समय की करवट (भाग ४८) – स्टॅलिनशाही!

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इस का अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इस में फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उस के आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं। यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सन १९२४ तक लेनिन के संभाव्य उत्तराधिकारियों में सत्ताप्रतिस्पर्धा चरमसीमा तक पहुँची। श्रमिकों की सरकार यहाँ स्थिर करने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं, उसके विरोध में उठनेवालीं आवाज़ें बन्द करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी में एकरूपता का होना आवश्यक है, इस कारण की आड़ में, केवल बोल्शेविकों के अलावा ही नहीं, बल्कि पक्षांतर्गत विरोध को कुचल देने का और बिलकुल स्थानीय प्रशासनसंस्थाओं से लेकर सभी सत्तास्थानों पर सोव्हिएतपरस्त बोल्शेविकों को नियुक्त करने का काम लेनिन ने ही शुरू किया था।

उसीके परिणामस्वरूप, कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति (सेन्ट्रल कमिटी) के पास सोव्हिएत रशिया की सारी सत्ता इकट्ठा हुई थी और सन १९२२ से जोसेफ़ स्टॅलिन यह सेन्ट्रल कमिटी का महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) होने के कारण किसे कहाँ पर नियुक्त करना है, किसे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने देनी है, किसे नीचे गिराना है ये सारी बातें उसके हाथ में थीं; और एक के बाद एक सभी पदों पर स्टॅलिन ने, वहाँ के स्थानीय कम्युनिस्टों में से, उसके साथ व़फ़ादार होनेवाले आदमियों की ही नियुक्तियाँ करने का सत्र शुरू कर देने के कारण स्टॅलिन के हाथ में प्रचंड सत्ता समायी थी। अगले दो वर्षों में तो सत्ता के सोपान (‘हायरार्की’) में लगभग सभी स्टॅलिन-समर्थक ही नियुक्त किये गये थे। लेनिन यह सब देख तो रहा था, लेकिन स्टॅलिन इस सत्ता का प्रभावी रूप में कहाँ तक इस्तेमाल कर सकेगा, इसको लेकर लेनिन के मन में सन्देह उठ रहा था।

लेकिन स्टॅलिन इस सारे संघर्ष के दौरान बिलकुल शुरू से ही लेनिन के साथ था, यह लेनिन की दृष्टि से स्टॅलिन का ‘प्लस पॉईंट’ था। ट्रॉट्स्की तो सन १९१७ के बाद ही लेनिन के पक्ष में लड़ाई में उतरा था। उससे पहले वह ‘बोल्शेविक’ न होकर ‘मेन्शेविक’ (मध्यममार्गी – अल्पमत में होनेवाले) विचारधारा का था। इस कारण यह निश्‍चित रूप में कहना मुश्किल था कि उसकी विचारधारा हमेशा ही लेनिन के समर्थन में खड़ी रहें। कई बार दोनों के झगड़े भी होते थे।

लेनिन ट्रॉट्स्की तथा स्टॅलिन, दोनों के भी गुणदोष जानता था। ट्रॉट्स्की यह अधिक संवेदनशील, विचारवंत और कम्युनिझम को लेकर जहालमतवादी था और जागतिक क्रांति का (पूरी दुनिया में केवल कम्युनिझम शासनप्रणाली का होना) पुरस्कर्ता था; वहीं, स्टॅलिन यह हालाँकि ट्रॉट्स्की जितना विचारशील नहीं था, वह चालाक़ था और सत्ता के समीकरणों को ट्रॉट्स्की की तुलना में अधिक अच्छी तरह से जाननेवाला था। साथ ही, वह व्यवहार्यता से विचार करता होने के कारण, ‘पूरी दुनिया में केवल कम्युनिझम शासनप्रणाली का होना’ (‘वर्ल्ड रेव्होल्युशन’) यह उस समय तो नामुमक़िन बात है, इस तथ्य को वह अच्छी तरह जानता था और इसीलिए उस समय तो वर्ल्ड रेव्हॉल्युशन का विचार बाजू में रखकर, कम्युनिझम को कम से कम रशिया में तो मज़बूत बनाना चाहिए, इस राय का था। ज़ाहिर है, ट्रॉट्स्की और उसमें कई बार इस बात को लेकर झगड़ा होता था।

