श्वसनसंस्था भाग – ४२

पिछले लेख में हमने देखा कि पर्वतारोहियों को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हमने देखा कि पर्वतों की चोटी पर के वातावरण के फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली समस्याओं का सामना शरीर कैसे करता है। लेख के प्रारंभ में हमने ‘शेर्पा’ जमात का उल्लेख किया था। ऊँची पर्वत शृंखलाओं में मूल रूप से रहनेवाले ये लोग काफी ऊँचाई पर जाने के बाद भी हमारी तुलना में ज्यादा शारीरिक श्रम सहजतापूर्वक कैसे कर सकते हैं, इसका उत्तर भी देखा। हमारे आज के लेख का विषय थोड़ा अलग है। यह विषय सिर्फ श्वसनसंस्था तक ही सीमित नहीं है। यह विषय हमारे संपूर्ण शरीर से संबंधित है और यह नये युग की देन है।

आधुनिक मानव ने आकाश तक और आगे बढ़कर अंतरिक्ष तक उड़ान भरल ली है। साक्षात चंद्रमा पर भी कदम रख चुका है। विमान की यात्रा तो आजकल सर्वसामान्य हो गयी है। लाखों लोग प्रतिदिन विमान से प्रवास करते हैं। अंतरिक्ष के कार्यक्रम तो दिन प्रतिदिन नई ऊँचाइयों को प्राप्त कर रहे हैं। वेग के प्रति मानवों के पागलपन से उसकी गति भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विमान की यात्रा के अनेकों फायदे हैं। साथ ही साथ तेज़ रफ़्तार के चलते सारा विश्व ही करीब आ गया है। परंतु इस गति के कुछ ना कुछ परिणाम, दुष्परिणाम शरीर पर होते ही रहते हैं। अब हम इन्हीं बातों की जानकारी प्राप्त करेंगे। इसमें भौतिकशास्त्र और शरीरशास्त्र दोनों का अध्ययन है। पहले हम विमान से प्रवास के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। यहाँ पर हम प्रमुख रूप से विभिन्न गतियों (acceleratory forces) का शरीर पर होनेवाले परिणाम देखेंगे।

विमान प्रवास :
हम जब विमान से प्रवास करते हैं तो तीन प्रकार की शक्तियों (acceleratory forces) का शरीर पर होनेवाले परिणाम देखेंगे।
१) विमान के हवा में उड़ान भरते समय (Take off) कार्यरत होनेवाली शक्ति को Linear Centrifugal acceleratory force कहते हैं।

२) विमान के अगले प्रवास के दौरान जब विमान घूमता है, (turns) लेता है तो उस समय कार्यरत होनेवाली शक्ति को centrifual acceleratory force कहते हैं।

३) विमान के जमीन पर उतरते समय (landing) जो शक्ति कार्यरत होती है उसे decleartion force कहते हैं। उपरोक्त तीनों में से विमान के हवा में प्रवास करते समय कार्यरत रहनेवाली शक्ति (centrifugal acceleratory force) ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। क्योंकि विमान के उड़ने और पुन: जमीन पर उतरने में काफी कम समय लगता है। शेष विमान यात्रा के दौरान हम ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। इस दौरान शरीर पर गति का होनेवाला परिणाम इसी लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।

Centrifugal acceleratory force :
शरीर पर कार्य करनेवाली इस शक्ति की गणना कैसे की जाती है, आइये देखें।

f = mv2 इस सूत्र का उपयोग करके इसकी गणना की जाती है। यहाँ पर ‘f’ यानी सेंट्रिफ्यूगल शक्ति। ‘m’ यानी वस्तु का यानी विमान में बैठे यात्रियों का वजन। ‘v’ यानी विमान की गति और ‘r’ यानी विमान के मुड़नेवाले मार्ग की त्रिज्या (radius of curvature of the turn)। उपरोक्त सूत्र से एक बात हमारे ध्यान में आती है कि निम्नलिखित बातों के कारण सेंट्रिफ्यूगल गति की शक्ति बढ़ जाती है।

१) यात्रियों का वजन ज्यादा होने पर।

२) जितना विमान का वेग ज्यादा उतनी ही कार्यरत शक्ति ज्यादा होती है।

३) विमान के मुड़ने की त्रिज्या जितनी कम उतनी ही कार्यरत शक्ति ज्यादा काम करती है। जब विमानचालक शार्प टर्न लेकर विमान को मोड़ता है तब सेंट्रिफ्यूगल शक्ति ज्यादा प्रभावी साबित होती है।

Acceleratory force :

इसे ‘G’ से संबोधित किया जाता है। G यानी सिर्फ गती की शक्ति। प्रवास के दौरान जब यात्री अपनी सीट पर बैठा रहता है तब सीट पर जो दबाव पड़ता है वो गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पड़ता है। (Gravitational force)। इसीलिए यह दबाव उस यात्री के वजन के बराबर होता है। इस नॉर्मल दबाव को +1G या positive G कहते हैं। प्रवास के दरम्यान यदि किन्हीं कारणों से यह दबाव पाँच गुना बढ़ जाता है तो उसे +5G दाब कहा जाता है।

कभी-कभी यात्रा के दौरान विमान पलटी मारता है और अंदर बैठे हुए यात्रियों के पैर ऊपर और सिर नीचे की ओर हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक प्रवासी के शरीर का भार सीट ब्लेट पर पड़ता है। ऐसे दाब को -1G (negative G) शक्ति कहा जाता है।

ऊपर बताये गए सभी forces के बारे में हम क्यों जानकारियाँ ले रहे हैं, ऐसा प्रश्न आपके मनों में आ सकता है। यह जानकारी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उपरोक्त सभी forces हमारे शरीर के कार्यों पर विपरित असर ड़ालते हैं। ये असर काफी घातक हो सकते हैं। किसी यात्री की मृत्यु भी हो सकती है। इन परिणामों की जानकारी हम आगे के लेख में देखेंगे।(क्रमश: -)

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