श्‍वसनसंस्था भाग – ३६

रासायनिक (केमिकल) घटकों के द्वारा हमारे श्‍वसन का नियंत्रण किस प्रकार होता है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर रहे हैं। सर्वप्रथम, हम मस्तिष्क के श्‍वसन केन्द्र पर रक्त और ऊतकों में होनेवाले रासायनिक बदलाव का क्या परिणाम होता है, इसका अध्ययन करेंगे।

पिछले कई लेखों में हमने देखा कि मस्तिष्क में जो श्‍वसन केन्द्र होता है उसको मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया जाता है। रक्त और पेशियों में कर्बद्विप्रणिलवायु और हैड्रोजन के अणु में बदलाव का प्रत्यक्ष परिणाम इनमें से किसी भी विभाग पर नहीं होता। उपरोक्त तीन विभागों के अतिरिक्त (डॉरसल, व्हेंट्रल गुट और न्युमोटॅक्सिक केन्द्र) एक किमोसेन्सिटिव्ह (chemosensitive) भाग श्‍वसन केन्द्र में होता है और इसमें से निकलनेवाले संदेश श्‍वसन केन्द्र के शेष विभागों पर कार्य करते हैं। किमोसेन्सिटिव्ह यह विभाग, रक्त की PCO२ में बदलाव अथवा हैड्रोजन अणुओं की संख्या में बदलाव होने पर तुरंत रिऍक्ट करता है।

किमोसेन्सिटिव्ह भाग की चेतापेशी (चेता कोशिका), इन रासायनिक बदलावों के प्रति संवेदनशील होती है। कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा में बदलाव की तुलना में हैड्रोजन के अणुओं में बदलाव के प्रति ये पेशियाँ ज्यादा संवेदनशील होती हैं। हैड्रोजन अणुओं में थोड़ासा बदलाव होने पर भी ये चेतापेशियाँ तुरंत रिऍक्ट करती हैं। परंतु यहाँ यह ‘परन्तु’ महत्व का है। रक्त में हैड्रोजन अणुओं की मात्रा बढ़ने पर भी उस अनुपात में चेतापेशियों के बाहरी द्राव में यह बदलाव परावर्तित नहीं होता। फलस्वरूप रक्त में हैड्रोजन अणुओं की बढ़ी हुई मात्रा श्‍वसन केन्द्र पर ज्यादा असर नहीं करती। इसके विपरित कर्बद्विप्रणिल वायु का थोड़ासा बदलाव भी श्‍वसन केन्द्र पर असर ड़ालता है। अब हम इसका कारण समझेंगे।

अब हम इसका कारण समझेंगे। हमारे मस्तिष्क के चारों ओर तीन प्रकार के आवरण होते हैं। इन आवरणों के स्तर में द्राव (फ्लुइड) होता है। इस द्राव को सेरेब्रोस्पायनल द्राव कहते हैं। मस्तिष्क की चेतापेशी सेरेब्रोस्पायनल द्राव के संपर्क में होती हैं। इस द्राव में हुए रासायनिक बदलावों का परिणाम चेतापेशी पर होता है। ‘परन्तु’ रक्त में होनेवाला प्रत्येक रासायनिक बदलाव सेरेब्रोस्पायनल द्राव में परावर्तित नहीं होता। इस ‘परन्तु’ का कारण है ‘ब्लड ब्रेन बॅरिअर’। रक्त और मस्तिष्क के बीच में यह बाधक होता है। फलस्वरूप तीन चीजें घटित होती हैं। रक्त के कुछ घटक आसानी से सेरेब्रोस्पायनल द्राव में प्रविष्ट हो जाते हैं। कुछ घटकों को कुछ अड़चन महसूस होती है, जिसके कारण उस घटक का रक्त और सेरेब्रोस्पायनल द्राव की मात्रा में असमानता होती है, तथा कुछ घटक रक्त में से सेरेब्रोस्पायनल द्राव में प्रवेश ही नहीं कर सकते।