ग्रिगरी झिनोवीव्ह

चाहे जो भी हो, लेकिन लेनिन के शासन में ‘युद्धमंत्री’ यह ट्रॉट्स्की का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण हंोकर, स्टॅलिन के पद की टक्कर का था। इससे सत्तासंपादन में ट्रॉट्स्की अपने लिए अड़ंगा बन सकता है, यह जानकर स्टॅलिन ने चालाकी से – पेट्रोग्रॅड एवं मॉस्को ये जो सोव्हिएत के दो मुख्य बलस्थान थे; उनमें से पेट्रोग्रॅड सोव्हिएत का प्रमुख ग्रिगरी झीनोवीव्ह (यह ‘कम्युनिस्ट इन्टरनॅशनल – कॉमइन्टर्न’ का प्रमुख भी था) और मॉस्को सोव्हिएत का प्रमुख कॅमेनीव्ह इन्हें फ़ुसलाकर अपने पक्ष में करके फिर तीनों का एक दबावगुट तैयार किया। इन दोनों के हाथ में भी बहुत सारे अधिकार एकत्रित थे। उनका इस्तेमाल स्टॅलिनने सुव्यवस्थित रूप से ट्रॉट्स्की को मात देने के लिए करा लिया।

बीमारी के कारण लेनिन की कार्यक्षमता पर जब असर होने लगा, तब सबसे पहले तीनों के इस गुट ने स्टॅलिन की योजना के अनुसार, ‘इस दुनिया की पहली श्रमिकों की सरकार निर्माण करनेवाले महान नेता’ के रूप में लेनिन का उदात्तीकरण शुरू किया। स्वाभाविक है, उसकी विचारधारा के विरोध में जो कुछ भी है, उसे खारिज़ कर देने की शुरुआत की। लेनिन की मृत्यु से कुछ समय पहले आयोजित की १३वीं वार्षिक पार्टीपरिषद में; स्वाभाविक रूप में किसी किसी मुद्दे पर लेनिन की विचारधारा के विरोध में जानेवाली ट्रॉट्स्की की विचारप्रणाली को ‘चर्चासत्रों’ का ‘आयोजन कर’ खारिज़ कर दिया गया। ये चर्चासत्र भी इस त्रिकूट ने उन्हें जैसे चाहिए, उस पद्धति से ‘मॅनेज’ किये थे!

स्टॅलिन की तुलना में ट्रॉट्स्की हालाँकि अच्छा विचारक था, वह अधिक ‘थिओरेटिकल’ होने के कारण उसके पास व्यवहार्यता कम है और बिनावजह छोटे छोटे प्रशासकीय मसलों में वह स्वयं को उलझा देता है, ऐसा लेनिन का मत था। लेकिन स्टॅलिन उसके अधिक ख़तरनाक लग रहा था। इस कारण, यदि ट्रॉट्स्की अपना उत्तराधिकारी न बन सका, तो संभवतः कम्युनिस्ट पार्टी के युवा सदस्य स्टॅलिन को उस पद से हटाकर उसके स्थान पर किसी अच्छे अनुभवी व्यक्ति की नियुक्ति करें, ऐसा सुझाव उसने अपने ‘द टेस्टामेंट’ इस निबंध में दिया भी था।

….लेकिन वैसा कुछ न हो सका!

२१ जनवरी १९२४ को लेनिन का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया!

लेनिन के पश्‍चात् उसका विश्‍वसनीय सहकर्मी जोसेफ़ स्टॅलिन सोव्हिएत रशिया का सर्वेसर्वा बना।

उसके पश्‍चात्, आम लोगों की दृष्टि से सत्ता की हायरार्की का जो महत्त्व होता है उसे भली-भाँति जाननेवाला और सत्ता के समीकरणों का अधिक अच्छी तरह इस्तेमाल करनेवाला जोसेफ़ स्टॅलिन उसके सभी पक्षांतर्गत विरोधकों को रास्ते से हटाकर सोव्हिएत रशिया का सर्वसत्ताधीश बना, वह ठेंठ अगले २८ साल उस स्थान पर टिका रहा…. उसके निधन तक!

….और यह स्टॅलिन की क्षमता पर अविश्‍वास व्यक्त करनेवाला लेनिन का ‘टेस्टामेंट’ निबंध स्टॅलिनशाही में छिपा दिया गया, वह अलग बात! इसी प्रकार की सेन्सॉरशिप सभी क्षेत्रों में लागू कर दी गयी। ट्रॉट्स्की विचारप्रणाली को महज़ कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल बाहर कर दिया गया ऐसा नहीं है; बल्कि अधिकृत सरकारी दस्तावेज़ों से, यहाँ तक की खींची गयीं ग्रुप फ़ोटों में से भी ट्रॉट्स्की आदि को ‘हटा दिया’ गया!

ज़ुलमी झारशाही से अब स्टॅलिनशाही तक…. क्या रशियन लोगों का ‘आसमान से गिरे, खजूर में अटके’ इस तरह का प्रवास शुरू हुआ था?

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