी दिलाकर रहेंगे’ ऐसी जिनसे उम्मीद थी, वे अन्वर सादात पॅलेस्टिनियों की आज़ादी के लिए लड़नेवाले योद्धाओं की नज़र से गिर गये और उसके परिणामस्वरूप आगे चलकर सन १९८१ में उनकी हत्या हुई|

‘कोल्ड वॉर’ के कालखंड के यह छोटे प्रतीत होनेवाले, लेकिन अहम पड़ाव….‘अहम’ कहने का कारण, यह अरब-इस्रायल संघर्ष कोल्ड वॉर ख़त्म होकर भी चालू रहा….

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