कर्बद्विप्रणिलवायु पहली श्रेणी में आता है। रक्त और मस्तिष्क द्राव में यह सहजतापूर्वक प्रवास करती रहती है। हैड्रोजन वायु दूसरी श्रेणी में आता है, इसीलिए इसकी मात्रा में असमानता पायी जाती है। अब हम यह देखेंगे कि कर्बद्विप्रणिलवायु श्‍वसन केन्द्र पर क्या असर करती है।

कर्बद्विप्रणिल वायु का श्‍वसन केन्द्र पर परिणाम :
कर्बद्विप्रणिल वायु सहजता से सेरेब्रोस्पायनल द्राव में प्रवेश करती है। यह वायु प्रत्यक्ष रूप से श्‍वसन केन्द्र पर ज्यादा असर नहीं करती। क्योंकि किमोसेन्सिटिव्ह चेतापेशी हैड्रोजन वायु के लिए ज्यादा संवेदनशील होती हैं। परन्तु यह वायु परोक्ष रूप में इन पेशियों पर कार्य करता है। इसके कार्य इस प्रकार होते हैं –

सेरेब्रोस्पायनल द्राव में प्रविष्ट होने के बाद यह वायु पानी के साथ रिऍक्ट होता है और उसका रूपांतर कार्बोनिक अम्ल में हो जाता है। कार्बोनिक अम्ल का विघटन हैड्रोजन और बायकार्बोनेट में होता है। मुक्त हुए हैड्रोजन के अणु चेतापेशियों को जागृत करके कार्यरत करते हैं।
H२O + CO२ = H२CO३ – H+ + HCO३

रक्त में कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा बढ़ने पर सेरेब्रोस्पायनल द्राव में भी इसकी मात्रा बढ़ जाती है। उसीके अनुसार वहाँ के हैड्रोजन अणुओं की मात्रा भी बढ़ती जाती हैं। हैड्रोजन अणु चेतापेशियों को कार्यरत करते हैं। इसका असर श्‍वसन क्रिया पर होता है तथा श्‍वसन की गति बढ़ जाती है। इसीलिये रक्त में हैड्रोजन की बढ़ी हुई मात्रा की तुलना में कर्बद्विप्रणिल वायु में वृद्धि पहले कुछ घंटों पहले ही सीमित रहती है। अगले एक-दो दिनों में श्‍वसन के कार्य धीमे हो जाते हैं। इसके लिये दो बातें कारणीभूत होती हैं।

रक्त की कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा बढ़ती रहने पर कुछ घंटो बाद मूत्रपिंड (गुर्दे = किडनीज) कार्यरत होते हैं। मूत्रपिंड रक्त में बायोकार्बोनेट की मात्रा बढ़ाते हैं। बढ़ी हुई बायकार्बोनेट रक्त की हैड्रोजन अणुओं के साथ बाँधी जाती है और रक्त की बढ़ी हुई बायकार्बोनेट धीरे-धीरे सेरोब्रोस्पायनल द्राव में फैलने लगती हैं। वहाँ की हैड्रोजन की मात्रा भी कम होती जाती है। इन दो कारणों से रक्त में कर्बद्विप्रणिल वायु की मात्रा बढ़ती रहने के बावजूद भी मस्तिष्क में हैड्रोजन की मात्रा कम होती जाती है, जिसके कारण श्‍वसन केन्द्र का बढ़ा हुआ कार्य धीरे-धीरे कम होता है।

रक्त की PCO२ के बदलाव से श्‍वसन की गति पर फौरन असर होता है, परन्तु यदि रक्त का PH बदल जाये तो उसका ज्यादा असर श्‍वसन पर नहीं होता है।

रक्त में प्राणवायु की मात्रा में बदलाव श्‍वसन पर प्रत्यक्ष रूप से कोई असर नहीं करता। परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से प्राणवायु श्‍वसन के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।(क्रमश:)

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